मौहम्मद इल्यास-’’दनकौरी’’/नई दिल्ली
———————————————जम्मू-कश्मीर को लेकर चल रही अटकलबाज़ियों का अंत हो गया है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सुबह राज्यसभा में अनुच्छेद 370 को समाप्त करने की घोषणा की,. जिस पर पूरे देश में भारी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। आज़ादी के बाद सरकार के इस निर्णय को एक ऐतिहासिक निर्णय के रूप में देखा जा रहा है। अनुच्छेद 370 को समाप्त किए जाने के बाद अब जम्मू-कश्मीर राज्य भारत संघ में पूर्ण हिस्सा बन गया है। अनुच्छेद 370 एक अस्थाई प्रावधान था जिसे भारत के संविधान में जोड़ा गया था। यह प्रावधान इस राज्य के भारत संघ में पूर्ण एकीकरण के रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा था। कुछ क़ानूनी जानकार और कुछ कश्मीरी नेता यह प्रचारित कर रहे थे कि अनुच्छेद 370 की वजह से ही जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा है और इसके समाप्त हो जाने पर यह भारत का हिस्सा नहीं रह पाएगा। इस तरह की बातें और मिथ्या बोध का कोई आधार नहीं है. क्योंकि जम्मू-कश्मीर 26 अक्टूबर 1947 को भारत में शामिल होने के करार पर हस्ताक्षर के बाद भारत का अभिन्न हिस्सा बन गया न कि अनुच्छेद 370 की वजह से। अनुच्छेद 370 एक अस्थाई प्रावधान है और यह काफ़ी बाद में आया। भारत में जम्मू-कश्मीर का एकीकरण लंबी अवधि में राज्य के लोगों के हित में होगा। अब राज्य में ज़्यादा निवेश हो पाएगा, राज्य में लोगों के लिए रोजगार के ज्यादा अवसर पैदा होंगे। इन बातों के अलावा कश्मीरियों का देश के अन्य राज्यों के लोगों के साथ संवाद बढ़ेगा और इससे आइडिया ऑफ इंडिया और मजबूत होगा। अनुच्छेद 370 को समाप्त किए जाने के बाद ‘एक देश, एक संविधान और एक झंडा’ इस देश का मंत्र होगा जिसको मज़बूत करने में जम्मू-कश्मीर के लोगों की अहम और सकारात्मक भूमिका होगी। इस निर्णय का कश्मीर घाटी के वर्तमान हालात पर भी असर होगा। यहां के युवाओं को अब नए कश्मीर में ज्यादा से ज्यादा रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे, वे लोग मुख्यधारा के हिस्सा होंगे और अपने और अपने परिवार के लिए खुद रोजी-रोटी कमाएंगे न कि हाथ में बंदूक थामेंगे। इसके बाद राज्य में भ्रष्टाचार भी कम हो जाएगा, क्योंकि राज्य के अधिकारियों का उत्तरदायित्व कई गुना बढ़ेगा जो कि वर्तमान में काफी कम है। आने वाले दिनों में राज्य में कानून और व्यवस्था की स्थिति को बनाए रखना सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगी. क्योंकि तरजीही दर्जा के साथ राज्य के लोगों की भावनाएं जुड़ी हुई हैं। कश्मीर के लोग महसूस करते हैं कि यह उनकी पहचान पर प्रत्यक्ष हमला है,. जबकि जम्मू और लद्दाख के लोग हमेशा से इस अनुच्छेद 370 को समाप्त किए जाने के पक्ष में थे। लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिए जाने के बाद इस क्षेत्र के लोग जश्न मना रहे हैं,. क्योंकि वे इसकी काफी अरसे से मांग कर रहे थे। इस मुद्दे पर क्षेत्रीय विभाजन भी था।. जम्मू क्षेत्र के लोग भी अलग राज्य की मांग कर रहे थे और अब जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के बाद वे लोग भी खुश होंगे। लेकिन जहां तक अभी की बात है, कश्मीरी लोगों में इसको लेकर नाराजगी है और इस स्थिति के समाप्त होने में वक्त लगेगा।. अगला कुछ सप्ताह प्रशासन और पुलिस के लिए चुनौतियों भरा होगा, पर जब हिंसा की आशंका सबसे ज्यादा थी उस शुरुआती समय में सरकार ने स्थिति को काफी अच्छी तरह संभाला। कश्मीर के लोगों ने पिछले 30 सालों के आतंकवाद के दौरान कई उतार-चढ़ाव देखे हैं और उन्होंने इन परिस्थितियों का बहादुरी से सामना किया है।. उम्मीद यह की जाती है कि इस बार भी उनमें से अधिसंख्य यह चाहते हैं कि कश्मीर में शांति बनी रहे और इसलिए वे इस स्थिति का बहादुरी से सामान करेंगे और उन्हें करारा जवाब देंगे जो नहीं चाहते कि घाटी में शांति कायम हो
राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन बिल पास
जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन बिल राज्यसभा में पास हो गया है।. इससे पहले राज्यसभा से जम्मू कश्मीर आरक्षण दूसरा संशोधन बिल ध्वनिमत से पारित कर दिया गया। सदन में इस बिल के पक्ष में 125 वोट पड़े तो वहीं इसके विपक्ष में 61 वोट पड़े।
कश्मीर का इतिहास और विद्रोह
आजादी के समय जब हिंदुस्तान का बंटवारा दो हिस्सों में हुआ तो सवाल उठा कि कश्मीर किस देश के साथ जाएगा मुस्लिम लीग के नेता जिन्ना के अनुसार इसे पाकिस्तान में जाना चाहिए था क्योंकि उस समय कश्मीर की आबादी का लगभग 77 प्रतिशत हिस्सा मुस्लिम थे और जिन्ना के पाकिस्तान की मांग मुस्लिम धर्म का हवाला देकर था.किंतु यह तर्क कश्मीर के लिए गलत था। वहीं दूसरी तरफ यहां के राजा हरि सिंह ने कश्मीर को भारत अथवा पाकिस्तान में सम्मिलित नहीं करना का मन बनाया था, लेकिन कालांतर राजनीतिक स्थितियां ऐसी परिवर्तित हुई कि कश्मीर को भारत के साथ सम्मिलित होने में ही सुरक्षित महसूस हुआ। तत्कालिक समय में प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार हमें जो जानकारियां प्राप्त होती हैं उससे पता चलता है कि यह क्षेत्र मौर्य के शासन क्षेत्र के अंतर्गत आता था। इसके बाद यहां पर कुशान जाति के लोगों का शासन रहा। कुशान जाति के लोग बौद्ध धर्म को मानते थे। इस वजह से इस स्थान पर बौद्ध धर्म का खूब प्रसार हुआ और यह स्थान बौद्ध धर्म के अध्ययन का केंद्र बन गया। कुशान वंश का महान राजा कनिष्क ने चौथा बौद्धिक काउंसिल का भी आयोजन किया था। इन के उपरांत विभिन्न तरह के हिंदू राजाओं का समय-समय पर राज रहा। इन्हीं हिंदू राजाओं में से एक वंश ने सूर्य मंदिर मार्तंड की स्थापना की। इसके बाद तेरहवीं सदी के आसपास इस्लाम कश्मीर में आया। इस्लाम कश्मीर में आने पर यहां के कई लोगों का धर्म इस्लाम में बदल दिया गया। अंततः यहां के राजा को भी इस्लाम में बदलना पड़ा। इस समय कश्मीर सल्तनत की शुरुआत हुई थी। कालांतर में सन 1586 के आसपास मुगलों ने कश्मीर पर कब्जा कर लिया। यह समय अकबर के शासन का समय था। इसके बाद अफगानियों ने 1751 के आसपास कश्मीर में आक्रमण करना प्रारंभ किया। अफगान शासक अहमद शाह अब्दाली ने यहां पर अपना राज्य स्थापित किया। इसके उपरांत कुछ वर्षों के बाद साल 1819 में सिक्खों के तत्कालिक राजा महाराजा रंजीत सिंह ने अफगानों को हराकर कश्मीर को अपने राज्य में मिला लिया। साल 1846 में जब महाराणा रंजीत सिंह की मृत्यु हो चुकी थी इस समय अंग्रेजों ने सीख एंग्लो युद्ध में सिखों को हराकर यहां पर डोगरा वंश के लोगों को शासन करने के लिए छोड़ दिया। डोगरा वंश के राजा गुलाब सिंह ने इस राज्य में राजा बनने के लिए 7500000 दिए थे इसके बाद इस वंश ने यहां पर 100 वर्षों तक राज किया।
कश्मीर के राजा हरी सिंह ने किए थे समझौते पर हंस्ताक्षर
महाराजा हरि सिंह साल 1947 के दौरान यह चाहते थे कि बंटवारे के बाद कश्मीर न तो भारत में शामिल हो और ना ही पाकिस्तान में हरी सिंह कश्मीर को एशिया का स्विट्जरलैंड बनाना चाहते थे। इस समय यहां पर नेशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी के संस्थापक शेख अब्दुल्ला और उनके लोग कश्मीर में लोकतंत्र लाने के लिए काम कर रहे थे, वे चाहते थे कि कश्मीर में किसी राजा का राज ना होकर लोकतंत्र की स्थापना हो या ऐसा हो कि राजा रहे किंतु राजा के पास बहुत सीमित शक्तियां न हो। इस पार्टी को उस समय की पार्टी इंडियन नेशनल कांग्रेस का भी पूरा सहयोग प्राप्त था। इस समय पूरे देश को एक नए तंत्र की जरूरत थी और इस वजह से कांग्रेस देश में लोकतंत्र लाने के लिए शेख अब्दुल्लाह का साथ दे रही थी। इस समय जिन्ना चाहते थे कि भारत दो भागों में हिंदू और मुसलमान के नाम पर विभाजित हो। उनका यह मानना था कि दो देश बने जिसमें एक हिंदू बाहुल और एक मुसलमान बहुल देश हो। इस तरह से जिन्ना का कहना था कि उस समय के 77 फ़ीसदी वाले मुस्लिम आबादी वाला कश्मीर पाकिस्तान में शामिल हो जाए लेकिन महाराजा हरि सिंह ने ऐसा नहीं होने दिया और उन्होंने एक समझौता पर हंस्ताक्षर किया कि पाकिस्तान से दोनों देशों के व्यापार आदि जारी रहेंगे किंतु कश्मीर भारत का हिस्सा रहेगा।
साल 1947-48 की लड़ाई
भारत और कश्मीर के हस्ताक्षर और समझौता होने के बाद भारत ने अपनी सेना को पाकिस्तान से लड़ने के लिए भेजा और कश्मीर की पहली लड़ाई शुरू हो गई थी। यह लड़ाई काफी ऊंचाई पर लड़ी गई जहां भारतीय सेना ने हेलीकॉप्टर का भी सहारा लिया था। इस लड़ाई में पाकिस्तानी आर्मी को मुंह की खानी पड़ी थी और भारतीय सेना ने पाकिस्तानी आर्मी को पीछे खदेड़ने में सफलता प्राप्त कर ली, साथ ही कश्मीर की घाटी को अपने कब्जे में कर लिया।
आजाद कश्मीर मुद्दा
जिस समय यह लड़ाई चल रही थी उस समय कश्मीर के पश्चिमी इलाके में जैसे पुंछ और बारामूला आदि क्षेत्रों में पाकिस्तान के सहारे एक कठपुतली सरकार बनाई गई और इस क्षेत्र ने खुद को स्वतंत्र घोषित करके खुद को आजाद कश्मीर का नाम दिया। यह आजाद कश्मीर आज भी मौजूद है जिसकी सरकार पाकिस्तान द्वारा चलती है। इस आजाद कश्मीर की राजधानी मुजफ्फराबाद है कश्मीर का उतरी इलाका जिसमें गिल गीत बलूचिस्तान मुजफ्फराबाद मीरपुर आदि क्षेत्र पाकिस्तान में पढ़ने वाले कश्मीर में मौजूद है।
यूनाइटेड नेशन में कश्मीर समस्या
इस समस्या को लेकर भारत जनवरी सन 1948 में यूनाइटेड नेशन गया उस तरफ से पाकिस्तान भी इस मसले को लेकर यूनाइटेड नेशन पहुंचा यहां पर कश्मीरी समस्याओं को देखते हुए यूनाइटेड नेशन ने एक कमीशन बैठाया, जिसका नाम यूनाइटेड नेशन कमीशन फॉर इंडिया एंड पाकिस्तान था इसमें कुल 5 सदस्य शामिल थे। इन 5 लोगों ने भारत और कश्मीर का दौरा किया। इसका हल निकालने की कोशिश की इस कोशिश से हालांकि कोई रास्ता नहीं निकला।
यूनाइटेड नेशन 3 शर्त
- पाकिस्तान को कश्मीर से अपनी सेनाएं तुरंत हटा लेनी चाहिए.
2.भारत को सिर्फ व्यवस्था बनाए रखने के लिए कम से कम सेना रखकर सभी आर्मी हटा लेनी चाहिए.
- एक प्लेबिर्स्साइट लोगों का मत जानने के लिए लागू किया जाएगा
किंतु पिछले 70 वर्षों में पाकिस्तान ने अपनी आर्मी कश्मीर से नहीं हटाई जिस वजह से आगे की भी दो शर्तें नहीं मानी गई पाकिस्तान का कहना है कि यदि उन्होंने फौज हटाई तो भारत उनके कश्मीर पर हमला करके अपने अधीन कर लेगा। भारत को भी यही डर है इस तरह आज तक दोनों में से किसी देश ने भी अपनी सैन्य क्षमता यहां से नहीं हटाई।
क्या है धारा 370
धारा 370 भारतीय संविधान का आर्टिकल है ना कि कश्मीर का संविधान का, इस आर्टिकल को शेख अब्दुल्ला और गोपाल स्वामी आयंगर ने मिलकर ड्राफ्ट किया था। इस धारा के तहत भारत के संविधान में कश्मीर को विशेष छूट दी गई है, हालांकि आर्टिकल में टेंपोरल ई शब्द का इस्तेमाल किया गया है जिससे यह पता चलता है कि दी गई छूट अस्थाई है ध्यान देने योग्य बात यह है कि जम्मू कश्मीर में कानून बनाने का अधिकार वहां के स्टेट असेंबली को है यदि भारत की केंद्र सरकार वहां पर अपने बनाए गए कानून लागू करवाना भी चाहती है तो पहले उसे वहां के स्टेट असेंबली में पास कराना होता है। इसके अलावा कश्मीर में भारत के अन्य राज्यों में से कोई भी व्यक्ति जाकर अस्थाई रूप से नहीं रह सकता है वहां पर जमीन नहीं खरीदी जा सकती। धारा 370 पर सरदार वल्लभभाई पटेल और बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर पूरी तरह खिलाफ थे। उन्होंने धारा 370 को ड्राफ्ट करने से इनकार कर दिया था। ध्यान देने वाली बात यह है कि बीआर अंबेडकर ने पूरा संविधान तैयार किया, किंतु धारा 370 ड्राफ्ट करने से इनकार कर दिया था।.
कश्मीर में मिलिटेंसी
वर्ष 1987 में कश्मीर के असेंबली चुनाव के दौरान नेशनल कांफ्रेंस और भारतीय कांग्रेस ने मिलकर बहुत भारी गड़बड़ी की और वहां उन्होंने चुनाव जीता। चुनाव में बहुत भारी संख्या में जीते जाने पर दोनों पार्टियों के विरोध काफी प्रदर्शन हुए और धीरे-धीरे यह प्रदर्शन आक्रमक और हिंसक हो गए। इस हिंसक प्रदर्शनों का फायदा उठाकर पाकिस्तान ने इन्हीं प्रदर्शनकारियों में अपने ही जब उल मुजाहिदीन जैसे आतंकी संगठन और जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के अलगाववादियों को शामिल कर दिया। इस वजह से यह स्थिति और बुरी होती चली गई और इस कश्मीर की आजादी से जोड़कर लोगों के बीच लाया गया। युवा कश्मीरियों को सरहद पार भेजकर उन्हें आतंकी ट्रेनिंग दी जाने लगी इस तरह के सभी गतिविधियों में कई आतंकी संगठन संलिप्त थे। साथ ही कश्मीरी युवकों को आर्थिक मद्द का लालच भी दिया जाता था।.
कश्मीरी पंडितों की क्या है, समस्या
साल 1990 में कश्मीरी पंडितों को बहुत अधिक विरोध और हिंसा झेलनी पड़ी। कश्मीरी पंडित कश्मीर घाटी में एक अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय है, हालांकि अल्पसंख्यक थे फिर भी इन्हें अच्छी नौकरियां प्रशासन में अच्छे पद पर आसीन थे। साथ ही बहुत अच्छे पढ़े-लिखे थे। इस दौरान इनके खिलाफ कई धमकियां आनी शुरू हुई और कई बड़े कश्मीरी पंडितों को सरेआम गोली मार दी गई। इन्हें दिनदहाड़े धमकियां दिए जाने लगी। यदि इन्होंने घाटी नहीं छोड़ा तो जान से मार दिया जाएगा। इस तरीके की खुली चेतावनी और धमकियां दिए जाने लगी।.किया भी कुछ ऐसा ही गया, लगभग 200 से 400 कश्मीरी पंडितों को 2 से 3 महीने के अंदर मार दिया गया। इसके बाद यहां से कश्मीरी पंडित रातों-रात विस्थापित होने लगे। इस घटना के पीछे एक वजह यह भी थी कि इस समय केंद्र सरकार ने जगमोहन को केंद्र का गवर्नर बनाया था। फारुक अब्दुल्ला ने कहा था कि यदि जगमोहन को गवर्नर बनाया गया तो वह इस्तीफा दे देंगे और इस पर फारुख ने इस्तीफा दे दिया। कश्मीर में इसके बाद पूरी तरह से अव्यवस्था और अराजकता फैल गई थी। इस अराजकता में पड़े कश्मीरी पंडितों को अपना घर अपने व्यापार आदि छोड़कर जम्मू अथवा दिल्ली आना पड़ा। कश्मीरी पंडित आज विभिन्न कैंप में बहुत गरीबी में अपनी जिंदगी भी गुजारा कर रहे है। इस तरह की अराजकता को देखते हुए भारत सरकार ने यहां पर आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट लागू किया। यह भारत में पहली बार लागू नहीं हुआ था इससे पहले कुछ उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में यह लागू किया जा चुका था। इस एक्ट के अनुसार सेना को कुछ अतिरिक्त पावर दिए जाते हैं जिसकी सहायता से वे किसी को सिर्फ शक के निगाह पर बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकते हैं और किसी पर संदेह होने से उसे गोली मार सकते हैं और किसी के घर की तलाशी भी बिना वारंट के ले सकते हैं। यह एक्ट एक ऐतिहासिक फैसला के रूप में देखा गया क्योंकि इसके बाद कश्मीर में व्यवस्था को स्थापित करने में वहां की सरकार को थोड़ी सफलता जरूर मिली। आज के मौजूदा परिवेश में देखे तो मिलिटेंसी की संख्या कश्मीर में अपरोक्ष रूप से बढ़ रही है जो कि दिन-प्रतिदिन घातक हो रही थी।