मध्य प्रदेश में पानी पर कानून बनाने की तैयारी शुरू
कानून रिव्यू/रायपुर
—————————याद रखिए वह दिन अब हवा होने जा रहें हैं जब हवा, पानी, धूप सब कुछ बिल्कुल फ्री हुआ करते थे। इन कुदरती संसाधनों में से पानी एक ऐसी चीज है जिसके बिना कोई भी जीव जीवित रह ही नही सकता है। किंतु आधुनिक समय में जिस तरह से पानी का दोहन हो रहा है उससे तो यही लगता है कि अगला विश्व युद्ध यदि होगा तो वह पानी के लिए ही होगा। यही कारण है कि सरकार ने अब पानी को भी कानून के दायरे में लानी तैयारी शुरू कर दी है। मध्य प्रदेश सरकार जल्द ही पानी पर कानून बनाने जा रही है। जिस छत्तीसगढ़ में पानी कभी समस्या नहीं रही। अब पानी की दिक्कत को देखते हुए इसका दुरुपयोग रोकने के लिए कानून बनाने जा रही है। कानून बनाने के लिए सरकार ने अध्ययन शुरू कर दिया है कि 30 साल में यहां की आबादी कितनी होगी और कितने पानी की जरूरत होगी।् उपलब्ध स्त्रोतों की क्षमता कितनी है। इस आधार पर पानी का दुरुपयोग रोकने के लिए इस कानून में कड़े प्रावधान रहेंगे। जैसे अभी बिल्डर अपने प्रोजेक्ट में स्वीमिंग पूल और लैंडस्केपिंग का प्रचार करते हैं लेकिन कानून बनने के बाद उनसे पूछा जाएगा कि सिंचाई या पूल भरने के लिए पानी कहां से लाएंगे। यही नहीं राजधानी में मकानों का नक्शा पास करने की अनिवार्य शर्त छत पर वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाना है लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। ऐसे लोगों पर अभी कार्रवाई तय नहीं है लेकिन कानून में इसका साफ प्रावधान किया जाएगा। प्रदेश में पानी की समस्या लगातार गहरा रही है इसलिए चिंतित सरकार ने नगरीय निकायों को मेगा वर्कप्लान बनाने को कहा है। इस आधार पर प्रदेश के सभी नगर निगमों, नगर पालिकाओं व नगर पंचायतों ने अपने यहां 30 साल में अनुमानित जनसंख्या का आंकलन शुरू कर दिया है। ये भी हिसाब लगा रहे हैं कि उन्हें पीने निस्तारी तथा अन्य उपयोग के लिए कितना पानी लगेगी। पानी की जरूरतें कितनी बढ़ेंगी और इनके बढ़ने से हर साल सिंचाई विभाग से निकाय को कितना पानी मांगना होगा, इसका चार्ट भी बन रहा है। इसी आधार पर निकाय वर्तमान जरूरतों और भविष्य को लेकर पानी की डिमांड की अर्जी इरीगेशन डिपार्टमेंट को लगाएंगे। इसके लिए सिंचाई पीएचई और नगरीय प्रशासन विभाग के बीच बातचीत शुरू हो गई है। निकायों से साफ कह दिया है कि वे उनके इलाकों में उपलब्ध पानी को रिचार्ज करन, रिसाइकल करने और रियूज करने के लिए कंक्रीट प्लान तैयार करे। ताकि पानी को रिसाइकल्ड करके उपयोग में लाकर भूजल की कमी को रोका जा सके। यह भी कह दिया गया है कि सभी निकायों को पानी का दुरुपयोग रोकना होगा। चूंकि दुरुपयोग रोकने के लिए कार्रवाई सजा या जुर्माने का कोई दस्तावेजी प्रावधान नहीं है। इसलिए सरकार ने इस पर कानूनी मसौदा तैयार करना शुरू कर दिया है।
ऐसे रोका जाएगा दुरुपयोग
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- वाटर हार्वेस्टिंग की शर्त पर नक्शा पास हुआ लेकिन सिस्टम नहीं लगाया। कानून में कार्रवाई का प्रावधान।
- बिल्डर लैंडस्केपिंग और स्वीमिंग पूल का प्रचार करते हैं, यह कानून पूछेगा कि पानी कहां से लाएंगे
- सतह के जल के उपयोग की अनुमति लेकर भूजल निकाल रहे नगरीय निकायों पर कार्रवाई का प्रावधान।
- ऐसे नगरीय निकाय जो प्राकृतिक स्त्रोतों से तय कोटे से ज्यादा पानी निकाल रहे हैं उन पर कार्रवाई
कर वसूली का बदलेगा सिस्टम
–———————————– इस कानून के जरिए सरकार निकायों से जल करों व पानी के बिलों को वसूलने के सिस्टम में बदलाव कर सकती है। जैसे अभी सिंचाई विभाग जो पानी निकायों को दे रहा है उसमें वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट व पानी के मूल स्रोत के बीच की दूरी काफी है। जैसे गंगरेल से रायपुर तक पानी सप्लाई करना है तो न्यूनतम 50 क्यूसेक से 250 क्यूसेक पानी छोड़ना पड़ता है। इसमें से 40 से 60 फीसदी पानी का वाष्पीकरण या परिवहन क्षति से नुकसान होता है। जो पानी बरबाद हुआ उसका सरकार अभी कोई पैसा नहीं ले रही है। वह भविष्य में व बरबाद हुए पानी की वसूली भी निकायों से कर सकती है। यानी स्त्रोत से जितना पानी सप्लाई होगा उतना ही जल कर लगेगा। इरीगेशन विभाग के सचिव सोनमणि वोरा ने इस बारे में नगरीय प्रशासन विभाग के सचिव डॉ0 रोहित यादव को चिट्ठी भी लिखी है। उन्होंने निकाय इस बारे में क्या कर रहे हैं उसकी रिपोर्ट भी मांगी है।
ठोस अपशिष्ट बने खतरा
—————————–विभागों के बीच तालमेल न होने से ठोस अपशिष्ट व कचरे खतरे बन गए हैं। शहरों व नगरों में इन्हें सीवेज व खुले ड्रेनेज डाल दिया जाता है जिससे आसपास के नदी.नालों का पानी भी प्रदूषित हो रहा है। सरकार का मानना है कि इस पर तत्काल रोक लगनी चाहिए। निकायों से कहा गया है कि ऐसे प्रकरणों में कार्रवाई की जाए।