कानून रिव्यू/नई दिल्ली
——————————–अयोध्या मामले में नया मोड़ आ गया है। राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के मामले में नई याचिका दाखिल की गई है। इस याचिका में हिंदू महासभा और कमलेश कुमार तिवारी ने लैंड एक्वीजिशन एक्ट की वैधता पर सवाल उठाया है? याचिका में कहा गया है कि राज्य की राज्य सूची के विषयों की आड़ में राज्य की भूमि केंद्र अधिग्रहीत नहीं कर सकता है। जिस एक्ट के तहत 1993 में तब केंद्र की नरसिंहराव सरकार ने 67.7 एकड़ जमीन अधिग्रहीत की, वह एक्ट बनाना संसद के अधिकार क्षेत्र में नहीं था। याचिका में कहा गया है कि भूमि और कानून व्यवस्था राज्य सूची के विषय हैं। केंद्र को कानून बनाकर राज्य की भूमि अधिग्रहीत करने का अधिकार नहीं है। जब अधिग्रहण ही अवैध तो जमीन वापस देने में क्या परेशानी है? लोकसभा चुनाव से पहले अयोध्या मुद्दे पर मोदी सरकार भी कोर्ट में पहुंच गई है। केंद्र सरकार की ओर से दाखिल की गई अर्जी में मांग की गई है कि 67 एकड़ जमीन का सरकार ने अधिग्रहण किया था जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया था। जमीन का विवाद सिर्फ 0.313 एक़ड़ का है बल्कि बाकी जमीन पर कोई विवाद नहीं है। इसलिए उस पर यथास्थिति बरकरार रखने की जरूरत नहीं है। सरकार चाहती है जमीन का बाकी हिस्सा राम जन्मभूमि न्यास को दिया जाए और सुप्रीम कोर्ट इसकी इज़ाजत दे। सरकारी सूत्रों का कहना है कि नरसिम्हा राव सरकार ने विवादित 0.313 एकड़ भूमि के साथ ही 67 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था। इस्माइल फारुकी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ही कहा है कि जो जमीन बचेगी उसे उसके सही मालिक को वापस करने के लिए केंद्र सरकार ड्यूटी बाउंड है। इसमें 40 एकड़ ज़मीन राम जन्मभूमि न्यास की है।