संविधान पीठ ने कहा ये केवल जमीन का विवाद नहीं है, ये भावनाओं से जुड़ा हुआ है। इसलिए कोर्ट चाहता है कि आपसी बातचीत से इसका हल निकले। इस मामले में सिर्फ एक मध्यस्थ नहीं हो सकता बल्कि इसके लिए एक पैनल होना चाहिए।
मौहम्मद इल्यास-’’दनकौरी’’/ कानून रिव्यू
नई दिल्लीअयोध्या मामले में मध्यस्थता पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद उनसे मध्यस्थों के नाम मांगे हैं।
सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ के सामने हिन्दू महासभा के वकील हरिशंकर जैन ने बहस की शुरुआत की। सुप्रीम कोर्ट में हिंदू महासभा ने साफतौर पर कहा कि इस पर मध्यस्थता नहीं हो सकती है, महासभा ने कहा कि ये भगवान राम की जमीन है, दूसरे पक्षों को इसका हक नहीं है, इसलिए इसे मध्यस्थता के लिए न भेजा जाए। रामलला विराजमान का भी कहना था कि मध्यस्थता से मामले का हल नहीं निकल सकता है। हिन्दू पक्ष ने कहा कि मान लीजिए कि सभी पक्षों में समझौता हो गया तो भी समाज इसे कैसे स्वीकारेगा। इस पर जस्टिस बोबड़े ने कहा कि अगर समझौता कोर्ट को दिया जाता है और कोर्ट उस पर सहमति देता है और आदेश पास करता है, तब वो सभी को मानना ही होगा। वहीं निर्मोही अखाड़े और सुन्नी वक्फ बोर्ड ने मध्यस्थता पर हामी भरी। मुस्लिम पक्षकार की ओर ओर से राजीव धवन ने पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि यह कोर्ट के ऊपर है कि मध्यस्थ कौन हो, हालांकि इसके साथ ही उन्होंने इस मामले की मध्यस्थता बंद कमरे में कराने की मांग की। इस पर जस्टिस बोबड़े बोले ने कि यह गोपनीय होना चाहिए। साथ ही उन्होंने कहा पक्षकारों द्वारा गोपनीयता का उल्लंघन नहीं होना चाहिए। मीडिया में इसकी टिप्पणियां नहीं होनी चाहिए। प्रक्रिया की रिपोर्टिंग न हो, अगर इसकी रिपोर्टिंग हो तो इसे अवमानना घोषित किया जाए। जस्टिस बोबड़े की ये बातें सुनकर मुस्लिम पक्ष के वकील ने कहा कि हम मध्यस्थता के लिए तैयार हैं। रामलला विराजमान की तरफ से कहा गया अयोध्या का मतलब राम जन्मभूमि। इस मामले का बातचीत से हल नहीं हो सकता। मस्जिद किसी दूसरे स्थान पर बन सकती है। इस पर जस्टिस बोबड़े ने कहा कि आप अपना यह पक्ष मध्यस्थता के दौरान रख सकते हैं। इस पर रामलला विराजमान की तरफ से कहा गया कि फिर मध्यस्थता का मतलब क्या है? संविधान पीठ ने कहा ये केवल जमीन का विवाद नहीं है, ये भावनाओं से जुड़ा हुआ है। इसलिए कोर्ट चाहता है कि आपसी बातचीत से इसका हल निकले। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बोबडे ने कहा कि इस मामले में सिर्फ एक मध्यस्थ नहीं हो सकता बल्कि इसके लिए एक पैनल होना चाहिए।
15 वीं सदी से चल रहे मंदिर.मस्जिद मसले में कब क्या हुआ
वर्ष- 1528.29 . बाबर ने एक मस्जिद बनवाई, जिसे बाबरी मस्जिद नाम दिया गया। हिंदू मान्यता के अनुसार इसी जगह भगवान राम का जन्म हुआ था और हिंदू संगठनों का आरोप रहा कि राम मंदिर को तुड़वाकर मस्जिद बनाई गई। हालांकि कई शोधकर्ताओं का कहना है कि असल विवाद की शुरुआत 18 वीं सदी में हुई।
वर्ष- 1853. इस जगह पर मंदिर.मस्जिद को लेकर पहला विवाद, जिसमें हिंदुओं ने आरोप लगाया कि मंदिर को तोड़कर मुस्लिमों ने अपना धार्मिक स्थल बनवाया। इस बात को लेकर पहली बार हिंसा के प्रमाण मिलते हैं।
वर्ष-1859. अंग्रेजी हुकूमत ने मध्यस्थता करते हुए विवादित स्थल का बंटवारा कर दिया और तारों की एक बाड़ खड़ी करना दी ताकि अलग.अलग जगहों पर हिंदू.मस्लिम अपनी.अपनी प्रार्थना कर सकें।
वर्ष- 1885. विवाद ने इतना गंभीर रूप ले लिया कि पहली बार ये अदालत पहुंचा। हिंदू साधु महंत रघुबर दास ने फैजाबाद कोर्ट में बाबरी मस्जिद परिसर में राम मंदिर बनवाने के लिए इजाजत मांगी, हालांकि अदालत ने ये अपील ठुकरा दी। इसके बाद से मामला गहराता गया और सिलसिलेवार तारीखों का जिक्र मिलता है।
वर्ष- 1949. हिंदुओं ने मस्जिद में कथित तौर पर भगवान राम की मूर्ति स्थापित कर दी। तब से हिंदू ही पूजा करने लगे और मुस्लिमों ने मस्जिद में नमाज पढ़नी बंद कर दी।
वर्ष- 1950. फैजाबाद अदालत में एक अपील दायर कर गोपाल सिंह विशारद ने भगवान राम की पूजा की इजाजत मांगी।
वर्ष- 1950. महंत रामचंद्र दास ने मस्जिद में हिंदुओं द्वारा पूजा जारी रखने के लिए याचिका लगाई। इसी दौरान मस्जिद को ढांचा के रूप में संबोधित किया गया।
वर्ष- 1959. इसी महीने निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल के हस्तांतरण के लिए मुकदमा किया।
वर्ष- 1961. इस दौरान तस्वीर थोड़ी बदली और उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद पर मालिकाना हक के लिए मुकदमा कर दिया।
वर्ष-1984. विश्व हिंदू परिषद ने बाबरी मस्जिद का ताला खोलने और इस जगह पर मंदिर बनवाने के लिए अभियान शुरू किया और इसके लिए समिति का गठन हुआ।
फरवरी- 1986. एक अहम फैसले के तहत स्थानीय कोर्ट ने विवादित स्थल पर हिंदुओं को पूजा की इजाजत दे दी और ताले दोबारा खोले गए। इससे नाराज मुस्लिमों ने फैसले के विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी बनाई।
जून- 1989. भारतीय जनता पार्टी ने इस मामले में विश्व हिंदू परिषद को औपचारिक समर्थन दिया।
नवंबर- 1989. लोकसभा चुनाव के कुछ महीनों पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने बाबरी मस्जिद के नजदीक शिलान्यास की इजाजत दी।
25 सितंबर- 1990. बीजेपी अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली ताकि हिंदुओं को इस महत्वपूर्ण मु्द्दे से अवगत कराया जा सके। हजारों कार सेवक अयोध्या में इकट्ठा हुए। इस यात्रा के बाद सांप्रदायिक दंगे हुए।
नवंबर- 1990. बिहार से आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद बीजेपी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी् सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया।
6 दिसंबर- 1992. ये विवाद में ऐतिहासिक दिन के तौर पर याद रखा जाता है, इस रोज हजारों की संख्या में कार सेवकों ने अयोध्या पहुंचकर बाबरी मस्जिद ढहा दी और अस्थायी राम मंदिर बना दिया गया। चारों ओर सांप्रदायिक दंगे होने लगे, जिसमें लगभग 2000 लोगों के मारे जाने बात खुल कर सामने आई।
16 दिसंबर-1992. तब मस्जिद में हुई तोड़.फोड़ की जांच के लिए लिब्रहान आयोग का बनाया गया। जज एमएस लिब्रहान के नेतृत्व में जांच शुरू की गई।
सितंबर- 1997. बाबरी मस्जिद ढहाए जाने की सुनवाई कर रही विशेष अदालत ने इस बारे में 49 लोगों को दोषी करार दिया, जिसमें बीजेपी के कुछ प्रमुख नेताओं का नाम भी शामिल रहे।
साल- 2001. वीएचपी ने मार्च 2002 को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए डेडलाइन के तौर पर मार्क किया।
अप्रैल- 2002. हाईकोर्ट के तीन जजों की पीठ ने अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर सुनवाई आरंभ की।
मार्च अगस्त- 2003. हाई कोर्ट के निर्देश पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अयोध्या में खुदाई की। पुरातत्वविदों ने कहा कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष के प्रमाण मिले हैं। हालांकि इसे लेकर भी अलग.अलग मत थे।
जुलाई- 2009. लिब्रहान आयोग ने गठन के लगभग डेढ़ दशक बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपनी जांच रिपोर्ट सौंपी।
28 सितंबर- 2010. सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को विवादित मामले में फैसला देने से रोकने वाली याचिका खारिज कर दी।
30 सितंबर- 2010. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटा, इसमें एक हिस्सा राम मंदिर, दूसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड और तीसरा निर्मोही अखाड़े को दिया गया।
9 मई- 2011. सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी।
21 मार्च- 2017. सुप्रीम कोर्ट ने आपसी सहमति से विवाद सुलझाने की सलाह दी।
19 अप्रैल- 2017. सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले में बीजेपी और आरएसएस के कई नेताओं के खिलाफ आपराधिक केस चलाने का आदेश दिया।
1 दिसंबर- 2017. लगभग 32 नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के साल 2010 के फैसले को चुनौती दी।
8 फरवरी- 2018. सुप्रीम कोर्ट ने सिविल अपील पर सुनवाई शुरू कर दी।
20 जुलाई- 2018. मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला आरक्षित रखा।
29 अक्टूबर- 2018. सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जल्द सुनाई पर इनकार करते हुए केस जनवरी 2019 तक के लिए टाल दिया।