अगर अनुवाद को लेकर कोई आपत्ति किसी भी पक्षकार के तरफ से उठाई जाती है तो फिर सुनवाई से पहले अनुवाद का काम किया जाएगा और इसमें काफी समय लग सकता है।
कानून रिव्यू/नई दिल्ली
—————————– अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई 29 जनवरी तक के लिए टल गई है। पांच जजों के संविधान पीठ में से जस्टिस ललित ने सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है। अब नई बेंच का गठन होगा और जिसमें जस्टिस ललित की जगह कोई और जज रहेंगे। आज के आदेश में सीजेआई रंजन गोगोई ने लिखा है कि इस मामले में 88 गवाह हैं जिनके बयान 13,886 पन्नों में हैं। 257 एक्जीबिट हैं, इन एक्जीबिट में तीन एएसआई की रिपोर्ट है जो कई पन्नों में है। हाईकोर्ट का जजमेंट 4,304 पन्नों में है जोकि टाइप करने पर 8,533 पन्नों में आता है। इसके अलावा 15 बक्सों में दस्तावेज़ हैं। जिन्हें सील करके एक सीलबन्द कमरे में रखा गया है। इसमें दस्तावेज़ फारसी, संस्कृत, अरबी,गुरुमुखी,उर्दू, हिंदी और कई जुबान में हैं। सीजेआई गोगोई ने सुनवाई के दौरान कहा कि अभी ये साफ नहीं है कि इन सबका अनुवाद हुआ है या नहीं। उन्होंने आगे लिखा कि 10 अगस्त 2015 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश से साफ है कि कुछ पक्षकारों ने अनुवाद को लेकर आपत्ति जताई थी। रंजन गोगोई ने कहा कि इसके मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री को आदेश दिया जाता है कि इन दस्तावेज़ों की जांच करें और ये पता करें कि क्या सारे अनुवाद हो गए हैं ?और सुनवाई के लिए तैयार हैं। अगर ज़रूरत हो तो सुप्रीम कोर्ट के अनुवादक से मदद ली जाए। रजिस्ट्री कोर्ट को बताए कि ये सब करने में कितना समय लगेगा? इस बाबत एक रिपोर्ट कोर्ट को 29 जनवरी 2019 तक सौंपी जाए। यानी अगर अनुवाद को लेकर कोई आपत्ति किसी भी पक्षकार के तरफ से उठाई जाती है तो फिर सुनवाई से पहले अनुवाद का काम किया जाएगा और इसमें काफी समय लग सकता है।