कानून रिव्यू/नई दिल्ली
अर्णब गोस्वामी के खिलाफ मुंबई पुलिस द्वारा की जा रही जांच पर सवाल उठाया गया है। अणर्व के वकील बायकायदा इसकी मशक्कत कोर्ट में करते हुए दिखाई दिए। सुप्रीम कोर्ट मेंं जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की बेंच ने 14.15 अप्रैल को रिपब्लिक टीवी पर प्रसारित हुए कार्यक्रम को लेकर अर्णब गोस्वामी के खिलाफ 2 मई को मुंबई में दर्ज एफआईआर को रद्द कराने के लिए दायर याचिका पर सुनवाई की। याचिकाकर्ता अर्णब गोस्वामी के वकील हरीश साल्वे ने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ कई एफआईआर दर्ज कराए गए हैं। इस मामले में जांच की प्रकृति ने स्पष्ट कर दिया है कि यह याचिकाकर्ता के खिलाफ एक रणनीति है। उन्होंने कहा कि पुलिस ने गोस्वामी से 12 घंटे तक पूछताछ की। क्या इस मामले में दर्ज एफआईआर पर पूछताछ के लिए इतने समय की जरूरत है? नहीं है। वकील हरीश साल्वे ने मुंबई पुलिस पर आरोप लगाया कि अर्णव गोस्वामी से संपादकीय टीम, सामग्री और कंपनी के फंड को लेकर पुलिस ने सवाल पूछे। जांच सही तरीके से नहीं हो रही है। हरीश साल्वे ने यह भी कहा कि पैसा कहां से आया और इस तरह के अन्य सवाल गोस्वामी से पूछे गए? प्रेस की स्वतंत्रता पर इसका असर हो सकता है। उन्होंने पूछा क्या टीवी या प्रिंट में प्रसारण या विचार को लेकर बिना किसी जांच या सुरक्षा उपाय के कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर लगाया जा सकता है? कोई दंगा नहीं हुआ है। आप एक न्यूज प्रसारण या आर्टिकल की जांच कर रहे हैं। क्या आप सीआरपीसी लगाएंगे? दूसरी तरफ महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि अलग.अलग केसों में जांच का तरीका भी यूनीक होता है। सिब्बल ने कहा कि आरोपी ने कहा कि उनके मौलिक अधिकारों का हनन हुआ, क्योंकि उन्हें मोबाइल फोन का इस्तेमाल नहीं करने दिया गया और उन्हें पत्रकारिता के काम में शामिल नहीं होने दिया गया। उनसे सम्मिलित रूप से सवाल पूछे गए। क्या यह उत्पीड़न है? सिब्बल ने आगे कहा कि इस सांप्रदायिक हिंसा और सांप्रदायिकता बेचना रोकिए। आपको शालीनता और नैतिकता का पालन करने की जरूरत है। यह आर्टिकल 19 का स्पष्ट उल्लंघन है। आप चीजों को सनसनीखेज बनाकर लोगों को कलंकित कर रहे हैं।