-विमल वधावन
एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट
अवैध निर्माण पर निर्णय तो निर्माण कार्य पूरा होने के बाद ही सम्बन्धित सरकारी विभाग को लेना होता है जब उस बिल्डिंग में प्रवेश का प्रमाण पत्र जारी किया जाता है। यदि निर्माण कार्य अनुमति दी गई योजना के अनुसार नहीं होगा तो सम्बन्धित विभाग अपने आप उस अवैध कार्य पर निर्णय लेगा।
भारत के वर्तमान कानून मंत्री सदानन्द गौड़ा मार्च, 2002 में कर्नाटक विधानसभा में विपक्ष के उपनेता थे। उस अविध में उन्होंने मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखकर बंगलौर विकास प्राधिकरण से एक प्लाॅट के आबंटन की प्रार्थना की। अगस्त, 2006 में उन्हें 50 फुट चैड़े और 80 फुट लम्बे अर्थात् कुल 4000 वर्गफुट का प्लाॅट बंगलौर के सैक्टर-3 में आबंटित कर दिया गया। इस प्रकार फरवरी, 2007 में बंगलौर विकास प्राधिकरण ने उनके पक्ष में एक विक्रयनामा हस्ताक्षर कर दिया तथा प्लाॅट का कब्ज़ा उन्हें सौंप दिया। इसी प्रकार जीवाराज नामक व्यक्ति ने भी सितम्बर, 2004 को कर्नाटक के मुख्यमंत्री को एक प्लाॅट आबंटन के लिए प्रार्थना की थी। उसकी प्रार्थना स्वीकार करते हुए उसे भी 4000 वर्ग फुट का प्लाॅट आबंटित कर दिया गया। उसके प्लाॅट को बाद में सदानन्द गौड़ा के प्लाॅट के बराबर वाले प्लाॅट के रूप में परिवर्तित कर दिया गया। जीवाराज को नवम्बर, 2008 में सभी औपचारिकताएँ पूरी करने के बाद प्लाॅट का कब्ज़ा प्राप्त हो गया। जून, 2009 में सदानन्द तथा जीवाराज दोनों ने बंगलौर विकास प्राधिकरण को अपने दोनों प्लाॅट इकट्ठे करके निर्माण की अनुमति मांगी। सितम्बर, 2009 में प्राधिकरण ने उनकी यह प्रार्थना अस्वीकार कर दी। इसके बाद दोनों अलग-अलग बिल्डिंग निर्माण योजनाओं को स्वीकृत करवाने की प्रक्रिया प्रारम्भ की। इस बिल्डिंग योजना में भूतल के ऊपर दो और मंजिलों के निर्माण की स्वीकृति प्राप्त हो गई। इस प्रकार दोनों प्लाॅटों पर निर्माण कार्य प्रारम्भ हो गया।
अगस्त, 2011 को ‘बंगलौर मिरर’ नामक समाचार पत्र में यह समाचार प्रकाशित हुआ कि सदानन्द गौड़ा अपने प्लाॅट पर जीवाराज के प्लाॅट को जोड़कर अनधिकृत बिल्डिंग का निर्माण कर रहे हैं। चित्र में दोनों प्लाॅटों पर एक संयुक्त बिल्डिंग बनती हुई दिखाई गई। यह बिल्डिंग पांच मंजिला थी। इसके साथ ही समाचार में यह भी आरोप था कि इसका प्रयोग आबंटित नियमों के अनुसार आवासीय नहीं अपितु व्यवसायिक उद्देश्यों के लिए किया जायेगा। इस समाचार पत्र की रिपोर्ट के आधार पर नागालक्ष्मीबाई ने कर्नाटक उच्च न्यायालय में 4 अगस्त, 2011 को ही एक जनहित याचिका प्रस्तुत की जिसमें इन सारी अनियमितताओं का उल्लेख करते हुए सदानन्द गौड़ा का प्लाॅट रद्द करने की प्रार्थना की गई। इस याचिका में बंगलौर प्राधिकरण सहित राज्य के चार सरकारी विभागों को प्रतिवादी बनाया गया। 4 अगस्त, 2011 को जब इस जनहित याचिका पर उच्च न्यायालय में सुनवाई हुई उसी दिन संयोगवश सदानन्द गौड़ा मुख्यमंत्री बन गये।
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने इन तीनों बिन्दुओं पर सरकारी विभागों से स्पष्ट उत्तर माँगा कि प्रथम, क्या दोनों प्लाॅटों को जोड़कर एक निर्माण किया जा रहा है? द्वितीय, क्या तीन मंजिलों की अनुमति के बावजूद पांच मंजिलों का निर्माण किया जा रहा है? तृतीय, क्या आवासीय प्लाॅट होने के बावजूद इस निर्माण का प्रयोग व्यवसायिक होगा?
दूसरी तरफ अदालत के बाहर अब मुख्यमंत्री सदानन्द गौड़ा तथा जीवाराज ने इस जनहित याचिका के बावजूद बिल्डिंग के निर्माण योजना में परिवर्तन की अनुमति मांगी। सरकारी विभागों ने सितम्बर-अक्टूबर, 2011 में इन परिवर्तनों की अनुमति देते हुए निर्माण योजना में बेसमेंट, भूतल तथा तीन और मंजिलों के निर्माण की अनुमति दे दी तथा उच्च न्यायालय को इस सम्बन्ध में सूचित किया। हालांकि विकास प्राधिकरण ने अब भी दोनों प्लाटों के एकीकरण की अनुमति नहीं दी थी। सरकार ने यह भी कहा कि अभी बिल्डिंग का निर्माण पूरा नहीं हुआ इसलिए ऐसा अनुमान लगाना निराधार है कि इसका व्यवसायिक प्रयोग किया जायेगा। इस सम्बन्ध में निर्माण पूरा होने के बाद ही बंगलौर आयुक्त बिल्डिंग के प्रयोग की अनुमति देंगे। सरकारी विभागों ने यह भी कहा कि छानबीन से निःसंदेह कुछ परिवर्तित निर्माण देखने में मिले हैं, जिन पर कार्यवाही की जायेगी। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने अक्टूबर, 2012 में नागालक्ष्मी की जनहित याचिकाओं को स्वीकार करते हुए दिये अपने निर्णय में कहा कि सदानन्द गौड़ा तथा जीवाराज ने दोनों प्लाॅटों को इकट्ठा करके निर्माण प्रारम्भ किया है जबकि इसकी अनुमति स्पष्ट रूप से अस्वीकार कर दी गई है। अतः यह अपने आपमें विक्रयनामें की शर्तों का उल्लंघन है। इसके अतिरिक्त बिल्डिंग निर्माण योजना की अनुमति के अनुसार भी निर्माण कार्य नहीं किया जा रहा। इस प्रकार कर्नाटक उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के सम्बन्धित विभागों को विक्रयनामें की शर्तों के उल्लंघन के विरुद्ध कार्यवाही का निर्देश दिया।
अब वर्ष 2012 में सदानन्द गौड़ा तथा जीवाराज ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अपनी अपीलें प्रस्तुत की और राजनीतिक संयोग से वर्ष 2014 में श्री सदानन्द गौड़ा नरेन्द्र मोदी सरकार में रेलमंत्री बने और नवम्बर, 2014 में उन्हें कानूनमंत्री बना दिया गया। सितम्बर, 2015 में इन अपीलों पर न्यायमूर्ति श्री मदन लोकुर तथा श्री एस.ए. बोबडे की खण्डपीठ ने सुनवाई सम्पूर्ण करते हुए अपना निर्णय दिया। सर्वोच्च न्यायालय के विद्वान न्यायाधीशों ने अपने तकनीकी तर्कों के आधार पर कहा कि प्लाॅट आबंटन की शर्तों में यह कहा गया है कि कोई अपने प्लाॅट का विभाजन नहीं करेगा या एक प्लाॅट पर एक से अधिक भवन नहीं बनायेगा या इन पर किये गये निर्माण को दुकान या गोदाम की तरह प्रयोग नहीं किया जायेगा। विद्वान न्यायाधीशों के अनुसार इन शर्तों में दो प्लाॅटों पर एक भवन न बनाने की कोई शर्त नहीं है। बंगलौर विकास प्राधिकरण द्वारा बेशक सदानन्द गौड़ा तथा जीवाराज द्वारा दोनों प्लाॅटों को जोड़कर निर्माण करने की अनुमति रद्द किये जाने के पत्र का उल्लंघन सामने आता है परन्तु याचिका में पत्र के उल्लंघन को आधार नहीं बनाया गया। विद्वान न्यायाधीशों ने कानूनमंत्री की इस व्यक्तिगत याचिका पर यह तकनीकी दृष्टिकोण अपनाते हुए कहा कि प्राधिकरण के पत्र के उल्लंघन पर याचिकाकत्र्ता ने किसी प्रकार की बहस नहीं की। बिल्डिंग के अवैध निर्माण के सम्बन्ध में विद्वान न्यायाधीशों ने कहा कि जब बिल्डिंग का निर्माण ही पूरा नहीं हुआ तो उसकी अवैधता के बारे में विचार करने का कोई आधार नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि किसी बिल्डिंग के निर्माण करते समय कोई व्यक्ति कभी भी उसमें परिवर्तन कर सकता है। इसलिए अवैध निर्माण पर निर्णय तो निर्माण कार्य पूरा होने के बाद ही सम्बन्धित सरकारी विभाग को लेना होता है जब उस बिल्डिंग में प्रवेश का प्रमाण पत्र जारी किया जाता है। यदि निर्माण कार्य अनुमति दी गई योजना के अनुसार नहीं होगा तो सम्बन्धित विभाग अपने आप उस अवैध कार्य पर निर्णय लेगा। इस प्रकार सर्वोच्च न्यायालय ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के निर्णय को रद्द कर दिया।