सुप्रीम कोर्ट का फैसला
कानून रिव्यू/नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी अन्य व्यक्ति द्वारा आंशिक बिक्री या स्टांप ड्यूटी का भुगतान,बिक्री या लेन.देन को बेनामी मानने के लिए एकमात्र मापदंड नहीं हो सकता है। इस मामले में कोर्ट एक निचली कोर्ट व हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर अपील पर विचार कर रही थी,जिसमें कहा गया था कि केस की संपत्ति बेनामी लेन.देन है क्योंकि संपत्ति की खरीद के समय किसी अन्य व्यक्ति नारायणसामी मुदलियार द्वारा संपत्ति के मूल्य या बिक्री का आंशिक भुगतान किया गया था। यह भी देखा गया कि सेल डीड के निष्पादन के समय स्टैंप ड्यूटी भी मुदलियार द्वारा खरीदी गई थी। कोर्ट ने पाया कि मुदलियार ने संपत्ति के मूल्य या बिक्री का आंशिक भुगतान शायद बतौर पति किया है। जस्टिस एल0 नागेश्वर रॉव व जस्टिस एम0आर0 शाह की पीठ ने कहा कि. एक लेन.देन की प्रकृति को बेनामी मानने के लिएए उस व्यक्ति का इरादा जिसने खरीददारी के पैसे में योगदान किया है,लेन.देन की प्रकृति का निर्धारण करता है। व्यक्ति की मंशा,जिसने खरीद के पैसे में योगदान दिया है। वह आसपास की परिस्थितियों,दोनों पक्षकारों के बीच के संबंध,लेन.देन का उद्देश्य व उसके बाद के आचरण के आधार पर तय की जानी चाहिए। पीठ ने पिछले दिनों दिए गए एक फैसले का हवाला भी दिया, जिसमें कहा गया था कि किसी लेन.देन की प्रकृति को बेनामी मानने के निम्न छह परिस्थितियों को दिशा.निर्देश की तरह लिया जाए।. .खरीद के लिए दिया गया पैसा किस स्रोत से आया है।.खरीद के बाद संपत्ति की प्रकृति व उस पर कब्जा या अधिकार,.उद्देश्य अगर कोई है,जो लेन.देन को बेनामी बना दे .दावेदारों व कथित बेनामीदार के बीच की स्थिति व उनके बीच का संबंध अगर कोई है तो .बिक्री के बाद शीर्षक डीड या टाईटल डीड किसकी हिरासत में है .बिक्री के बाद सपंत्ति के क्रय.विक्रय या चाल.चलन में संबंधित पक्षों का आचरण बेनामी संशोधित अधिनियम नहीं है पूर्वप्रभावी इस मामले में एक अन्य विवाद यह भी उठाया गया कि बेनामी लेन.देन निषेध अधिनियम 1988 की धारा 3 के अनुसार यह माना जाता था कि पत्नी व बच्चों के नाम पर किया गया लेन.देन उनके लाभ के लिए है, पर प्रतिवादियों का यह तर्क था कि बेनामी संशोधन अधिनियम 2016 के बाद से बेनामी लेन.देन अधिनियम 1988 की धारा 3 (2 ) के वैधानिक अनुमान,जो कि खंडनयोग्य था,को भुला दिया गया है। वहीं वैधानिक लेन.देन की दलील कि पत्नी व बच्चों को लाभ पहुंचाने के लिए उनके नाम खरीदकी गई, इस मामले में लागू नहीं होती है। इस संबंध में पीठ ने कहा कि. उपर्युक्त कथन को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। बिनापानी पॉल के मामले में यह कोर्ट मान चुकी है कि बेनामी लेन.देन निषेध अधिनियम को पूर्वव्यापी तरीके से लागू नहीं किया जाएगा।