न्याय मंदिरों की तरंगे
मुस्लिम बुद्धिजीवी वर्ग का यह दायित्व है कि वे अब कुरान के मौलिक शांतिप्रिय सिद्धान्तों को उजागर करने के लिए तथा आतंकवाद के साथ-साथ अन्य सभी असामाजिक गतिविधियों के विरुद्ध अपनी आवाज बुलन्द करें जिससे भावी पीढ़ी के सामने भी यह धारणा स्थापित न हो कि आतंकवाद इस्लाम की रक्षा के लिए चलाया जा रहा है।
सारे विश्व में आतंकवाद अपने पैर पसार चुका है। यह सामान्य धारणा बनती जा रही है कि आतंकवाद का इस्लाम से गहरा नाता है। हाल ही में इन्हीं इस्लामी आतंकवादियों ने इस्लामाबाद के एक विद्यालय के अन्दर घुसकर जिस तरह से सैकड़ों मुस्लिम बच्चों को बेरहमी से हिंसा का शिकार बनाया उसे देखकर किसी भी व्यक्ति का दिल दहल जाना असामान्य नहीं था। इण्टरनेट पर एक साक्षात्कार में इसी घटना में मृत एक बच्चे की माँ को यह कहते हुए सुना गया कि अगर ये आतंकवादी इस्लामी हैं तो उन्होंने मुसलमानों के बच्चों को क्यों मारा, यदि मारना ही था तो भारत में जाकर किसी स्कूल में हमला करते और गैर-मुस्लिम बच्चों को मारते?
एक तरफ तो इस घटना ने इस्लाम और आतंकवाद पर चिन्तन के लिए प्रेरित किया तो दूसरी तरफ उस माँ की नैतिकता पर भी तरस आया जो अपने बच्चे के गम में दूसरे बच्चों के न मरने से अधिक परेशान थी। माँ की मानसिकता तो अपने बच्चे के मोह से ग्रसित होने का बहाना भी प्रस्तुत कर सकती है परन्तु इन आतंकवादियों के द्वारा इस्लाम का मोह कौन सा ऐसा आधार प्रस्तुत करता है जिससे ये आतंकवादी अपने हिंसक कार्यों को इस्लाम की रक्षा में उठाया गया कदम सिद्ध कर सके।
इस चिन्तन में हमने इस्लाम का अध्ययन करने का प्रयास प्रारम्भ किया तो इण्टरनेट पर एक पुस्तक सामने आई ‘इस्लाम का अपहरण’ ;भ्परंबापदह व िप्ेसंउद्ध यह पुस्तक एदिद सफर ;।पकपक ैंंितद्ध के नाम से प्रकाशित की गई है। इसी नाम से एक वैबसाईट ;ंपकपकेंंितण्बवउद्ध भी देखने को मिली। इस वैबसाईट पर इस्लाम से सम्बन्धित अनेकों ग्रन्थों का प्रचार देखने को मिला।
‘इस्लाम का अपहरण’ नामक पुस्तक में लेखक ने यह सिद्ध किया है कि कुरान के इस्लाम का अर्थ है शान्ति। जो व्यक्ति कुरान में विश्वास रखता है उसे स्वयं भी शान्त होना चाहिए और अन्यों को भी शान्त रहने में सहायता करनी चाहिए। इस पुस्तक में कुरान के अनेकों संदर्भ प्रस्तुत करके यह सिद्ध किया गया है कि केवल मुसलमान होने से कोई इस्लामी नहीं हो जाता जब तक ईश्वर की कृपा से इस्लाम अर्थात् पूर्ण शांति उसके हृदय में प्रवेश न कर जाये। परन्तु इस्लाम का जो रूप आज दुनिया मंें दिखाई दे रहा है वह कुरान की कल्पना का इस्लाम नहीं हो सकता।
कुरान वास्तव में कई पूर्व इस्लामिक महान लोगों के जीवन चरित्र का संग्रह है जैसे – अब्राहम, इस्माईल, ईसाक, जैकब, डेविड, सोलमन, मोसिस तथा जीसस। ये सब महान पुरुष अरबी भाषी नहीं थे परन्तु नैतिक उच्चता के आधार पर ईश्वर भक्ति में लीन रहे। कुरान में इन सब महापुरुषों की जीवन पद्धति की प्रेरणाओं को समाहित करके मानव जीवन में शांति की स्थापना के लिए एक नया ग्रन्थ प्रस्तुत किया। कुरान ने सामान्य पूजा पद्धति से भिन्न एक ऐसे मार्ग को प्रस्तुत किया जिसमें स्वयं को पवित्र रखकर अपने कत्र्तव्यों का पालन करना और पर-कल्याण में लगे रहना ही एक श्रेष्ठ जीवन कहा गया। कुरान में इस जीवन पद्धति को ‘दीन’ कहा गया। ‘दीन-ए-इलाही’ कुरान का प्रमुख निर्देश है अर्थात् एक ऐसी जीवन पद्धति जो सदैव पर-कल्याण में लगी रहे।
कुरान में व्यक्तिगत अधिकार, व्यक्ति की स्वतन्त्रता, प्रबल सहनशक्ति, मानवीय रिश्तों का महत्त्व, जाति भेद के विरुद्ध चेतावनी, जीवन में खुशियाँ बांटना, एक दूसरे के साथ हमदर्दी दिखाना तथा सामाजिक एकता के साथ-साथ विश्व में शांति स्थापित करना आदि उपदेश जगह-जगह पर मिलते हैं।
अरबी भाषा में लिखी गई कुरान की व्याख्या अधिकतर अरबी भाषियों ने ही की है। किसी पुस्तक का अनुवाद करना सरल कार्य नहीं है। अनुवादक पुस्तक के मूल लेखक की भावनाओं से यदि पूरी तरह ओत-प्रोत नहीं होता तो अक्सर अनुवाद करते हुए वह अपनी भिन्न बुद्धि का प्रयोग भी लेखक के नाम पर ही कर जाता है।
कुरान के साथ भी ऐसा ही हुआ। कुरान के अनुवादकों ने कुरान के असली इस्लाम अर्थात् परमात्मा की मूल शक्ति के साथ जोड़ने के बजाय लोगों को इस्लाम रूपी संगठन के साथ जोड़ने का अभियान चला दिया।अरबी भाषा क्योंकि अरब देशों की भाषा थी इसलिए सबसे पहला झूठ तो यह बोला गया कि अरबी भाषा परमात्मा की भाषा है। कोई भी विवेकशील प्राणी सरलता से यह स्वीकार करेगा कि परमात्मा की कोई भाषा नहीं होती। परमात्मा केवल व्यक्ति के भाव के अनुसार उसे प्रेरित करता है। जब व्यक्ति के मन में प्रेरणा प्राप्त होती है तो स्वाभाविक है कि वह उस प्रेरणा को अपनी किसी एक भाषा में व्यक्त करेगा। इसका अभिप्राय यह नहीं निकलना चाहिए कि उस महान सिद्ध पुरुष की बोली जाने वाली भाषा ही परमात्मा की भाषा है।
‘इस्लाम का अपहरण’ नामक पुस्तक यह स्पष्ट स्थापित कर रही है कि कुरान का वह इस्लाम जिसका अर्थ शांति देना और शांति में रहना होता है उसका अपहरण कर लिया गया है और उसका स्थान एक ऐसे अरबी पंथ ने लिया है जो इस्लाम के नाम पर अपनी ताकत बढ़ाना ही अपना परम कत्र्तव्य मान बैठा है। यह पुस्तक वास्तव में कुरान और इस्लाम के मूल स्वरूप के प्रति हमें गद-गद कर देती है। इस पुस्तक का अध्ययन करने के बाद मैं इस विचार पर पहुँचा हूँ कि आतंकवाद अरब देशों का अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी ताकत बढ़ाने के उद्देश्य से लागू किया गया केवल एक राजनीतिक षड्यन्त्र है।
अरब राजनीति ने कुरान के जिहाद शब्द को गैर-मुस्लिम लोगों और गैर-इस्लामिक विश्वासों के विरुद्ध जिहाद अभियान बना दिया जबकि कुरान का जिहाद केवल पाप आचरण और पापियों के विरुद्ध था। बस, यहीं से प्रारम्भ होता है अरबी आतंकवाद जिसे उन्होंने इस्लाम की रक्षा के साथ जोड़कर सारी दुनिया के मुसलमानों को गुमराह कर रखा है।
इन परिस्थितियों में इस्लाम के बुद्धिजीवी वर्ग को यह विचार करना चाहिए कि क्या वे आतंकवाद को इस्लाम का रक्षक स्वीकार करते हैं? क्या वे इस्लाम के नाम पर सारी दुनिया में चल रही मार-काट को मूक समर्थन देना चाहते हैं? आतंकवाद पूरी तरह से एक अन्तर्राष्ट्रीय अपराधी षड्यन्त्र है। आतंकवाद से कभी भी इस्लामिक विचारों को बल नहीं मिल सकता अपितु आतंकवाद के चलते इस्लाम की मूल आध्यात्मिक धारणा धूमिल होती जा रही है। मुस्लिम बुद्धिजीवी वर्ग का यह दायित्व है कि वे अब कुरान के मौलिक शांतिप्रिय सिद्धान्तों को उजागर करने के लिए तथा आतंकवाद के साथ-साथ अन्य सभी असामाजिक गतिविधियों के विरुद्ध अपनी आवाज बुलन्द करें जिससे भावी पीढ़ी के सामने भी यह धारणा स्थापित न हो कि आतंकवाद इस्लाम की रक्षा के लिए चलाया जा रहा है बल्कि भावी पीढ़ी को यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि सच्चे मुसलमान को कुरान का अध्ययन भी एक वैज्ञानिक शोधार्थी की तरह करना चाहिए जिससे कुरान और इस्लाम के नाम पर किसी भी कुरीति को समाप्त करने में मदद मिले।
सारे विश्व के बुद्धिजीवी मुसलमान इस्लाम के नाम पर चल रहे आतंकवाद के विरुद्ध जोरदार आवाज़ क्यों नहीं उठाते? यदि मुस्लिम बुद्धिजीवी डर के कारण आतंकवाद का विरोध नहीं करते तो उन्हें यह स्मरण रखना चाहिए कि आज यदि उनके पड़ोसी के विरुद्ध कोई अपराध होता है और वे चुप रहते हैं तो उन्हें समझ लेना चाहिए कि अगली बारी उन्हीं की है। तर्क की किसी भी दृष्टि से मुस्लिम बुद्धिजीवी स्वयं अपने आपको भी इस बात से संतुष्ट नहीं कर पायेंगे कि उन्होंने अपने प्रिय धर्मग्रन्थ कुरान का अपहरण ऐसे उग्रवादी संगठनों के हाथ होने दिया जो मानवता के नाम पर इतना नीचे गिरे हुए हैं कि कुरान या इस्लाम का कल्याण करने की सच्चाई को वे कभी छू भी नहीं पायेंगे।
विमल वधावन योगाचार्य, एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट