सुप्रीम कोर्ट की पत्नी को खुदकुशी के लिए उकसाने के मामले में आरोपी पति की दोषसिद्धि को निरस्त करते हुए टिप्पणी
कानून रिव्यू/नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने 1997 में अपनी पत्नी को खुदकुशी के लिए उकसाने के मामले में आरोपी पति की दोषसिद्धि को निरस्त करते टिप्पणी की है कि उकसावे के अपराध में दोष निर्धारित करने के लिए किसी खास अपराध को अंजाम देने की मनोदशा अनिवार्य रूप से दिखनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपराधिक मन स्थिति यानी ;मंशा के तत्वों के परोक्ष रूप से मौजूद होने की बात नहीं मानी जा सकती और उनका दिखना तथा सुस्पष्ट होना भी जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 306 ;खुदकुशी के लिए उकसाना के तहत पति को दोषी ठहराए जाने के फैसले को बरकरार रखा था। पीठ में न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय भी शामिल हैं। पीठ ने कहा कि सभी अपराधों में आपराधिक मनोंस्थिति को साबित करना होता है। भारतीय दंड संहिता की धारा 107 के तहत उकसावे के अपराध को साबित करने के लिये किसी खास अपराध को अंजाम देने की मनोदशा जरूर दिखनी चाहिएए ताकि दोष निर्धारित हो सके। कोर्ट ने कहा कि आपराधिक मनोस्थिति को साबित करने के लिए यह स्थापित करने या दिखाने के लिये कोई साक्ष्य होना चाहिए कि व्यक्ति कुछ गलत मंशा रखे हुए था और उस मनोदशा में उसने अपनी पत्नी को खुदकुशी के लिए उकसाया। आरोपी की पत्नी के पिता के बयान के आधार पर 1997 में बरनाला में इस संबंध में एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी और अभियोजन ने आरोप लगाया था कि पर्याप्त दहेज नहीं दिए जाने को लेकर विवाहिता को परेशान किया जाता था।