उच्च न्यायालयों का कार्य जिला स्तर की अदालतों के निर्णयों के विरुद्ध अपीलें सुनने के साथ-साथ केन्द्र और राज्य सरकारों को रिट् आदेश जारी करना भी है। रिट् अधिकार के माध्यम से अनेकों प्रकार के जनहित मामले भी प्रकाश में आ जाते हैं। उच्च न्यायालयों का दूर-दूर स्थानों पर कार्य करना जनहित मुकदमों की दृष्टि से सुविधाजनक नहीं होता
भारत में 29 राज्य और 6 केन्द्र शासित प्रदेश हैं जबकि इन 35 प्रशासनिक ईकाईयों के लिए केवल 24 उच्च न्यायालय स्थापित हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद-214 के अनुसार प्रत्येक राज्य के लिए एक अलग उच्च न्यायालय होना चाहिए। उच्च न्यायालयों से सम्बन्धित प्रावधान अनुच्छेद-214 से 232 तक दिये गये हैं।
अनुच्छेद-231 के अनुसार संसद दो या अधिक राज्यों के लिए एक ही उच्च न्यायालय स्थापित कर सकती है। इस प्रावधान के अनुसार आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों के लिए एक हैदराबाद उच्च न्यायालय है। महाराष्ट्र, गोवा, दादरा और नागर हवेली, दमन और द्वीव सहित चार प्रशासनिक ईकाईयों के लिए बम्बई उच्च न्यायालय है जिसकी पीठ मुम्बई के अतिरिक्त औरंगाबाद, नागपुर, पणजी जैसे चार स्थानों पर कार्य करती है। पश्चिम बंगाल तथा अण्डमान निकोबार के लिए भी एक कलकत्ता उच्च न्यायालय है, जबकि इस उच्च न्यायालय की भी दो पीठ हैं – कलकत्ता तथा पोर्ट ब्लेयर। पूर्वी भारत के आसाम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैण्ड तथा मिजोरम सहित चारों राज्यों के लिए गुआहाटी उच्च न्यायालय है जिसकी पीठ गुआहाटी के साथ-साथ एज़वाल, इटानगर तथा कोहिमा में भी कार्य करती हैं। केरल तथा लक्षद्वीप के लिए एक केरल उच्च न्यायालय है। तमिलनाडु तथा पुद्दुचेरी के लिए भी एक मद्रास उच्च न्यायालय है जिसकी पीठ चेन्नई के अतिरिक्त मदुरै में भी कार्य करती है। पंजाब और हरियाणा राज्यों के लिए भी एक संयुक्त उच्च न्यायालय है।
इसके विपरीत चार उदाहरण ऐसे भी हैं जहाँ एक ही राज्य में उच्च न्यायालय की एक से अधिक पीठ कार्य करती हैं। उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय की पीठ इलाहाबाद तथा लखनऊ में स्थापित है। कर्नाटक उच्च न्यायालय की तीन पीठें बंगलौर, धारवाड़ तथा गुलबर्गा में स्थापित है। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की भी तीन पीठें जबलपुर, ग्वालियर तथा इंदौर में स्थापित है। इसी प्रकार राजस्थान उच्च न्यायालय की भी दो पीठें जयपुर तथा जोधपुर में कार्य करती हैं।
पिछले लगभग 13 वर्ष से हरियाणा विधानसभा द्वारा अलग उच्च न्यायालय के गठन का प्रस्ताव दो बार पारित करके केन्द्र सरकार को भेजा जा चुका है। केन्द्र सरकार ने सदैव इन प्रस्तावों के प्रति सहमति भी व्यक्त की है। सर्वोच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीशों, उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों तथा मुख्यमंत्रियों के विगत सम्मेलन में भी हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल खट्टर ने पुनः यह विषय उठाया। वास्तव में 1966 में पंजाब हरियाणा के बंटवारे के समय ही यह निर्धारित हुआ था कि दोनों राज्य एक ही उच्च न्यायालय को साझा करेंगे। हरियाणा राज्य का प्रमुख तर्क यह है कि उच्च न्यायालय में लम्बित मामलों में अधिक मामले हरियाणा से सम्बन्धित हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि हरियाणा राज्य के लिए न्यायाधीशों की संख्या कम रखी गई है। जबकि हरियाणा में जिला एवं सत्र न्यायालयों की संख्या पंजाब से अधिक है। उच्च न्यायालय में पंजाब के लिए 60 प्रतिशत और हरियाणा के लिए 40 प्रतिशत न्यायाधीशों का आबंटन किया जाता है। इस कारण हरियाणा राज्य से सम्बन्धित मुकदमों का निपटारा उतनी जल्दी नहीं हो पाता जितनी जल्दी पंजाब के मुकदमों का निपटारा होता है।
हरियाणा की यदि मुख्य समस्या न्यायाधीशों की कम संख्या का होना ही है तो इसका उपाय वर्तमान संयुक्त उच्च न्यायालय में भी हो सकता है। न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाकर पंजाब और हरियाणा राज्यों के लिए बराबर संख्या में न्यायाधीश दिये जा सकते हैं। इन राज्यों में उच्च न्यायालय की पीठ का लोगों की पहुँच से दूर होना भी कोई कारण नहीं है। हरियाणा और पंजाब दोनों राज्यों को लगभग 300 किलोमीटर की लम्बाई में मापा जा सकता है। हरियाणा के किसी कोने से भी चण्डीगढ़ उच्च न्यायालय पहुँचना 200 किलोमीटर से अधिक नहीं होगा। जब हरियाणा को भी अपने उच्च न्यायालय का भवन चण्डीगढ़ के इसी उच्च न्यायालय में ही सांझा करना है तो अलग उच्च न्यायालय से अधिक प्रबल माँग तो इस बात की होनी चाहिए कि हरियाणा के जिला एवं सत्र न्यायालयों के अनुपात में ही उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या निर्धारित की जाये। वैसे तात्कालिक रूप में हरियाणा को राज्य के दक्षिण पश्चिम हिस्से के लिए एक अलग पीठ तो दी ही जा सकती है। केन्द्र सरकार के लिए हरियाणा की यह माँग ठुकराने का कोई आधार भी नहीं होगा।
उत्तर प्रदेश के पश्चिमी हिस्से से भी अलग पीठ की माँग काफी लम्बे समय से उठाई जा रही है। गाजियाबाद के निवासियों को यदि उच्च न्यायालय में मुकदमा करना पड़े तो उन्हें लगभग 600 किलोमीटर से भी अधिक की यात्रा करनी पड़ती है। परन्तु विडम्बना है कि उत्तर प्रदेश में इस माँग को लेकर जनक्रांतियाँ तो बहुत होती हैं, कभी-कभी यह जनक्रांतियाँ हिंसक आन्दोलन का भी रूप ले लेती हैं परन्तु उत्तर प्रदेश सरकार ने कभी इस विषय को गम्भीरता के साथ केन्द्र सरकार के समक्ष नहीं रखा। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के निवासियों को सुलभ न्याय उपलब्ध कराने के लिए इस हिस्से में भी उच्च न्यायालय की एक पीठ की स्थापना अत्यन्त आवश्यक है।
उच्च न्यायालयों का कार्य जिला स्तर की अदालतों के निर्णयों के विरुद्ध अपीलें सुनने के साथ-साथ केन्द्र और राज्य सरकारों को रिट् आदेश जारी करना भी है। रिट् अधिकार के माध्यम से अनेकों प्रकार के जनहित मामले भी प्रकाश में आ जाते हैं। उच्च न्यायालयों का दूर-दूर स्थानों पर कार्य करना जनहित मुकदमों की दृष्टि से सुविधाजनक नहीं होता। गाजियाबाद क्षेत्र के किसी नागरिक को यदि जनहित मामला उठाना हो तो उसके लिए बार-बार 600 किलोमीटर की यात्रा करना सरल नहीं होगा। इसलिए ऐसे क्षेत्रों से सम्बन्धित जनहित मामले भी कभी प्रकाश में नहीं आ पाते। इसी प्रकार हरियाणा में यदि किसी को पलवल, फरीदाबाद, होडल तथा मेवात जैसे क्षेत्रों से सम्बन्धित कोई जनहित मामला उठाना हो तो ऐसे नागरिकों के लिए भी प्रत्येक सुनवाई पर चण्डीगढ़ जाना सरल कार्य नहीं होगा। इसलिए केन्द्र सरकार को तो सारे देश के लिए एक समान फार्मुला बनाना चाहिए कि किसी भी जिले के निवासी के लिए उच्च न्यायालय पहुँचना 100-150 किलोमीटर या अधिकतम 200 किलोमीटर से अधिक न हो