विदेशी लॉ फर्म नही कर सकती, भारत में प्रैक्टिस
- कानून रिव्यू/नई दिल्ली
————————–कानून के क्षेत्र विदेश लॉ फर्मो के तेजी से पैर पसारने की कवायद को एक बडा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि विदेशी लॉ फर्म भारत में प्रैक्टिस नही कर सकती। लेकिन वो अपने क्लाइंट को सलाह देने के लिए भारत आ सकते हैं, मतलब उड़कर आएं और उड़कर जाएं उन्हें दफ्तर बनाने की इजाजत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और रोहिंग्टन नरीमन की बेंच ने 2012 के मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को आंशिक तौर पर सही ठहराया है। विदेशी लॉ फर्म कुछ वक्त के लिए भारत आकर सलाह दे सकते हैं। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय आर्बिट्रेशन मामलों के लिए विदेशी वकीलों के भारत आने पर कोई ऐतराज नहीं है। बस शर्त यही है कि भारतीय कानूनी कोड के नियम उन पर भी लागू होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने एडवोकेट एक्ट 1961 के प्रावधानों में भी बदलाव किया है। जिसमें अंतरराष्ट्रीय कारोबारी मामलों में विदेशी वकीलों पर पूरी तरह पाबंदी थी। बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। वर्ष 2012 में दिए गए फैसले में मद्रास हाईकोर्ट ने कहा था कि विदेशी वकील भारतीय कानून और रेगुलेशन के हिसाब से क्लाइंट को सलाह देने भारत आ सकते हैं। जनवरी में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया था कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया विदेशी कानूनी फर्म और विदेशी वकीलों के लिए नियम कायदे बनाए। केंद्र सरकार ने कहा था कि बार काउंसिल ऐसा नहीं कर पाती तो फिर सरकार इस प्रक्रिया में दखल देगी। लेकिन बार काउंसिल ने विदेशी वकील और फर्मों को भारत में प्रैक्टिस की इजाजत देने पर ऐतराज जताया। हालांकि उसने कहा है कि वो इसके खिलाफ नहीं है। यदि ऐसा होता है तो विदेशों में भी भारतीय वकीलों को इसकी अनुमति मिलनी चाहिए, साथ ही इन वकीलों पर एडवोकेट एक्ट लागू हो। देश आकर सलाह देने की नीति भी भारतीय नियम कायदों के हिसाब से होनी चाहिए। बार काउंसिल ने दलील दी कि फ्लाई इन फ्लाई आउट पॉलिसी एडवोकेट एक्ट 1961 का उल्लघंन है। इस एक्ट के मुताबिक भारत में वकालत के लिए सिर्फ वकीलों का सिर्फ एक ही दर्जा होगा इसका मतलब है ऐसे वकील जो राज्य बार काउंसिल में मेंबरशिप के लिए क्वालिफाई करते हैं। बार काउंसिल की यह भी दलील थी कि आर्बिट्रेशन भी बार काउंसिल के नियमों के मुताबिक ही होना चाहिए। लेकिन लंदन आर्बिट्रेशन काउंसिल के वकील दुष्यंत दवे ने बार काउंसिल की दलील का विरोध किया। दवे की दलील थी कि इससे कारोबारी आर्बिट्रेशन पर बुरा असर पड़ेगा। उन्होंने इसके लिए सिंगापुर और ब्रिटेन जैसे देशों का हवाला दिया जहां भारतीय वकीलों को प्रैक्टिस के लिए कोई स्पेशल मंजूरी की जरूरत नहीं होती।