जून 2017 में उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने विधि मापिकी अर्थात डिब्बाबं सामग्री नियम 2011 में संशोधन के बाद ई.कॉमर्स कंपनियों को उसका पालन करने के लिए 6 महीने का समय दिया गया था। लेकिन नए नियम की घोषणा के 7 माह बाद भी ई.कॉमर्स कंपनियों ने उस पर पूरी तरह अमल करना अनिवार्य नहीं समझा। लेकिन एक जनवरी से लागू नियम के तहत अब ऑनलाइन कारोबार करने वाली कंपनियों को किसी भी उत्पाद के अधिकतम खुदरा मूल्य के साथ विनिर्माण अनुपयोगी हो जाने की तारीख, शुद्ध मात्रा, देश और ग्राहक सेवा का पूरा ब्योरा मुहैया कराना होगा।
उपभोक्ता संरक्षण कानून जल्द अमल में आएगा
- कानून रिव्यू/नई दिल्ली
———————-उपभोक्ताओं को अब नया अस्त्र मिलने जा रहा है यही कारण है कि अब कोई भी खराब उत्पाद बेचने वाली कंपनी बच नही पाएगी। सरकार एक नया सख्त उपभोक्ता कानून ला रही है। नए उपभोक्ता संरक्षण विधेयक में प्रावधान किया गया है कि सामान खराब निकलने पर कंपनी को सभी ग्राहकों को मुआवजा देना पड़ेगा। केंद्र सरकार केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण गठित करेगी। इसकी समिति ग्राहकों की शिकायतों की जांच करेगी। गड़बड़ी निकलने पर प्राधिकरण कंपनी को बेचा गया सभी सामान वापस लेने का आदेश दे सकता है। यह विधेयक पिछले सप्ताह ही लोकसभा में पेश कर दिया गया है। केंद्र सरकार ने उपभोक्ता संरक्षण विधेयक में सरकार ने उपभोक्ताओं के हितों को रक्षा के लिए कई नए प्रावधान किए हैं।
इनमें से एक है प्रोडक्ट लायबिलिटी इस प्रावधान के तहत अगर सामान से उपभोक्ता को कोई नुकसान पहुंचता है तो उत्पादक, आपूर्तिकर्ता, खुदरा विक्रेता और अन्य लोग जो उत्पाद जनता को उपलब्ध कराते हैं, उन उत्पादों से हुए नुकसान के लिए जिम्मेदार माने जाएंगे। उपभोक्ता मंत्रालय के अनुसार जांच में उपभोक्ता की शिकायत सही पाई जाती है तो नए कानून के तहत उस उपभोक्ता को मुआवजा देने के साथ वह सामान खरीदने वाले अन्य उपभोक्ताओं को भी मुआवजा मिल सकता है। भले ही उसने शिकायत दर्ज नहीं कराई हो, मौजूदा उपभोक्ता संरक्षण कानून में इस तरह का प्रावधान नहीं है। नए विधेयक की कुछ खास बाते हैं, इसमें नए उपभोक्ता संरक्षण विधेयक के मुताबिक केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण खराब सामान उपभोक्ताओं तक पहुंचने से पहले हस्तक्षेप कर सकता है।
इसके साथ नए विधेयक में केंद्र को यह अधिकार दिया गया है कि वह उपभोक्ताओं के हितों को ध्यान में रखते हुए मॉडल रूल्स यानी आदर्श नियम बना सकता है। यह नियम सभी राज्य सरकारों पर तब तक लागू होगा। जब तक वह इन नियमों से मेल खाते हुए अपने नियमों को मंजूरी नहीं दे दें। मंत्रालय का मानना है कि इससे बदलते बाजार में उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने में सहायता मिलेगी। नए उपभोक्ता संरक्षण विधेयक में उपभोक्ताओं के हितों के नए प्रावधान के तहत केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण किसी भी कंपनी को भ्रामक प्रचार बंद करने का आदेश दे सकता है। आदेश का उल्लंघन करने पर कार्रवाई का प्रावधान है। नए विधेयक में भ्रामक विज्ञापनों और ई.कॉमर्स व्यापार के लिए प्रावधान होंगे। सरकार का प्रस्तावित नया विधेयक वर्ष 1986 में उपभोक्ता संरक्षण कानून का स्थान लेगा।
विधेयक में प्रावधान किया गया है कि उपभोक्ता घर बैठे ई.फाइलिंग के जरिए अपना मामला दर्ज कर सकते हैं। विधेयक में वीडियो कांन्फ्रेंसिंग के जरिए भी सुनवाई का प्रावधान किया गया है। नए उपभोक्ता कानून के मुताबिक किसी उपभोक्ता को शिकायत पर 21 दिन के अंदर कोई फैसला नहीं होने पर केस खुद व खुद दर्ज हो जाएगा। यहां यह बता दें कि कुछ समय से ऑनलाइन कारोबार या इंटरनेट के जरिए वस्तुओं की खरीद.बिक्री का बाजार तेजी से बढ़ा है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि ई.कॉमर्स कंपनियां अपने विज्ञापनों में भारी रियायतें घोषित कर लोगों को आकर्षित करती हैं। लेकिन वैसी छूट के हिसाब और हकीकत के बारे में समझना मुश्किल नहीं है कि किसी वस्तु की कीमत 50 फीसदी की बढ़ोतरी कर दी जाए और उस पर 25 फीसदी की रियायत दे दी जाए। यानी एक तरह से वह वस्तु रियायती दर पर बेचे जाने के बावजूद अपनी वास्तविक कीमत से ज्यादा दर पर बेची गई।
इसके अलावा किसी उत्पाद की उपयोगिता की अवधि और बाकी ब्योरों के बारे में उपभोक्ता को तभी पता चलता था जब खरीदी गई वस्तु उसके पास पहुंच जाती थी। यह एक तरह से ग्राहकों के साथ किया गया धोखा था जिस पर निगरानी और लगाम के लिए कोई ठोस व्यवस्था अमल में नहीं थी। हालांकि पिछले साल जून 2017 में उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने विधि मापिकी अर्थात डिब्बाबं सामग्री नियम 2011 में संशोधन के बाद ई.कॉमर्स कंपनियों को उसका पालन करने के लिए 6 महीने का समय दिया गया था। लेकिन नए नियम की घोषणा के 7 माह बाद भी ई.कॉमर्स कंपनियों ने उस पर पूरी तरह अमल करना अनिवार्य नहीं समझा। लेकिन एक जनवरी से लागू नियम के तहत अब ऑनलाइन कारोबार करने वाली कंपनियों को किसी भी उत्पाद के अधिकतम खुदरा मूल्य के साथ विनिर्माण अनुपयोगी हो जाने की तारीख, शुद्ध मात्रा, देश और ग्राहक सेवा का पूरा ब्योरा मुहैया कराना होगा।
यह विचित्र है कि किसी डिब्बाबंद सामान की अधिकतम खुदरा कीमत अलग.अलग जगहों या ई.कॉमर्स वेबसाइट पर फर्क हो। इंटरनेट की पहुंच और उपयोग का दायरा बढ़ने के साथ बड़ी तादाद में लोग ई.कॉमर्स वेबसाइटों के जरिए खरीदारी करने लगे हैं। घर बैठे सामान मिल जाने की सुलभ व्यवस्था के प्रति लोगों का आकर्षण स्वाभाविक है। लेकिन उस पर उपलब्ध सामान की गुणवता से लेकर कीमत तक के बारे में अभी उतनी जागरूकता नहीं आई है। करीब साल भर पहले किए गए एक सर्वेक्षण में यह तथ्य सामने आया था कि किसी वस्तु के अधिकतम खुदरा मूल्य को बढ़ाकर भारी छूट देने की बात की जाती है। इस आकर्षण के प्रभाव में आकर सामान खरीदने वाले 34 फीसदी लोगों को यह समझ में भी नहीं आया कि उनके साथ कोई धोखा किया गया है। जबकि ऑनलाइन खरीदारी करने वाले 25 फीसदी लोग अपने साथ होने वाली गड़बड़ी से अनजान ही रहे।
ऐसे तमाम उदाहरण सामने आए जिनमें किसी उपभोक्ता को खरीदारी के बाद जो सामान मिला वह वेबसाइट पर मौजूद ब्योरे के मुताबिक नहीं था। कई बार कोई ऐसी वस्तु भी भेज दी गई जिसकी उपयोगिता की तारीख समाप्त हो गई थी या बहुत नजदीक थी। उपभोक्ताओं के हितों के साथ यह खिलवाड़ है जिसे रोकना जरूरी है। इन सब गड़बड़ियों के मद्देनजर केंद्र सरकार ने उपभोक्ता संरक्षण विधेयक में उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए कई नए प्रावधान किए है जिसमें इन सब समस्याओं के समाधान के साथ ही उपभोक्ताओं को होने वाले नुकसान की भरपाई के साथ ही मुआवजे की भी व्यवस्था की गई है।
सामान खराब निकलने पर न केवल शिकायत कर्ता बल्कि सभी ग्राहकों को मुआवजा देना पड़ेगा। इसके लिए न केवल सामान बनाने वाली कंपनी, सप्लाई करने वाली एजेंसी और खुदरा बिक्री करने वाली दुकान के मालिक को जिम्मेदार माना जाएगा। नए कानून में भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाने का भी प्रावधान किया गया है। ई.कॉमर्स के बढ़ते व्यापार के मद्देनजर ग्राहक के हितों की रक्षा के लिए अच्छी पहल है, जिसका स्वागत किया जाना चाहिए।