कानून रिव्यू/नई दिल्ली
——————– केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं दिया जा सकता। सरकार ने अपने हलफनामे में 1967 में अजीज बाशा केस में संविधान पीठ के जजमेंट को आधार बनाया है। जिसमें कहा गया था कि एएमयू को केंद्र सरकार ने बनाया था ना कि मुस्लिम ने। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देने को लेकर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ सुनवाई करेगी। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी। इससे पहले केंद्र सरकार के हलफनामें पर एएमयू ने सुप्रीम कोर्ट से जवाब देने के लिए चार हफ्ते का समय मांगा था। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में यूपीए सरकार की अपील को वापस लेने का हलफनामा दाखिल किया था। केंद्र सरकार ने हलफनामे में 1972 में संसद में बहस के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बयानों का हवाला दिया है। जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर इस संस्थान को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया तो देश में अन्य अल्पसंख्यक वर्ग या धार्मिक संस्थानों को इनकार करने में परेशानी होगी। इन सब के बीच केंद्र सरकार ने यूपीए सरकार वक्त एचआरडी मंत्रालय के उन पत्रों को भी वापस ले लिया है जिसमें फैक्लटी ऑफ मेडिसन में मुस्लिमों को 50 फीसदी आरक्षण दिया गया था। केंद्र ने 1967 के सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के खिलाफ 1981 में संसद में संशोधन बिल पास करते हुए एएमयू को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया। उसे भी मोदी सरकार ने गलत ठहराया है,् हलफनामे में कहा गया है कि इस तरह कोर्ट के जजमेंट को निष्प्रभावी करने के लिए संशोधन करना संवैधानिक ढांचे के खिलाफ है। अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक संस्थान की श्रेणी में नहीं रख सकते। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी यानी एएमयू को अल्पसंख्यक का दर्जा दिए जाने के मामले में केंद्र सरकार के हलफनामे पर एएमयू ने भी हलफनामे के जरिए अपना जवाब दाखिल करते हुए कहा था कि मोदी सरकार का हलफनामा राजनीति से प्रेरित है और केंद्र को यूपीए सरकार का हलफनामा वापस लेने की इजाजत नहीं देनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को तीन हफ्ते में इसका जवाब दाखिल करने को कहा है। एएमयू ने कहा था कि सरकार बदलने के साथ दूसरी सरकार का नजरिया नहीं बदलना चाहिए। एएमयू देश की सबसे पुरानी मुस्लिम यूनिवर्सिटी है,् इसे मिला अल्पसंख्यक का दर्जा सभी मुस्लिमों के लिए खास मायने रखता है।