संविधान के अनुच्छेद 137 के तहत अयोध्या विवाद में रिव्यू पिटीशन की तैयारी
सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और इबकाल अंसारी पक्षकारों के अलावा कोई भी मुस्लिम पक्षकार रिव्यू पिटीशन के लिए स्वतंत्र
मौहम्मद इल्यास-’’दनकौरी’’/नई दिल्ली
अयोध्या विवाद में सुप्रीम कोर्ट का फैसला 9 नवंबर-2019 को आते ही मुस्लिम पक्षकारों में रिव्यू पिटीशन दायर किए जाने की सुगबुहाट शुरू हो गई थी। इन मुस्लिम पक्षकारों में इकबाल अंसारी और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने इस फैसले का स्वागत किया था और साथ ही रिव्यू पिटीशन की बात से भी इंकार किया था। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर नाखुशी जाहिर करते हुए पुनर्विचार याचिका दाखिल किए जाने के संकेत दिए थे। वहीं जमीअत उलमा-ए- हिंद के अध्यक्ष मौलाना अशद मदनी ने उस समय फैसले पर तो नाखुशी जाहिर की थी, मगर रिव्यू पिटीशन दाखिल किए जाने से इंकार किया था। मगर इस फैसले के बाद जैसे जैसे दिन बीतते गए रिव्यू पिटीशन दायर किए जाने की बात में दम पडता ही चला गया। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने लखनउ में गत 17 नवंबर-2019 को संपन्न हुई बैठक में रिव्यू पिटीशन दाखिर किए जाने का फैसला ले लिया। वहीं रिव्यू पिटीशन दायर किए जाने की बात से इंकार कर रहे जमीअत उलमा-ए- हिंद के अध्यक्ष मौलाना अशद मदनी ने भी ऐलान किया है कि बाबरी मस्जिद के फैसले में रिव्यू में जरूर जाना चाहिए, हलांकि ऐसा नही लगता है कि रिव्यू पिटीशन मंजूर ही होगी, फिर भी रिव्यू में जांएंगे। जब कि सुन्नी वक्फ बोर्ड अभी रिव्यू पिटीशन दायर किए जाने से इंकार करता चला आ रहा है। रिव्यू पिटीशन के मुद्दे पर यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से कहा जा रहा है कि इस मुद्दे पर कानूनी राय ली जा रही है और 26 नवंबर-2019 को संपन्न होने वाली बैठक में फाइनल निर्णय ले लिया जाएगा कि रिव्यू में जाएगें अथवा नही। जब कि मुस्लिम पक्षकारों में इकबाल अंसारी ने साफ कर दिया है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला फाइनल है और इस फैसले का वह स्वागत करते हैं अब रिव्यू पिटीशन में कतई नही जाएंगे। खैर रिव्यू पिटीशन में जाने का जब फैसला ले लिया गया है तो एक बार फिर यह अयोध्या विवाद का जिन्न बोतल से बाहर आने को आतुर है ही। अब बात करते हैं कि रिव्यू पिटीशन में कौन जा सकता है और किसे रिव्यू पिटीशन में जाने का अधिकार नही है। रिव्यू पिटीशन की कानूनी प्रक्रिया क्या होती है? और रिव्यू पिटीशन के बाद इस फैसले में क्या बदलाव संभव है अथवा नही। अयोध्या ज़मीन विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की बैंच ने 9 नवंबर-2019 को सर्वसम्मति से फ़ैसला दिया था।्फ़ैसले में विवादित ज़मीन हिंदू पक्ष को दी गई, सरकार से मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट बनाने के लिए कहा गया और मुसलमान पक्ष को अयोध्या में किसी और जगह 5 एकड़ ज़मीन देने का आदेश दिया गया। संविधान के अनुच्छेद 141 के मुताबिक़ सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला देश में सभी पर लागू होता है, लेकिन संविधान के अनुच्छेद 137 में ये प्रावधान है कि अगर किसी फ़ैसले में कोई स्पष्ट और प्रकट ग़लती हो तो उसके खि़लाफ़ पुनर्विचार याचिका दायर की जा सकती है। वैसे लोग सवाल ये उठा रहे हैं कि इस मामले में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड तो मुख्य पक्षकार नहीं थे, तो अब वो पुनर्विचार याचिका कैसे डाल सकते हैं? इसका जवाब ये है कि सामान्य तौर पर जो लोग मुख्य मामले में पक्षकार होते हैं, वे लोग ही पुनर्विचार याचिका दायर करते हैं। मगर सबरीमाला मामले में 50 से ज्यादा पुनर्विचार याचिकाएं दायर की गई थी, जिनमें कई नए पक्षकार शामिल थे। आर्टिकल 377 मामले में भी पुनर्विचार याचिका के साथ सुप्रीम कोर्ट ने रिव्यू पीटिशन पर भी विचार किया यानी नई याचिकाओं पर, तो अगर ये नई परंपरा शुरू हुई है तो अयोध्या मामले में भी रिव्यू पीटिशन के साथ नई याचिका दायर किए जाने पर रोक नहीं है। दूसरी बात ये है कि अयोध्या मामला मुस्लिम और हिंदू पक्षों के बीच एक सिविल विवाद था इसलिए इस फैसले से प्रभावित कोई भी व्यक्ति पुनर्विचार याचिका दायर कर सकता है। इस याचिका को स्वीकार या अस्वीकार करना सुप्रीम कोर्ट की नई बेंच का विशेषाधिकार है। ये भी ध्यान रखा जाए कि पुनर्विचार याचिका मुख्य फैसले के खिलाफ़ अपील नहीं है, बल्कि ग़लतियों को ठीक करने की एक क़ानूनी प्रक्रिया है। इसका मतलब इस मामले पर पहले इस बात पर सुनवाई होगी कि कोर्ट को ये याचिका स्वीकार करनी है या नहीं? इसके लिए मुस्लिम पक्ष को कोई ठोस वजह देनी होगी। कोई नया तर्क या क़ानून कोर्ट के सामने रखना होगा। वो क्या होगा, अभी मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने ये स्पष्ट नहीं किया? लेकिन मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन को ही रखे जाने की बात कही गई है। अगर कोर्ट याचिका को स्वीकार कर लेता है तो उसके बाद सुनवाई होगी कि क्या फ़ैसले में कोई बदलाव होगा या पहले वाला ही जारी रहेगा? यानी ये इतना आसान नहीं होने वाला है। क़ानून के मुताबिक़ तो जिन जजों ने फैसला दिया है, उन्हें ही पुनर्विचार याचिका सुननी चाहिए। लेकिन रंजन गोगोई अब रिटायर हो गए हैं, इसलिए पुनर्विचार याचिका पर नए चीफ़ जस्टिस शरद अरविंद बोबडे की अध्यक्षता में पांच जजों की नई बेंच सुनवाई करेगी जिसमें चार पुराने जज और एक नए जज को शामिल किया जाएगा। नए जज के चयन पर फैसला जस्टिस बोबडे ही लेंगें। एक व्यक्ति एक ही पुनर्विचार याचिका दायर कर सकता है लेकिन अन्य लोगों के दायर करने पर भी कोई रोक नहीं है। सामान्य तौर पर पुनर्विचार याचिका पर बंद कमरे में ही विचार होता है, लेकिन पक्षकार इस पर ओपन कोर्ट में सुनवाई की मांग कर सकते हैं। संविधान के अनुच्छेद 145 के तहत सुप्रीम कोर्ट नियम 2013 बनाए गए हैं जिसके मुताबिक़ फ़ैसला आने के बाद एक महीने के अंदर पुनर्विचार याचिका दायर की जा सकती है। ये फैसला सर्वसम्मति से लिया गया था यानी सभी 5 जजों की सहमति से, इसलिए पुनर्विचार याचिका के बाद फ़ैसले में बदलाव आसान नहीं होगा।