भारत ने अपनी बहुत साफ न्यूक्लियर कमांड पालिसी बना रखी है। इसके लिए उसने एक ऐसा अधिकार संपन्न दल बनाया है, जिसे न्यूक्लियर कमांड अथॉरिटी कहा जाता है। ये दल तय करता है कि हमें अपने देश के परमाणु हथियारों का क्या करना है? युद्ध की सूरत में हम उसका इस्तेमाल करें या नहीं करें,् हालांकि ऐसी ही संस्था पाकिस्तान में भी है लेकिन दोनों ही देशों में प्रधानमंत्री के पास अधिकार है कि वो अपने विवेक से इस बटन पर हाथ रख सकते हैं।
मौहम्मद इल्यास-’’दनकौरी’’/ कानून रिव्यू
नई दिल्ली
एटॉमिक बटन पर हाथ दबा सकते हैं भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान, क्या ऐसा वाकई हो सकता है? जिस तरह से पुलवामा आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण स्थिति बनी हुई है, जंग हुई तो किसी भी तरह की स्थिति से इंकार नही किया जा सकता है। चूंकि यह दोनों देश परमाणु संपन्न हैं यदि परमाणु से जिस देश ने भी पहले हमला किया तो मजबूरन दूसरे देश को भी उसका जवाब देना ही पडेगा। एटॉमिक एटैक के लिए यह प्रक्रिया से गुजरना होता है। न्यूक्लियर हथियारों के चलने की स्थिति ना बन जाए,् ये जानना जरूरी है कि भारत और पाकिस्तान में कौन एटामिक बम चला सकता है और इस बटन पर हाथ रखना कितना
आसान या मुश्किल है? आइए बात करते हैं दोनों देशों की न्यूक्लियर पॉलिसी पर। बात यदि भारत की करें तो भारत ने अपनी बहुत साफ न्यूक्लियर कमांड पालिसी बना रखी है। इसके लिए उसने एक ऐसा अधिकार संपन्न दल बनाया है, जिसे न्यूक्लियर कमांड अथॉरिटी कहा जाता है। ये दल तय करता है कि हमें अपने देश के परमाणु हथियारों का क्या करना है? युद्ध की सूरत में हम उसका इस्तेमाल करें या नहीं करें,् हालांकि ऐसी ही संस्था पाकिस्तान में भी है लेकिन दोनों ही देशों में प्रधानमंत्री के पास अधिकार है कि वो अपने विवेक से इस बटन पर हाथ रख सकते हैं। भारत में न्यूक्लियर कमांड अथॉरिटी की एग्जीक्यूटिव काउंसिल के हेड राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार होते है,् लेकिन इसमें उनके साथ तीनों सेनाओं के प्रमुख, डीआरडीओ के टॉप अधिकारी और एटॉमिक एनर्जी के प्रमुख समेत कई अन्य लोग भी हो सकते हैं, लेकिन आमतौर पर ये काउंसिल प्रधानमंत्री को परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की सलाह देती है। उस सलाह पर मूल तौर पर न्यूक्लियर कमांड अथारिटी यानी एनसीए की पॉलिटिकल काउंसिल विचार करती है, क्योंकि असली ताकत इसी परिषद के पास होती है। इसके मुखिया प्रधानमंत्री होते हैं, इसके अलावा पॉलिटिकल काउंसिल में गृह मंत्री, रक्षा मंत्री, वित्त और विदेश मंत्री भी शामिल होते हैं। वैसे अगर प्रधानमंत्री चाहे तो खुद ब खुद परमाणु बम के बटन को दबाने यानि न्यूक्लियर हथियार को चला सकता है।
पाकिस्तान में भी परमाणु बटन दबाने की ताकत द नेशनल कमांड अथारिटी यानि एनसीए के पास है। ये पाकिस्तान के सभी तरह के परमाणु हथियारों पर नियंत्रण रखती है। पाकिस्तान की ये संस्था वर्ष 2000 में बनाई गई। इसका चेयरमैन पाकिस्तान का प्रधानमंत्री होता है। इसमें भी दो तरह की परिषद होती है। एक परिषद में
सियासी यानि नागरिकों द्वारा चुने लोग होते हैं और दूसरी परिषद में सैन्य अधिकारीण् यूं तो इस पूरी अथारिटी का मुख्य यानि चेयरमैन पाकिस्तान का प्रधानमत्री होता है, लेकिन पाकिस्तानी सेना के प्रमुख की हैसियत भी कम नहीं होती। बगैर उसके चाहे पाकिस्तान का प्रधानमंत्री शायद ही इस परमाणु बटन को दबा सकता है। पाकिस्तान की नागरिक परिषद में प्रधानमंत्री, विदेश, गृह, वित्त, रक्षा और रक्षा उत्पादन मंत्री होते हैं और सैन्य परिषद में सेना की तीनों अंगों के प्रमुख के साथ तीनों सेना के अंगों के प्रमुख के साथ स्ट्रैटजिक प्लान डिविजन का डायरेक्टर जनरल होते हैं। इस परिषद का सेना प्रमुख हैड होता है। प्रधानमंत्री को उसी की सलाह पर ये फैसला लेना होता है। वो खुद ब खुद ऐसा नहीं कर सकता, लेकिन एनसीए का संविधान कहता है कि पाकिस्तान को अगर न्यूक्लियर हथियारों का इस्तेमाल करना है तो एनसीए की सहमति होनी चाहिए। हालांकि 2008 में पाकिस्तान में एक कानून बनाया गया था, जिसमें पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को इस संस्था का प्रमुख बनाया गया। यहां बात यदि अमेरिका की, की जाए तो अमेरिका के पास न्यूक्लियर फुटबॉल है। अमेरिका में परमाणु बटन की नीति बिल्कुल साफ है।् ऐसा सिस्टम दुनिया में शायद ही किसी देश के पास हो, अमेरिका में न्यूक्लियर बटन को न्यूक्लियर फुटबॉल कहा जाता है। जब भी अमेरिका का राष्ट्रपति कहीं जाता है या व्हाइट हाउस में होता है तो उसके साथ एक ब्रीफकेस भी होता है। उस काले रंग के ब्रीफकेस में एक सिस्टम होता है, जिसमें लांच कोड दबाना होता है। इस कोड को दबाते ही सेटेलाइट सक्रिय हो जाती है। इस लांच कोड को दबाते ही परमाणु हथियारों के लिंक सेटेलाइट से जुड़ जाते हैं और ये सक्रिय हो जाती है। अगर किसी कारण प्रेसीडेंट इस फुटबाल को दबाने की स्थिति में नहीं है तो ये अधिकार खुद ब खुद उप राष्ट्रपति के पास चला जाएगा। उसके बाद वहां के गृह, रक्षा, वित्त, विदेश मंत्री समेत कुछ 15 लोगों के नाम सूची में होते हैं।