हाई कोर्ट की बेंच ने 105 पेज के जजमेंट में कहा कि यह एनकाउंटर कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन करते हुए किया गया। जिसकी रूल ऑफ लॉ विधि का शासन से संचालित लीगल सिस्टम में कोई जगह नहीं है। एक युवा की फर्जी एनकाउंटर में मौत को दुखद बताते हुए हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा। जिसमें सब इंस्पेक्टर संतोष कुमार जायसवान, एसएचओ गोपाल दत्त भट्ट, राजेश बिष्ट, नीरज कुमार, नितिन चौहान, चंद्र मोहन सिंह रावत और कॉन्स्टेबल अजीत सिंह को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। ये सातों सस्पेंड हैं। ट्रायल कोर्ट ने 9 जून 2014 को अपना फैसला सुनाया था।
फर्जी एनकाउंटर 2009 में सुनाई थी, ट्रायल कोर्ट ने उम्रकैद की सजा
- कनून रिव्यू/उत्तरांचल
————————–देहरादून में एक स्टूडेंट को फर्जी मुठभेड़ में मारने के 2009 के मामले में उत्तराखंड पुलिस के 7 कर्मचारियों की उम्रकैद की सजा हाई कोर्ट ने बरकरार रखी है। हालांकि 11 अन्य पुलिसकर्मियों को मिली उम्र कैद की सजा को निरस्त कर दिया गया। ट्रायल कोर्ट ने इन्हें एक एमबीए स्टूडेंट को किडनैप कर उसकी हत्या करने की साजिश के जुर्म में यह सजा सुनाई थी।
हाई कोर्ट की बेंच ने 105 पेज के जजमेंट में कहा कि यह एनकाउंटर कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन करते हुए किया गया। जिसकी रूल ऑफ लॉ विधि का शासन से संचालित लीगल सिस्टम में कोई जगह नहीं है। एक युवा की फर्जी एनकाउंटर में मौत को दुखद बताते हुए हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा। जिसमें सब इंस्पेक्टर संतोष कुमार जायसवान, एसएचओ गोपाल दत्त भट्ट, राजेश बिष्ट, नीरज कुमार, नितिन चौहान, चंद्र मोहन सिंह रावत और कॉन्स्टेबल अजीत सिंह को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। ये सातों सस्पेंड हैं। ट्रायल कोर्ट ने 9 जून 2014 को अपना फैसला सुनाया था।
हाई कोर्ट ने हालांकि ट्रायल कोर्ट के आदेश को निरस्त करते हुए 10 पुलिसवालों को बरी भी कर दिया। इनमें कॉन्स्टेबल सतबीर सिंह, सुनील सैनी, चंद्र पाल, सौरभ नौटियाल, नागेंद्र राठी, विकास चंद्र बलूनी, संजय रावत, मनोज कुमार के अलावा ड्राइवर मोहन सिंह राणा और इंद्रभान सिंह को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। हाई कोर्ट ने कहा कि सबूतों से इन पर लगे आरोप साबित नहीं हो रहे। कंट्रोल रूम के तत्कालीन हेड ऑपरेटर जसपाल सिंह गोसाईं को भी बरी कर दिया गया है। ट्रायल कोर्ट ने इन्हें पुलिसवालों को बचाने के इरादे से गलत नोटिंग के जुर्म में 2 साल कैद की सजा सुनाई थी।
पुलिसिया बचाव की दलील हुई, थोथी साबित
———————————————-पुलिसवालों ने अपनी दलील में कहा था कि रणबीर सिंह अपने दो अन्य साथियों के साथ डकैती के इरादे से देहरादून गया था। जिसने उनमें से एक की बंदूक छीन ली थी। तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा सिंह पाटिल के 3 जुलाई 2009 के दौरे को देखते हुए इन पुलिसवालों को उनकी सुरक्षा में तैनात किया गया था। सीबीआई ने कोर्ट में कहा था कि पीड़ित जॉब के सिलसिले में 3 जुलाई 2009 को देहरादून गया था और दोषियों की ओर से जो थ्योरी पेश की गई वह महज एक कहानी है।
गाजियाबाद का था स्टूडेंट
—————————गाजियाबाद जिले के शालीमार गार्डन के रहने वाले 22 वर्षीय रणबीर सिंह को इन पुलिस वालों ने 2 जुलाई 2009 को देहरादून में गोली मारकर हत्या कर दी थी। उस समय एनकाउंटर को सही ठहराते हुए आरोपियों ने दावा किया था कि रणवीर सिंह जबरन वसूली करने वाले रैकेट से जुड़ा था। मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई और सुप्रीम कोर्ट ने केस देहरादून से दिल्ली में ट्रांसफर कर दिया।
गवाहों के मुकरने पर टिप्पणी
——————————-मामले में बड़ी संख्या में गवाहों के बयान से मुकरने की बात पर हाई कोर्ट ने गौर करते हुए कहा कि यह भी उन मामलों में से हैं, जो गवाहों और पीड़ितों की सुरक्षा से जुड़ी मजबूत योजना की तत्काल जरूरत को रेखांकित करता है। कोर्ट ने कहा कि हालांकि लॉ कमीशन ने एक दशक पहले ही इस संबंध में अपनी सिफारिशें दे दी थीं लेकिन उन्हें लागू करने पर अब तक सही ढंग से काम नहीं हुआ।