कानून रिव्यू/नई दिल्ली
एससीएसटी एक्ट में अनिवार्य मृत्युदंड को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। न्यायमूर्ति एस0 ए0 बोबडे की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने उस याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। जिसमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारणद्ध अधिनियम की धारा 3(2 ) के तहत अनिवार्य मृत्युदंड को चुनौती दी गई है। एससीएसटी ् व्यक्ति के लिए उस स्थिति में अनिवार्य मृत्युदंड का प्रावधान है, जहां वह किसी आपराधिक मामले में जानबूझकर गढ़े गए या गलत सबूत देता है जिसके परिणामस्वरूप किसी एससीएसटी व्यक्ति को मृत्युदंड दे दिया जाता है। दिल्ली के वकील ऋषि मल्होत्रा द्वारा दायर इस याचिका में यह कहा गया है कि यह प्रावधान स्पष्ट रूप से मनमाना, असम्मानजनक, अत्यधिक, अनुचित, अन्यायपूर्ण, अनुचितए कठोर, असामान्य और क्रूर है। याचिका में कहा गया है कि ये अनिवार्य मृत्युदंड बचन सिंह और मिठू सिंह मामलों में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ है। याचिका में यह भी कहा गया है कि पंजाब राज्य बनाम दलबीर सिंह, 2012(3 ) एससीएसटी् 346 में शस्त्र अधिनियम की धारा 27 (3 ) के तहत अनिवार्य मौत की सजा को भी संविधान के विपरीत घोषित किया गया है। भारतीय दंड संहिता में एक समान प्रावधान आईपीसी की धारा 194 मौत की सजा या आजीवन कारावास की सजा का विकल्प प्रदान करती है। वर्ष 2014 में विधायिका द्वारा खुद ही मौत की सजा या किसी अन्य कारावास के विकल्प के रूप में प्रदान करने के लिए कानून में संशोधन किया गया था। इन पहलुओं की ओर इशारा करते हुए याचिका में उजागर किया गया है कि एससीएसटी् एक्ट में ये प्रावधान अपने आप में मनमाना है। अगर अनिवार्य मौत की सजा को क़ानून के अंतर्गत जारी रखने की अनुमति दी जाती है तो यह दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 235(2 ) सीआरपीसी के साथ.साथ धारा 354 (3 ) सीआरपीसीके महत्वपूर्ण प्रावधानों के अस्तित्व को परास्त कर देगा जिसमें कहा गया है कि सजा की मात्रा पर किसी आरोपी की सुनवाई के साथ.साथ न्यायालय द्वारा सजा देने का कारण भी बताया जाना चाहिए।