सुप्रीम कोर्ट ने फांसी को उम्रकैद में तब्दील किया
कानून रिव्यू/नई दिल्ली
कविता लिखने का शौक परवान चढ गया और वह भी मुजरिम होते हुए जेल में। जब यह कविताएं कोर्ट के सामने लाई गईं तो कोर्ट को लगा कि उक्त कैदी वाकई समाज से जुडना चाहता है और एक सभ्य आदमी की तरह जीवन बिताना चाहता है। फिर क्या था सुप्रीम कोर्ट ने कैदी की सजा और वही भी फांसी को उम्रकैद में तब्दील कर दिया। जस्टिस एके सीकरी की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि दानेश्वर सुरेश बोर्कार ने जब बच्चे की हत्या की उस वक्त वह 22 साल का था। उसकी लिखी कविताओं से ज़ाहिर हो रहा था कि वह समाज से जुड़ना चाहता है और एक सभ्य आदमी की तरह जीवन बिताना चाहता है। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अपने आदेश में कहा कि बोर्कार, की कविताओं सहित और भी कई सबूत हैं जिनसे ज़ाहिर होता है उसने अपनी गलती स्वीकार कर ली है। बोर्कार को पुणे ट्रायल कोर्ट ने मौत की सज़ा सुनाई थी। जिसे बॉम्बे हाईकोर्ट ने बरकरार रखा था, बाद में मई 2006 में उसने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने तथ्यों के आधार पर इसे खारिज कर दिया। बोर्कार के वकील ने पुर्नविचार करने की अपील करते हुए कहा कि उसने जेल में ही अपनी पढ़ाई पूरी कर ली है और वह सभ्य व्यक्ति की तरह समाज में जीवन बिताना चाहता है। जब यह कविताएं कोर्ट के सामने लाई गईं तो कोर्ट को लगा कि उक्त कैदी वाकई समाज से जुडना चाहता है और एक सभ्य आदमी की तरह जीवन बिताना चाहता है। आखिर फांसी की सजा को कोर्ट ने उम्रकैद में तब्दील कर दिया।