विधि आयोग ने नागरिक संहिता पर सुझाव देने की तारीख बढ़ाई
समान नागरिक संहिता की संभावना पर विचार कर रहे विधि आयोग ने इस मुद्दे पर विभिन्न पक्षों द्वारा सुझाव देने की तारीख बढ़ा दी है। समान नागरिक संहिता की संभावना पर विचार कर रहे विधि आयोग ने इस मुद्दे पर विभिन्न पक्षों द्वारा सुझाव देने की तारीख छह मई तक के लिए बढ़ा दी है। पहले यह समय सीमा छह अप्रैल तक थी। आयोग ने 19 मार्च को सभी पक्षों से समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर अपना विचार और अपनी आपत्तियां दर्ज कराने का अनुरोध किया था। आयोग ने कहा है कि अब तक इस मुद्दे पर 60 हजार से ज्यादा जवाब मिल चुके हैं। इसके अलावा संबंधित पक्षों ने अपना विचार रखने के लिए और ज्यादा समय मांगा है। इसे देखते हुए सुझाव देने की समय सीमा बढ़ाई जा रही है। उल्लेखनीय है कि समान नागरिक संहिता का मुद्दा सत्तारूढ़ भाजपा के चुनावी घोषणापत्र में शामिल रहा है। जून 2016 में कानून मंत्रालय ने विधि आयोग से इस संभावना पर विचार करने को कहा था कि क्या समान नागरिक संहिता बनाई जा सकती है।
नाबालिग से रेप पर कश्मीर में भी आएगा फांसी कानून
कश्मीर में भी अब नाबालिग से रेप के मामले में फांसी का कानून लाया जाएगा। पूरे देश को दहला देने वाले कठुआ गैंगरेप कांड पर जम्मू.कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कड़ा कानून बनाने का वादा किया है। महबूबा मुफ्ती ने ट्वीट कर बताया कि वे ऐसा सख्त कानून बनाएंगी जिससे फिर कोई ऐसी हरकत न कर सके। महबूबा ने ट्वीट कर कहा कि भरोसा दिलाना चाहती हूं कि मैं न सिर्फ आसिफा को न्याय दिलाऊंगी। बल्कि ये भी तय करूंगी कि इस मामले में दोषी लोगों को ऐसी सजा हो जो एक सबक बने। हम एक और बच्ची के साथ ऐसा नहीं होने दे सकते। हम नया कानून लाएंगे। जिसमें नाबालिग बच्चियों से रेप के मामले में कम से कम मौत की सजा हो। ताकि फिर किसी और बच्ची के साथ आसिफा जैसी हैवानियत न हो।
एससीएसटी फैसले को वापस लेने की गुहार
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 पर उसके हालिया आदेश से देश को भारी नुकसान हुआ है। फैसले से देश में आक्रोश, बैचेनी का भाव पनपा है। सामाजिक समरसता को भी गहरी चोट पहुंची है। सरकार ने 20 मार्च के आदेश को वापस लेने की गुहार लगाई है। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट को दी लिखित दलील में दावा किया कि फैसले ने एससी.एसटी एक्ट को कमजोर किया है। साथ ही कहा कि 20 मार्च का वह आदेश वापस लिया जाए। जिसमें एफआईआर दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच और आरोपी को गिरफ्तारी से संरक्षण दिया गया था। 20 मार्च को अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 के दुरुपयोग के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने अधिनियम के तहत मिलने वाली शिकायत पर स्वतः एफआईआर और गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। साथ ही अग्रिम जमानत के प्रावधान को जोड़ दिया था।
बुजुर्गों की देखभाल बहू और दामाद को भी करनी होगी
बुजुर्ग माता.पिता की देखरेख की जिम्मेदारी अब तक सिर्फ जैविक बेटे.बेटी या दत्तक बच्चों की होती है। किंतु सरकार इसका दायरा बढ़ाकर इसमें बहू, दामाद और पोते.पोतियों को भी शामिल करने जा रही है। सरकार ने संपत्ति के लालच में माता.पिता को अपने पास रखने और फिर प्रॉपर्टी अपने नाम करके उन्हें दर.दर की ठोकरें खाने के लिए छोड़ देने वालों पर कार्रवाई की भी योजना तैयार की है। ऐसे लोगों को शिकायत पर माता.पिता की संपत्ति वापस करनी होगी। ये नियम माता.पिता व वरिष्ठ नागरिकों की देखरेख व उनके कल्याण से जुड़े 2007 के कानून में किए जा रहे संशोधन के हिस्से हैं।