न्याय मंदिरों की तरंगे
कानूनों का सीधा सम्बन्ध जनता के साथ होता है। इसलिए संसद और विधानसभा में कानूनों के पारित होने के बाद सरकारों को यह प्रयास करना चाहिए कि इन कानूनों की जानकारियाँ विज्ञापनों तथा अन्य प्रचार माध्यमों के साथ-साथ राज्य की सभी शिक्षण संस्थाओं के माध्यम से स्कूल और कालेजों में पढ़ने वाले बच्चों तक पहुँचाई जाये।
-विमल वधावन योगाचार्य, एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट
————————————————कानून और न्याय के क्षेत्र में एक प्रसिद्ध कथन है कि कानून की अज्ञानता के आधार पर माफी नहीं मिलती। यह सिद्धान्त उचित भी है। यदि ऐसा न हो तो कोई भी व्यक्ति अपराध करने के बाद यह कहकर बचने का प्रयास करेगा कि मुझे कानून की जानकारी नहीं थी। परन्तु इस सिद्धान्त के चलते केवल संसद और विधानसभाओं में कानूनों को पारित करने के बाद सरकारों का दायित्व समाप्त नहीं हो जाता। अनेकों प्रकार के छोटे-बड़े कानून बनाने के बाद सरकारों का एक नया दायित्व प्रारम्भ हो जाता है जिसमें हर प्रकार के कानूनों की जानकारियाँ जनता की सरल भाषा में प्रचारित की जानी चाहिए। जिस प्रकार सरकार ने जी.एस.टी. कानून बनाया तो उससे पहले और बाद में इस नये कानून से सामान्य जनता तथा व्यापारी वर्ग को अवगत कराने के लिए कई करोड़ों रुपये के बड़े-बड़े विज्ञापन समाचार पत्रों में प्रकाशित किये गये, रेडियो तथा दूरदर्शन पर अनेकों कार्यक्रम प्रस्तुत किये गये। कानूनों की जानकारी ही नहीं अपितु सरकार तो अपने अनेकों सामाजिक अभियानों को लेकर भी करोड़ों रुपये के बजट उनके प्रचार-प्रसार में लगा देती है। जैसे – स्वच्छता अभियान, बेटी-बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान, भ्रूण हत्या के विरुद्ध अभियान, दीवारों पर पोस्टर लगाने के विरुद्ध अभियान, वोट डालने के लिए प्रेरणा देने के अभियान आदि। वैसे यह सभी सामाजिक अभियान भी किसी न किसी रूप में नियमों, कानूनों और अध्यादेशों से ही जुड़े होते हैं।
केन्द्र सरकार के साथ-साथ सभी राज्य सरकारों का भी यह दायित्व है कि वे अपने-अपने राज्य में स्थानीय कानूनों से जुड़े अभियानों को विज्ञापनों के माध्यम से प्रचारित-प्रसारित करना अपना प्रमुख कर्त्तव्य समझें। ऐसा न करने पर कई बार महत्त्वपूर्ण कानून भी केवल विधानसभाओं के कार्यालयों और पुस्तकालयों में ही दबे रह जाते हैं। दिल्ली, चण्डीगढ़, पंजाब, हरियाणा जैसे प्रान्तों में शराब पीने के लिए न्यूनतम 25 वर्ष की आयु निर्धारित की गई है। सिक्किम, पुद्दुचेरी, हिमाचल प्रदेश और गोवा में शराब पीने की न्यूनतम आयु 18 वर्ष है जबकि शेष अन्य प्रान्तों में शराब पीने की न्यूनतम आयु 21 वर्ष है। दिल्ली में शराब पीकर गाड़ी चलाने के विरुद्ध अभियान चलाने वाली एक गैर-सरकारी संस्था ने लगभग 3 माह में 50 शराब की दुकानों तथा होटलों पर 6 हजार ग्राहकों का सर्वे किया जिनकी आयु 18 वर्ष से 25 वर्ष के बीच थी। इन सभी शराब की दुकानों और होटलों ने किसी भी ग्राहक से कभी उसकी आयु का प्रमाण पत्र नहीं मांगा। इन 6 हजार ग्राहकों में लगभग 4 हजार के करीब पुरुष थे और 2 हजार के करीब महिलाएँ भी थीं। इससे स्पष्ट होता है कि ये दुकानदार और होटल मालिक या तो शराब पीने से सम्बन्धित आयु सीमा के कानून से अवगत नहीं थे या सरकार का कोई भी ऐसा तन्त्र नहीं जो जनता को ऐसे कानूनों की जानकारी दे और उसके बाद उन कानूनों के पालन पर कड़ी नजर रखे। दुकानदारों के साथ-साथ जनता में भी ऐसे नियमों तथा उनके साथ जुड़ी सज़ा आदि के प्रावधानों को प्रचारित करने की आवश्यकता है जिससे इस वर्ग के युवाओं को भी चेतावनी दी जा सके कि यदि वे शराब खरीदने के प्रयास में भी पकड़े गये तो उन पर कड़ी कार्यवाही हो सकती है।
अमेरिका, इंग्लैण्ड तथा कनाडा में भी इस प्रकार के कानूनों के चलते प्रत्येक शराब विक्रेता का यह कानूनी दायित्व है कि वे युवा वर्ग के लोगों को शराब बेचने से पहले उनके पहचान पत्र से उनकी आयु का प्रमाण मांगे। इन देशों में ऐेसे प्रावधानों का विधिवत पालन भी किया जाता है क्योंकि ऐसा न करने वाले दुकानदारों के विरुद्ध भी सज़ा के प्रावधान हैं।
दिल्ली की एक करोड़ से अधिक आबादी में से लगभग 39 प्रतिशत नागरिक शराब पीने वाले हैं। शराब पीने वालों की इतनी बड़ी संख्या के बावजूद दिल्ली में आज तक एक भी दुकानदार या ग्राहक ऐसा नहीं है जिस पर 25 वर्ष से कम आयु का होते हुए शराब खरीदने और पीने को लेकर कभी कोई मुकदमा चलाया गया हो या सज़ा दी गई हो। दिल्ली पुलिस या दिल्ली के एक्साइज विभाग ने कभी भी इस कानून का पालन सुनिश्चित कराने के लिए कोई अभियान नहीं चलाया।
कानूनों का सीधा सम्बन्ध जनता के साथ होता है। इसलिए संसद और विधानसभा में कानूनों के पारित होने के बाद सरकारों को यह प्रयास करना चाहिए कि इन कानूनों की जानकारियाँ विज्ञापनों तथा अन्य प्रचार माध्यमों के साथ-साथ राज्य की सभी शिक्षण संस्थाओं के माध्यम से स्कूल और कालेजों में पढ़ने वाले बच्चों तक पहुँचाई जाये। बड़े-बड़े समाचार पत्रों, रेडियो और दूरदर्शन आदि पर विज्ञापनों के साथ-साथ कानून की जानकारियों का प्रचार करने वाले गैर-सरकारी संगठनों को भी यथासम्भव वित्तीय सहायता भी दी जानी चाहिए।