केंद्र सरकार 13 नवंबर से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र में नया उपभोक्ता संरक्षण कानून पेश करने की तैयारी में है जिसके तहत भ्रम फैलाने वाले विज्ञापन देने वालों के खिलाफ कड़ी कारवाई का प्रावधान है। इनमें जानी मानी हस्तियां भी शामिल होंगी जो करोड़ों के विज्ञापन कर लोगों में भ्रम की स्थिति उत्पन्न करती हैं। एक कार्यकारी एजेंसी और केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण की व्यवस्था की जाएगी जिससे अनैतिक व्यावसायिक कार्यो से उपभोक्ताओं के बचाव के लिए जरूरत महसूस होने पर एजेंसी दखल दे सकेगी।
उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार की सख्त कदम उठाने की तैयारी
- कानून रिव्यू/नई दिल्ली
…………………………………………कालाबाजारी, मिलावटखोरी, जमाखोरी और कम नाप तोल करने वाले धंधेबाजों की अब खैर नही है क्योंकि अब सरकार इन लोगों पर तगडा डंडा चलने के लिए तैयार हो गई है। उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार सख्त कदम उठाने जा रही है। आम नागरिक को काला बाजारी, मिलावट, जमाखोरी और कम नाप तोल की समस्या से रोज.बरोज सामना करना पड़ता है।
केंद्र सरकार 13 नवंबर से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र में नया उपभोक्ता संरक्षण कानून पेश करने की तैयारी में है जिसके तहत भ्रम फैलाने वाले विज्ञापन देने वालों के खिलाफ कड़ी कारवाई का प्रावधान है। इनमें जानी मानी हस्तियां भी शामिल होंगी जो करोड़ों के विज्ञापन कर लोगों में भ्रम की स्थिति उत्पन्न करती हैं। एक कार्यकारी एजेंसी और केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण की व्यवस्था की जाएगी जिससे अनैतिक व्यावसायिक कार्यो से उपभोक्ताओं के बचाव के लिए जरूरत महसूस होने पर एजेंसी दखल दे सकेगी।
ऑर्डर या वस्तु वापसी के अलावा कंपनी के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है जिसमें उत्पादक और सेवा मुहैया कराने वाले की जवाबदेही सभी उपभोक्ताओं के प्रति होगी न कि केवल एक उपभोक्ता या समूह तक सीमित होगी। उत्पादन, निर्माण, डिजाइन, परीक्षण, सर्विस और पैकेजिंग आदि में कमी की वजह से उपभोक्ता के घायल, मृत्यु या और किसी प्रकार के नुकसान की स्थिति में उत्पादक और निर्माता ही जिम्मेदार होंगे। साथ ही उपभोक्ता अदालतों में सुनवाई करने वाली दो बेंच और राजनीतिक नियुक्तियों को भी खत्म कर दिया जाएगा। गौरतलब है कि ग्राहकों के हितों की रक्षा के लिए 24 दिसंबर 1986 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पहल पर उपभोक्ता संरक्षण विधेयक संसद में पारित किया गया था।
इस अधिनियम के लागू होने के बाद 1993 से 2002 तक इसमें कई संशोधन किए गए। जिसमें अधिनियम के अधीन आदेशों का पालन ना करने वाले पर धारा 27 के तहत कारावास व दंड और धारा 25 के अधीन कुर्की का प्रावधान किया गया है। इतने सख्त प्रावधानों के साथ लागू किए गए कानून के बावजूद नागरिकों की परेशानियों में कोई बड़ा बदलाव देखने को नहीं मिला। लोगों ने अपने साथ होने वाली ठगी की लड़ाई लड़ने के इतर इसे नजरअंदाज करना ही बेहतर समझा, क्योंकि उपभोक्ता न्यायालय के चक्कर काटना और सही समय पर उसका समाधान न होना उन्हें ठगी से ज्यादा परेशान करने वाला लगने लगा है।
ऐसे में उन कानूनों का क्या? जो पहले से चले आ रहे हैं और इन पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जा रहा है। सवाल है कि उपभोक्ता अदालतों के खराब बुनियादी ढांचे, खराब सांगठनिक व्यवस्था,प्रशिक्षित लोगों की कमी क्या नया कानून लाने के बाद खत्म हो जाएगी। बहरहाल नए कानून के तहत जिला से लेकर राष्ट्रीय फोरम तक एकल पीठ के जरिए मामले की सुनवाई की जाने की चर्चा है लेकिन सवाल है कि क्या इससे उपभोक्ताओं को लंबे समय तक चलने वाले मुकदमेबाजी से छुटकारा मिल पाएगा? क्या उपभोक्ताओं के समय और इस दौरान लगने वाले पैसों का भुगतान हो पाएगा?
जिले से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर सप्ताह में कम से कम 5 दिन मामले की सुनवाई के लिए रखा गया है जो इससे पहले नहीं होता था। लेकिन लाखों करोड़ों की संख्या में आने वाली शिकायतों के निपटारे के लिए कितने साल लग जाएंगेए ये भी नहीं पता है। बहरहाल उपभोक्ताओं के अधिकारों के लिए कानून पहले से हैं, पर गड़बड़ियों के चलते सरकार को नया कानून लाना पड़ रहा है,लेकिन वस्तुओं के उत्पादन में कोई कालाबाजारी,जमाखोरी नहीं होगी और निर्माता इनके निर्माण में पहले की अपेक्षा सर्तकता बरतेंगी, इसकी क्या गारंटी है?