एलजीबीटीआई कम्युनिटी को समान अधिकार देने और लैंगिक भेदभाव को खत्म करने को नए कॉर्पोरेट मानक तैयार
कानून और अधिकार
- कानून रिव्यू/मुंबई
———————————–विधि का विधान ही ऐसा है कि कुदरत ने नर और नारी की जाति बनाई है। इसके अलावा तीसरी जाति किन्नर को माना जाता है। किन्नर का मतलब ऐसा है ऐसा मनुष्य जिसमें कुछ लक्षण नारी के और कुछ नर के होते हैं। विज्ञान की भाषा में ऐसा मनुष्य जिसके जननांग अर्द्धविकसित रह जाते हैं नर और नारी जाति के बीच का हिस्सा बन जाता है। समाज के द्वारा तिरस्कार किए जाने के बाद ये किन्नर जाति के लोग अलग तरह का जीवन बिताने के लिए मजबूर हो जाते हैं। किन्नर समाज की परंपराएं और संस्कृति भी कुछ अलग अलग तरह की होती है जिन्हें कुदरती कानून भी कहा जा सकता है।
मुंबई.वर्क प्लेस पर एलजीबीटीआई कम्युनिटी को समान अधिकार देने और लैंगिक भेदभाव को खत्म करने के उद्देश्य से गोदरेज ग्रुप ने नए कॉर्पोरेट मानक तैयार किए हैं। देश में रह रहे हजारों ट्रांसजेंडर भी एलजीबीटीआई कम्युनिटी का ही पार्ट हैं। जिन्हें समाज में हर स्तर पर भेदभाव का शिकार होना पड़ता है। आज हम आपको इसी कम्युनिटी से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें बताने जा रहे हैं। ट्रांसजेंडर यानी किन्नरों की दुनिया आम आदमी से हर मायने में अलग होती है। एक किन्नर साल में एक बार शादी करता है और जब वह मरता है तो उसके समुदाय के लोग उसकी डेड बॉडी की चप्पलों से पिटाई करते हैं।
ऐसे होता है एक किन्नर का अंतिम संस्कार
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- – जब एक किन्नर की मौत हो जाती है तो उसके अंतिम संस्कार को गुप्त रखा जाता है। बाकी धर्मों से ठीक उलट किन्नरों की अंतिम यात्रा दिन की जगह रात में निकाली जाती है।
- -किन्नरों के अंतिम संस्कार को गैर-किन्नरों से छिपाकर किया जाता है। इनकी मान्यता के अनुसार अगर किसी किन्नर के अंतिम संस्कार को आम इंसान देख ले, तो मरने वाले का जन्म फिर से किन्नर के रूप में ही होगा।
- – वैसे तो किन्नर हिन्दू धर्म की कई रीति-रिवाजों को मानते हैं, लेकिन इनकी डेड बॉडी को जलाया नहीं जाता। इनकी बॉडी को दफनाया जाता है।
- – अंतिम संस्कार से पहले बॉडी को जूते-चप्पलों से पीटा जाता है। कहा जाता है इससे उस जन्म में किए सारे पापों का प्रायश्चित हो जाता है। अपने समुदाय में किसी की मौत होने के बाद किन्नर अगले एक हफ्ते तक खाना नहीं खाते।
- – आपको जानकर आश्चर्य होगा कि किन्नर समाज अपने किसी सदस्य की मौत के बाद मातम नहीं मनाते। इसके पीछे ये वजह है कि मौत के बाद किन्नर को नरक रूपी जिन्दगी से से मुक्ति मिल गई।
- – मौत के बाद किन्नर समाज खुशियां मनाते हैं और अपने अराध्य देव अरावन से मांगते हैं कि अगले जन्म में मरने वाले को किन्नर ना बनाएं।
हर साल शादी करता है किन्नर
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- – किन्नरों की साल में एक दिन शादी होती है। यह शादी भी भगवान अरावन से होती है। भगवान अरावन की मूर्ति को शहर में घुमाया जाता है। अगले ही दिन किन्नर श्रृंगार उतारकर विधवा की तरह शोक मनाते हैं और सफेद कपड़े पहन लेते हैं।
- – किन्नर बहुचरा माता की पूजा कर उनसे माफी मांगते हैं और दुआ मांगते हैं कि अगले जन्म में उन्हें किन्नर की तरह जन्म ना लेना पड़े।
- – किन्नरों की ज्यादातर परम्पराएं हिन्दू धर्म के मुताबिक निभाई जाती हैं, लेकिन अधिकांश गुरु मुस्लिम होते हैं।
- – इतिहास में कुछ किन्नरों के जंग लड़ने का भी जिक्र है। इनमें से एक थे मलिक कफूर। उन्होंने दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के लिए दक्कन में जंग जीती थी।
सुबह से शाम तक ऐसा होता है रूटीन …
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- – ज्यादातर किन्नर 6 बजे तक उठ जाते हैं। 10 बजे तक नाश्ता करने के बाद ये काम पर निकल जाते हैं।
- – यहां के किन्नरों की अधिकांश कमाई ट्रेनों में गाने के जरिए होती है। इसके अलावा चेन्नई के दुकानदारों से वसूली कर ये दिनभर में ढाई सौ से बारह सौ रुपए तक कमा लेते हैं।
- – शाम को साढ़े पांच तक ये वापस ट्रेन पकड़कर बस्ती लौट आते हैं। रात को 10 बजे तक खाना खाकर साढ़े 11 बजे तक पूरी बस्ती के किन्नर सो जाते हैं।