निठारी के गुल्लूदत्त शर्मा की दुकानों पर बैन बैठे थे किराएदार, मालिक
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मौहम्मद इल्यास-दनकौरी /कानून रिव्यू
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सार संक्षेपः-
——– इस दौर में सपत्ति को संरक्षित रखना भी कडी चुनौती है। खून पसीने की कमाई से मानो संपत्ति बना ली और किराए का लालच आ गया। किराए पर मकान और दुकान देने के बाद यह गारंटी नही है कि आप वाकई मालिक रह भी पाएंगे ? अमूमन देखने में आता है कि दुकान अथवा मकान को किराए पर दे दिया जाता है किराएदार के रूप में पीढी दर पीढी गुरजने लगती है एक दिन ऐसा भी होता है कि किराएदार अपने को सिकमी किराएदार घोषित कर दुकान अथवा मकान को ही हथियाना शुरू कर देता है तब शुरूआत होती है कोर्ट कचहरी के चक्कर काटने की। कोर्ट किराएदार के पक्ष में पैसला दे अथवा मालिक के पक्ष में दे यह तो सबूतों और गवाहों पर ही निर्भर होता है। कानूनन तो किराए पर देने से पहले किरायानामा दर्ज करा लेना चाहिए। इससे मालिक और किरादार दोनो के बीच अच्छी तालमेल बनी रहती है। ऐसा ही एक मामला नोएडा के निठारी से प्रकाश में आया जंहा पहले दुकानें किराए पर लीं और फिर किरादार दादालाई बन उल्टा कोर्ट चले गए। अंत में कोर्ट ने मुकदमा डालने वालों के दावे को खारिज कर दिया है।
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मुकदमाः-
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—-न्यायालय सिविल जज (सी0डि0)/एफटीसी गौतमबुद्धनगर, मूलवाद संख्या-13/2013 अजय कुमार पुत्र श्री मदनलाल निवासी ग्राम निठारी सेक्टर-31 नोएडा, जनपद गौतमबुद्धनगर व मदनलाल पुत्र स्व0 लालूमल निवासी ग्राम निठारी सेक्टर-31 नोएडा, जनपद गौतमबुद्धनगर वादीगण बनाम गुल्लूदत्त शर्मा पुत्र स्व0 हरस्वरूप शर्मा ग्राम निठारी सेक्टर-31 नोएडा, जनपद गौतमबुद्धनगर प्रतिवादी में दावा वादीगण विरूद्ध प्रतिवादी वास्ते स्थायी निषेधाज्ञा सव्यय निरस्त कर दिया है।
अजय कुमार और मदनलाल दोनो बाप बेटों ने कोर्ट में दावा किया कि ग्राम निठारी स्थित तीन दुकान हैं जिनके वह मालिक और काबिज हैं और यह संपत्ति दादालाई है। जमींदारी खात्मा अधिनियम से पूर्व ही वे संपत्ति पर काबिज हैं। इन दुकानों पर वे किराना का व्यापार करते हैं तथा बिजली का कनेक्शन वादी संख्या-2 के नाम है जो सन 1997 का है। किंतु गुल्लूदत्त शर्मा उनकी इन दुकानों पर अवैध रूप से अपनी हैकडी व मुठमर्दी के आधार पर कब्जा करना चाहता है। यही नहीं दिनांक 15-012-2012 को प्रतिवादी गुल्लूदत्त शर्मा अपने साथ चार लोगों को लेकर आया और दुकानों पर कब्जे का असफल
प्रयास किया और साथ ही यह धमकी भी देकर चले गए कि आज वे कामयाब नही हुए हैं और फिर किसी दिन आकर कब्जा ले लेंगे। गुल्लूदत्त शर्मा के इस अवैधानिक कब्जे के असफल प्रयास करने के कृत्य की शिकायत एसएसपी गौतमबुद्धनगर से की। किंतु फिर दिनांक 27-12-2012 की दोपहर 1 बजे गुल्लूदत्त शर्मा अपने साथ राजकुमार, जयभगवान,कृष्ण, हरिओम, राजेश और गुप्ता जूस वाले को लेकर आए और दुकान पर बैठे पिता मदनलाल के साथ लाठी डंडों से मारपीट की तथा दुकानों का सारा सामान लूट कर ले गए, साथ ही दुकानों में ताला भी डाल दिया। दुकानों में ताले को बाद में पुलिस ने खुलवाया। इस पूरे मामले की शिकायत मुख्यमंत्री, गृहसचिव, पुलिस महानिदेशक, पुलिस महानिरीक्षक, पुलिस उपमहानिरीक्षक, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, पुलिस क्षेत्राधिकारी, कोतवाली में टेलीग्राम द्वारा की गई। दायर किए मुकदमे में इन लोगों ने मांग की कि प्रतिवादी यानी गुल्लूदत्त शर्मा माननीय न्यायालय की स्थायी निषेधाज्ञा की डिक्री पारित करने से ही मान सकता है अन्यथा नही। इसलिए उनके पक्ष में और गुल्लूदत्त शर्मा के खिलाफ इस आशय की स्थायी निषेधाज्ञा की डिक्री पारित किया जाना आवश्यक है कि प्रतिवादी, वादीगणों की तीनों दुकान के विधिपूर्ण स्वामित्व और कब्जे में स्वंय अथवा अपने एजेंट के माध्यम से हस्तक्षेप न करें।
गुल्लूदत्त शर्मा ने मुकदमा सिर पर आ जाने पर एसके मुखर्जी और फिर बाद में डीएस भडाना को अधिवक्ता नियुक्त किया। बचाव के इन अधिवक्ताओं ने इस मुकदमें में प्रस्तुत पत्र के प्रतिउत्तर में पत्र दाखिल करते हुए कथन किया कि वादीगण के वादपत्र में सभी दफा अस्वीकार हैं तथा अपनी ओर से उजरात मजीद प्रस्तुत करते हुए कथन किया कि मूलरूप से उक्त वाद वादी संख्या-1 द्वारा प्रतिवादी के विरूद्ध दायर किया गया है। दिनांक 03-01-2013 को प्रतिवादी को नोटिस जारी किया गया था। नोटिस जारी करते समय वादी संख्या-2 उक्त वाद पत्र पर नही था। माननीय न्यायालय द्वारा अमीन को दिनांक 24-01-2013 तक अपनी आख्या प्रस्तुत करने के लिए कहा था। अमीन द्वारा कथित रूप से मौके का मुआयना कर प्रतिवादी को सूचित किए बगैर वादी संख्या-1 से साज कर आख्या पत्रावली प्रस्तुत की गई तथा अमीन ने आख्या में यह भी बताने की चेष्टा नही की गई कि वादी संख्या-1 विवादित दुकान का मालिक और काबिज है जो पूर्णतया नियम विरूद्ध है। गुल्लूदत्त शर्मा के अधिवक्ता ने ने ऐतराज जताते हुए कहा कि दिनांक 24-01-2013 यानि नियत दिनांक को वादी द्वारा वादी संख्या-2 को वादी संख्या-1 के स्थान पर मालिक बताते हुए अतंर्गत आदेश-1 नियम-10 सीपीसी प्रार्थना पत्र 18 क1 माननीय न्यायालय के सम्मुख प्रस्तुत किया और माननीय न्यायालय ने प्रतिवादी को बगैर सूचना दिए उक्त प्रार्थना पत्र 18 क1 द्वारा वादी एकतरफा तौर से स्वीकार कर लिया गया जब कि प्रतिवादी को उक्त वाद में पूर्व में ही नोटिस जारी किया जा चुका था। विधि का यह भी सुव्यवस्थित सिद्वांत है कि किसी भी पक्षकार को नोटिस जारी किए जाने के बाद किसी भी अन्य प्रार्थना पत्र का बतौर उसको सूचित किए तब तक निस्तारित नही किया जा सकता है जब तक उक्त वाद पक्षकार के विरूद्ध एकतरफा रूप से अग्रसरित कर दिया गया है। इन परिस्थितियों में उक्त वाद में किया गया संशोधन या संशोधन प्रार्थना पत्र का स्वीकार किया जाना विधिक रूप से क्षेत्राधिकार से बाहर है। जिस कारण शून्य है। गुल्लूदत्त शर्मा के अधिवक्ता ने यह भी कहा कि उल्लेखनीय एवं आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि संशोधन प्रार्थन पत्र के स्वीकार किए जाने के बाद वाद पत्र में संशोधन करने हेतु एवं वाद पत्र में वादी संख्या-2 के हस्ताक्षर करने हेतु एक प्रार्थना पत्र जिस पर किसी भी पक्षकार के हस्ताक्षर नही है वादी संख्या-1 के अधिवक्ता द्वारा माननीय न्यायालय के सम्मुख प्रस्तुत किया गया है और माननीय न्यायालय ने भी उक्त प्रार्थना पत्र को दिनांक 30-01-2013 यानि उसी दिन स्वीकार भी कर लिया और वादी संख्या-1 के विद्वान अधिवक्ता ने कानून को बाला-ए- ताक पर रखकर बगैर किसी वकालातनामें के दीगर इंसान को वादपत्र पर मदनलाल पुत्र लालूमल का कोई भी वकालतनामा पत्रावली पर दाखिल कर वादी संख्या-1 के अधिवक्ता को उसकी ओर से दस्तखत करने और पैरोकारी करने हेतु अधिकृत नही किया गया था, लिहाजा वादी संख्या-1 की ओर से किया गया उक्त कृत्य फ्राड अपॉन कोर्ट है और अंतर्गत धारा 340 सीआरपीसी के तहत प्रोसीड किए जाने योग्य है। इसलिए वादी का वाद अतंर्गत धारा 1(ए) सीपीसी से बाधित है। वादी को राइट टू सू प्राप्त नही है। वादी संख्या-1 जो वास्तविक पक्षकार है को वाद का कारण प्राप्त नही है। माननीय न्यायालय को उक्त वाद सुनने और तय करने का हक हासिल नही है। बचाव पक्ष गुल्लूदत्त शर्मा के अधिवक्ता ने यह भी दलील दी कि वाद पत्र में दार्शित नक्शा नजरी अपने आप में गलत और मौके के खिलाफ है। वादी संख्या-1 जो वाद पत्र में मात्र पक्षकार है का विवादित स्थल से कोई लेना देना नही है और विवादित स्थल के संबंध में माननीय उच्च न्यायालय द्वारा पारित स्थगन आदेश भी प्राप्त है। प्रतिवादी के अधिवक्ता ने कहा कि वाद पोषणीय नही है खारिज किए जाने योग्य है। अतः प्रार्थना है कि वादी का वाद सव्यय खंडित किए जाने के आदेश पारित करने की कृपा करें।
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फैसलाः-
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—-सिविल जज (सी0डि0)/एफटीसी गौतमबुद्धनगर विजय कुमार तृतीय ने वाद के क्रम में उभय पक्षों और उनके गवाहों के तर्को को सुना और माना कि दुकानों में रह रहे अजय कुमार और मदनलाल बाप बेटे द्वारा दाखिल वाद विरूद्ध प्रतिवादी वास्ते स्थायी निषेधाज्ञा अनुतोष निरस्त किए जाने योग्य है तथा न्यायालय ने दावा वादीगण विरूद्ध प्रतिवादी वास्ते स्थायी निषेधाज्ञा सव्यय निरस्त किए जाने का आदेश सुनाया है।
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मकान मालिक और किराएदारी कानून क्या कहता है ?
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मकान मालिक और किराएदार के बीच के संबंध किराएदारी कानूनों से शासित होते हैं जो कि प्रत्येक राज्य के लिए अलग-अलग हैं। इन कानूनों में प्रावधान हैं कि मकान मालिक कब-कब मकान खाली करवा सकता है। यदि मकान मालिक के पास कानून में वर्णित कारणों में से कोई कारण उपलब्ध है तो वह किराएदार से मकान खाली करवा सकता है। सामान्य रूप से किराएदार यदि किराएदारी की तमाम शर्तों का पालन करता रहता है और मकान मालिक को स्वयं अथवा अपने परिवार के किसी सदस्य के लिए परिसर की सद्भाविक और युक्तियुक्त आवश्यकता नहीं है तो वह किराएदार से मकान खाली नहीं करवा सकता है। लेकिन ऐसा कोई कानून नहीं है कि किराएदार से मकान मालिक मकान खाली न करवा सकता हो।
सामान्य रूप से मकान मालिक निम्न कारणों से मकान खाली कराने का अधिकारी होता है-
- यदि किराएदार ने पिछले चार से छह माह से किराया अदा नहीं किया हो।
- किराएदार ने जानबूझ कर मकान को नुकसान पहुंचाया हो।
- किराएदार ने मकान में कोई निर्माण करवा लिया हो।
- किराएदार ने मकान मालिक की लिखित स्वीकृति के बिना मकान या उस के किसी भाग का कब्जा किसी अन्य व्यक्ति को सौप दिया हो।
- यदि किराएदार मकान मालिक के हक से इन्कार कर दिया हो।
- किराएदार मकान का उपयोग किराए पर लिए गए उद्देश्य के अलावा अन्य कार्य के लिए कर रहा हो।
- यदि किराएदार को मकान किराए पर किसी नियोजन के कारण दिया गया हो और किराएदार का वह नियोजन समाप्त हो गया हो।
- किराएदार ने अपनी आवश्यकता हेतु मकान का निर्माण कर लिया हो या ऐसे मकान का कब्जा हासिल कर लिया हो।
- किराएदार ने जिस प्रयोजन के लिए मकान किराए पर लिया हो पिछले छह माह से उस प्रयोजन के लिए काम में न ले रहा हो।
- मकान मालिक को राज्य या स्थानीय निकाय के आदेश के अनुसार या मानव आवास के अनुपयुक्त हो जाने के कारण मकान के पुनर्निर्माण की आवश्यकता हो।
इन कारणों के अलावा कुछ राज्यों में कुछ अन्य कारण भी मकान खाली कराने के लिए मकान मालिक को उपलब्ध हो सकते
हैं अथवा कुछ कारण अनुपलब्ध भी हो सकते हैं।
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गुल्लूदत्त शर्मा ही असली दुकान मालिक रहे हैं, सत्य की विजय हुईःभडाना
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– डीएस भडाना एडवोकेट
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प्रतिवादी के अधिवक्ता डीएस भडाना ने ’कानून रिव्यू’ को बताया कि तीनों दुकानें गुल्लूदत्त शर्मा की ही थीं। इन दुकानों को पहले वादीगण ने किराये पर लिया और फिर कब्जा कर बैठे। कब्जा करने की इस साजिश में वादीगण ने बिजली कनेक्शन को आधार बनाया जो न्यायालय में यह साबित करने में असफल रहे कि बिजली कनेक्शन दुकानों के लिए कॉमर्शियल क्यों नही लिया गया। दादालाई बन कर कोर्ट में मुकदमा दाखिल कर दिया। उन्होंने बताया कि इस मुकदमें में और भी कई ग्राउंउ थे कई नजीरें पेश की गई। यह फैसला उनके मुव्वकिल के हक में आया, यह उनके लिए खुशी की बात है, आखिर सत्य की ही विजय हुई है।
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