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केन्याई नागरिक से सोना जब्त करना कस्टम विभाग के लिए उल्टा पडा

01.06.2019 By Editor

कस्टम को जब्त सोना 93 लाख 34 हजार 783 रुपए मूल्य दिए जाने का आदेश

कानून रिव्यू/दिल्ली

दिल्ली हाईकोर्ट ने कस्टम अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वह केन्याई निवासी को 93 लाख 34 हजार 783 रुपए दें क्योंकि कस्टम ने उसका सोना जब्त किया और बिना कारण बताओ नोटिस जारी किए ही उसे बेच दिया। यह आदेश दो सदस्यीय खंडपीठ के न्यायमूर्ति एस0 मुरलीधर और आई0एस0 मेहता ने एक केन्याई महिला झीनीत बानू नजीर दादनी की तरफ से दायर याचिका पर सुनवाई के बाद दिया है। 5 जनवरी 2015 को दिल्ली एयरपोर्ट पर उसका 3732.8 ग्राम सोना कस्टम विभाग ने सीज कर लिया था। झीनीत ने दावा किया है कि वह भारत में गहने बनवाने के इरादे से सोना लाई थी और वापस ले जाकर उनको केन्या में बेचना चाहती थी। कस्टम अधिकारियों का कहना है कि वह अपने साथ लाए सोने के बारे में बताए बिना ही ग्रीन चैनल से निकलने की कोशिश कर रही थी। इसलिए इस सोने को कस्टम एक्ट की धारा 110 के तहत सीज किया गया था क्योंकि इसे कस्टम ड्यूटी दिए बिना भारत में अवैध तरीके से लाया जा रहा था। सोना वापस न मिलने से असंतुष्ट होकर उसने वर्ष 2018 में दिल्ली हाईकोर्ट में यह कहते हुए रिट पीटिशन दायर की कि उसे कारण बताओ नोटिस जारी नहीं किया गया। याचिका के विरोध में काफी देरी से विभाग ने अपना हलफनामा दायर करते हुए कहा कि 30 जून 2015 को झीनीत को एंबेसी के जरिए कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था। हालांकि 11 नवंबर 2015 को केन्यन एंबेसी ने अपने जबाव में बताया कि वह अपने बताए गए पते पर नहीं रहती है। विभाग ने यह भी बताया कि अधिनिर्णय का आदेश महिला के खिलाफ 15 जनवरी 2019 को पास किया गया था,जिसके बाद नीलामी के जरिए सोने को बेच दिया गया। कोर्ट ने इस तथ्य को अपवाद माना कि कस्टम विभाग ने एक केन्याई निवासी के खिलाफ स्थगन आदेश पारित कर दिया और उसे नोटिस जारी किए बिना की उसके सोने का निपटान कर दिया। कस्टम एक्ट की धारा 110(2 ) रिड विद 124(1 ) के तहत जब्त किए जाने के छह महीने के अंदर कारण बताओ नोटिस जारी किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि जब्त किए जाने के बाद विभाग ने कारण बताओ नोटिस तामील करवाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया। कोर्ट ने यह भी पाया कि केन्याई महिला को बिना नोटिस दिए ही स्थगन या अधिनिर्णय आदेश दे दिया गया। जबकि यह पता था कि हाईकोर्ट में रिट पीटिशन लंबित है। फैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति मुरलीधर ने कहा कि. छगनलाल गेनमुल बनाम कलेक्टर ऑफ़ सेंट्रल एक्साईज 1999(109 ) ई0एल0टी0 21 एससी के मामले में बताया गया है कि अगर सीज करने के छह माह के अंदर एससीएन न जारी किया जाए तो इसका परिणाम यह होगा कि जिस व्यक्ति सेसोना जब्त किया गया था। वह उसे वापस पाने का हकदार बन जाएगा। इस केस में दिया गया स्थगन आदेश भी अवैध है क्योंकि कमीश्नर ने असल में याचिकाकर्ता को बिना एससीएन तामील करवाए एक तरफा आदेश दिया था।् इस मामले में दूसरी अवैधता यह है कि सोने का निपटारा बिना नोटिस जारी किए ही कर दिया गया। धारा 110(1 ) के तहत सीज सामान का निपटारा करने से पहले उसके मालिक को नोटिस जारी करना जरूरी है। पीठ ने कहा कि. प्रतिवादी इस बात के लिए कोई कारण नहीं बता पाए कि क्यों वह सोने का निपटारा करने के लिए मजबूर थे। जबकि वह न तो खराब होने वाली वस्तु थी और न ही खतरनाक था न ही इस बात का जवाब दिया गया कि जिस व्यक्ति से इसे सीज किया था। उसे नोटिस जारी किए बिना ही इसका निपटारा क्यों किया गया?

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