केरल सरकार ने सीएए को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में सूट दायर किया
कानून रिव्यू/नई दिल्ली
सीएए, एनआरसी और एनपीआर पर उठा विवाद थमने का नाम ले रहा है। पूरे देश में इस कानून को लेकर धरना प्रदर्शन चल रहे हैं। छात्र, राजनीतिक दल और आम लोग भी सरकार को घेरने में लगे हुए हैं। गैर भाजपा सरकारों ने सीएए कानून को लागू किए जाने से ही इंकार कर दिया है। यदि केरल का ही उदाहरण लें तो वहां की सरकार ने बाकायदा इस कानून को लेकर एक प्रस्ताव पारित किया है। यहां तक ही अब तो केरल की सरकार, केंद की मोदी सरकार के खिलाफ खुल कर मैदान में आ डटी है। केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में केंद्र की मोदी सरकार को खुली चुनौती दी है। इससे केंद्र सरकार एक नई मुसीबत में फंसती नजर आ रही है। सुप्रीम कोर्ट पहले ही साफ कर चुकी है कि देश जिस कठिन दौर से गुजर रहा है ऐसे में इस तरह के किसी कानून को सभी राज्यों में लागू किए जाने की याचिका की जल्द सुनवाई नही की सकती है। केरल सरकार ने भारत सरकार के खिलाफ सीएए को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में सूट दायर किया है। केरल राज्य ने विवादास्पद नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 की वैधता को चुनौती देते हुए भारत के संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत ये वाद दायर किया है। सूट में पासपोर्ट भारत में प्रवेश संशोधन नियम 2015 और विदेशियों संशोधन आदेश 2015 को भी चुनौती दी गई है जिसने पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से उन गैर.मुस्लिम प्रवासियों के प्रवास को नियमित कर दिया है जो 31 दिसंबरए 2014 से पहले इस शर्त पर भारत में दाखिल हुए थे कि वे अपने घर में धार्मिक उत्पीड़न के चलते भाग आए थे। भारत के कानून और न्याय मंत्रालय के सचिव और भारत सरकार को इस सूट में प्रतिवादी बनाया गया है। जानना जरूरी है कि संविधान का अनुच्छेद 131 भारत सरकार और किसी भी राज्य के बीच किसी भी विवाद में सर्वोच्च न्यायालय को मूल अधिकार क्षेत्र देता है जहां तक इस विवाद में कोई प्रश्न ;कानून या तथ्य का शामिल है जिस पर कानूनी अधिकार का अस्तित्व या सीमा निर्भर करती है। केरल ने इस सूट में सीएए और पासपोर्ट भारत में प्रवेश नियम और विदेशियों के तहत लागू किए गए नोटिफिकेशन को कानूनी विवाद के रूप में घोषित किया है क्योंकि वे प्रकट रूप से मनमाने और असंवैधानिक हैं। अनुच्छेद 131 के तहत मुकदमा बनाए रखने के लिए याचिका में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 256 के जनादेश के अनुसार ये संशोधन अधिनियम अधिनियमित पासपोर्ट नियम संशोधन और प्रभावित विदेशी आदेश संशोधन के प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए वादी राज्य को बाध्य बनाएगा जो स्पष्ट रूप से मनमाना अनुचित अनुच्छेद 14, 21 और 25 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन और तर्कहीन है। इस प्रकार वादी केरल राज्य और प्रतिवादी भारत संघ के बीच एक विवाद मौजूद है जिसमें कानून और तथ्य के प्रश्न शामिल हैं एक राज्य के रूप में कानूनी अधिकारों के प्रवर्तन के बारे में और केरल राज्य के निवासियों के मौलिक, वैधानिक, संवैधानिक और अन्य कानूनी अधिकारों के प्रवर्तन के तौर पर। इसलिए संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत यह सूट दायर किया जा रहा है। सूट में यह घोषित करने का अनुरोध किया गया है कि सीएए संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 25 का उल्लंघन है और साथ ही संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता के मूल संरचना सिद्धांत का उल्लंघन है। इसमें सीएए पासपोर्ट भारत में प्रवेश संशोधन नियम 2015 और विदेशियों संशोधन आदेश 2015 को संविधान के तहत शून्य घोषित करने की मांग भी की गई है। यह सूट सीएए को उसी तरह के आधार पर चुनौती देता है जैसे कि सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई विभिन्न अन्य याचिकाओं में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करते हुए इस कानून के जरिए संरक्षण से प्रवासियों का धर्म आधारित बहिष्कार किया जाएगा। यह तर्क दिया गया है कि सीएए में प्रवासियों और देशों का वर्गीकरण किसी भी समझदार भिन्नत पर आधारित नहीं है और इसका अधिनियम के उद्देश्य के साथ कोई तर्कसंगत संबंध नहीं है। इसलिए वर्गीकरण को अनुचित और भेदभावपूर्ण बताया गया है। यह भी आग्रह किया गया है कि यह अधिनियम भारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्ष चरित्र का उल्लंघन करके नागरिकता को धर्म से जोड़ता है। गौरतलब है कि केरल विधायिका ने 31 दिसंबर को सीएए के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया था। केरल सरकार ने राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के संबंध में प्रारंभिक कार्यों पर भी रोक लगा दी है, जिसे एनआरसी का पहला कदम माना जाता है।