कानून रिव्यू/नई दिल्ली
जाली नोटों के मामले में न्यायिक हिरासत काट रहे कैंसर से पीड़ित एक विचाराधीन कैदी की अंतरिम जमानत याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। याचिका में कैंसर से पीड़ित कैदी ने अपनी मां की गोद में आखिरी सांस लेने की इच्छा जाहिर करते हुए सुप्रीम कोर्ट से उसकी अंतरिम जमानत की अर्जी मंजूर करने की अपील की थी। जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने इस मामले की सुनवाई के बाद याचिका को खारिज कर दिया। हालांकि याचिकाकर्ता आशू जैफ की ओर से पेश वकील ने यह दलील दी थी कि इस केस के 2 सह. आरोपियों को जमानत दी जा चुकी है। वैसे भी ये मामला समानता के अधिकार के तहत जमानत का बनता है। लेकिन पीठ ने पूछा कि कैंसर का पता कब चला तो वकील ने बताया कि वर्ष 2018 में। इस पर पीठ ने याचिका को खारिज कर दिया। इससे पहले चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की अवकाश पीठ ने इस याचिका पर पुलिस को नोटिस जारी करते हुए 5 जून तक उनकी ओर से जवाब मांगा था। याचिकाकर्ता के पास से जाली नोट बरामद किए गए थे और पिछले साल जयपुर में उसके खिलाफ केस दर्ज किया गया था। राजस्थान हाईकोर्ट ने इस मामले में 24 अप्रैल को उसे अंतरिम जमानत देने से मना कर दिया थी। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी। याचिकाकर्ता ने पीठ को यह बताया था कि वह जेल में मुंह के कैंसर के तीसरे चरण से जूझ रहा है और जयपुर के सवाई मान सिंह अस्पताल में उसे रेडियो थेरेपी करानी पड़ती है। उसने यह दावा किया कि बीमारी का सही इलाज कराने के उसके अधिकार का हनन किया जा रहा है। कैदी ने अंतरिम जमानत की मांग करते हुए कहा था कि उसके मुकदमे की सुनवाई पूरी होने में लंबा वक्त लगेगा और हो सकता है कि इस दौरान उसकी मृत्यु हो जाए। वह अपनी मां की गोद में मरना चाहता है।