ऑक्सीजन की कमी के कारण मरने वाले लोगों को मुआवजा देना होगा, यह राज्य की जिम्मेदारी
एक्टिविस्ट साकेत गोखले ने सोशल मीडिया पर ऑक्सीजन के लिए अपील करने वालों के खिलाफ यूपी सरकार की सख्त कार्रवाई पर रोक लगाने की मांग करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया
मौहम्मद इल्यास-’’दनकौरी’’/नई दिल्ली
——————————————————-कोरोना महामारी को लेकर पूरे देश में डरावनी तस्वीर सामने आ रही है। कोरोना एक तरह से काल बन कर टूट रहा है। कब्रिस्तान और शमशानों में लाशों के ढेर मानव ़¬त्रासदी की कहानी बयां कर रहे हैं। देर से सही सरकारें अब जाग उठी है। किंतु सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट तक इस ़़़त्राहिमाम में कई तरह के आदेश और निर्देश दे रहे हैं। आइए नजर डालते हैं एक खास रिपोर्ट पर।
दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि ऑक्सीजन की कमी के कारण मरने वाले लोगों को मुआवजा देना होगा, यह राज्य की जिम्मेदारी है। दिल्ली सरकार को निर्देश दिया है कि वह ऑक्सीजन की कमी के कारण अस्पतालों व नर्सिंग होम में हुई मौतों के संबंध में रिपोर्ट दाखिल करें। इस संबंध में शपथ पत्र 4 दिनों के भीतर दायर किया जाए। कोर्ट ने आदेश दिया कि,’’हम जीएनसीटीडी को निर्देश देते हैं कि वह सभी अस्पतालों और नर्सिंग होम से पूछताछ करके पता लगाए कि ऑक्सीजन की कमी के कारण उक्त अस्पतालों और नर्सिंग होम में कितनी मौत हुई है और उसके बाद एक रिपोर्ट दायर की जाए। ऐसी सभी मौतों का विवरण अर्थात रोगी का नाम, जिस वार्ड/कमरे में वे भर्ती थे, मृत्यु का समय और मृत्यु का कारण एक सारणीबद्ध रूप में इंगित किया जाना चाहिए। इस संबंध में हलफनामा 4 दिनों के भीतर दायर किया जाए।
कोरोना संक्रमण से शायद केंद्र सरकार लोगों को मरने देना चाहती हैःदिल्ली हाई कोर्ट
दिल्ली हाई कोर्ट
कोरोना संक्रमण से शायद केंद्र सरकार लोगों को मरने देना चाहती है। रेमडेसिविर इंजेक्शन को देने के प्रोटोकॉल को देखते हुए तो ऐसा ही लगता है। कोरोना संक्रमण के शिकार एक अधिवक्ता की ओर से दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने ये टिप्पणी करते हुए केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। केंद्र सरकार की ओर से जारी नए प्रोटोकॉल के मुताबिक रेमडेसिविर इंजेक्शन उन लोगों को ही दिया जाएगा, जो ऑक्सीजन के सपोर्ट पर हैं। इस पर कोर्ट ने कहा कि यह न केवल गलत है, बल्कि पूरी तरह से दिमाग को इस्तेमाल न किए जाने जैसा है। अब उन लोगों को रेमडेसिविर इंजेक्शन नहीं मिलेगा, जो ऑक्सीजन सपोर्ट पर नहीं हैं। कोर्ट ने कहा कि इस नियम से ऐसा लगता है कि आप लोगों को मरने देना चाहते हैं। जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह ने कहा कि ऐसा लगता है कि सरकार ने उपलब्धता को बढ़ाने की बजाय प्रोटोकॉल में ही बदलाव कर दिया है ताकि इंजेक्शन की कमी को छिपाया जा सके। यह पूरी तरह से मिसमैनेजमेंट है। वकील ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से कहा कि उन्हें 6 इंजेक्शनों की जरूरत थी, लेकिन तीन ही मिल पाए। हालांकि अदालत के दखल के बाद उन्हें बाकी बचे इंजेक्शन मिल सके।
एक्टिविस्ट साकेत गोखले ने सोशल मीडिया पर ऑक्सीजन के लिए अपील करने वालों के खिलाफ यूपी सरकार की सख्त कार्रवाई पर रोक लगाने की मांग करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया
इलाहाबाद हाईकोर्ट
एक्टिविस्ट साकेत गोखले ने सोशल मीडिया पर ऑक्सीजन के लिए अपील करने वालों के खिलाफ यूपी सरकार की सख्त कार्रवाई पर रोक लगाने की मांग करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया है। गोखले ने कोर्ट से यूपी सरकार को ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने से रोकने की मांग की है जो सोशल मीडिया पर ऑक्सीजन की आपूर्ति और अन्य चिकित्सकीय सहायता के लिए अपील कर रहे हैं। एक्टिविस्ट साकेत गोखले स्वेच्छा से सेवा करने वाले लोगों की सुरक्षा भी चाहते हैं, जो फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप सहित सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर ऑक्सीजन की आपूर्ति और दवा की उपलब्धता के बारे में जानकारी एकत्र करके कोविड-19 रोगियों और उनके परिवारों की मदद कर रहे हैं। याचिका में कहा गया है कि सोशल मीडिया पर ऑक्सीजन के लिए एसओएस कॉल करने वाले गंभीर रोगियों के परिवारों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज करना राज्य की शक्तियों का दुरुपयोग है और यह गैर.कानूनी कार्रवाई सरकार की छवि को बनाए रखने और कोविड-.19 महामारी से निपटने में सरकार की नाकामी की आलोचना से बचाने के लिए की जा रहा है। इसके साथ ही राज्य में सबकुछ ठीख है ऐसी गलत तस्वीरें पेश की जा रही हैं। गोखले का कहना है कि हाल ही में यूपी में अमेठी पुलिस ने झूठी सूचना फैलाने के आरोप में आईपीसी के विभिन्न प्रावधानों के तहत एक लड़के पर मुकदमा दर्ज किया। हालांकि सच्चाई यह है कि आरोपी ने अपने दादा की जान बचाने के लिए ट्विटर पर ऑक्सीजन की आपूर्ति की मांग की थी। गोखले ने तर्क दिया कि भारत के प्रत्येक व्यक्ति को गारंटीकृत प्राप्त भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार और अनुच्छेद 19 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को छीन लिया गया है। याचिका में कहा गया कि कोविड-.19 रोगियों के परिवार वालों को झमकी देना जो ऑक्सीजन की कमी का सामना कर रहे हैं जिनके जीवन और मृत्यु का मामला है, यह कोविड-.19 रोगियों के परिवारों के बीच भय पैदा करता है और यह रोगियों तक मदद पहुंचने से रोक रहा है जो जीवन को बचा सकता है। राज्य इस तरह से लोगों को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं कर सकता है और लोगों को बोलने और जीवन की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं कर सकता है। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रविवार को एक वर्चुअल प्रेस कॉन्फेंस में कहा था कि राज्य में किसी भी निजी या सार्वजनिक कोविड-.19 अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी नहीं है और सोशल मीडिया पर इस तरह के गलत अफवाह फैलाने वाले लोगों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाएगी। मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने अफवाहें फैलाने वाले लोगों पर निगरानी रखने के लिए उच्च रैंक के पुलिस अधिकारियों को निर्देश जारी किए और इस तरह की सभी घटनाओं की विधिवत जांच कर यह देखने के लिए कि क्या डर पैदा करने के लिए यह किया गया है।