सुप्रीम कोर्ट ने मामला फिर से बॉम्बे हाईकोर्ट को भेजा
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय, गृह मंत्रालय व डब्ल्यूएचओ के दिशा निर्देशों में साफ तौर पर कहा गया है कि कोरोना संक्रमण से मरने वाले लोगों को दफनाने से कोई अतिरिक्त खतरा नहीं है। हालांकि उन्होंने दफनाने वाले लोगों को मृतक शरीर से निकलने वाले तरल पदार्थ से बचने की सलाह दी है। अमेरिका, ब्रिटेन, इटली, कनाडा व मध्य पूर्व देशों में भी कोरोना से मरने वाले लोगों को दफनाया जा रहा है और वहां भी ऐसा करने से वायरस का प्रसार होने की बात नहीं कही गई है।
कानून रिव्यू/नई दिल्ली
कोविड- 19 महामारी में जान गंवा चुके मुस्लिमों को कब्रगाह में दफन करने पर अस्थायी प्रतिबंध लगाए जाने संबंधी मामला सुप्रीम कोर्ट ने फिर से बॉम्बे हाईकोर्ट को भेज दिया। न्यायमूर्ति रोहिंगटन फली नरीमन और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की खंडपीठ ने प्रदीप गांधी की विशेष अनुमति याचिका की वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई करते हुए यह मामला फिर से हाईकोर्ट को भेज दिया और सुनवाई दो हफ्ते में पूरी करने का निर्देश भी दिया है। खंडपीठ ने कहा कि याचिका में की गई मांग को नकारने का हाईकोर्ट का आदेश अंतरिम था, इसलिए हाईकोर्ट मौजूदा परिप्रेक्ष्य में याचिका पर दोबारा विचार करें। याचिकाकर्ता ने कोरोना संक्रमित शव को अपने आवासीय इलाके के आगे कब्रगाह में दफनाने पर अस्थायी रोक की मांग की है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने गत 27 अप्रैल को प्रदीप गांधी की यह याचिका खारिज कर दी थी, जिसे उन्होंने शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी। गौरतलब है कि मुंबई निवासी प्रदीप गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर बॉम्बे हाईकोर्ट के 27 अप्रैल के एक अंतरिम आदेश को चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने बांद्रा पश्चिम स्थित तीन कब्रिस्तानों में कोरोना से मरने वाले लोगों को दफनाए जाने पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। गांधी ने यह आशंका जताई है कि कोरोना से मरने वाले लोगों को दफनाने से आसपास के इलाकों में वायरस का संक्रमण फैलने का खतरा है क्योंकि इनके आसपास घनी आबादी है और करीब 3 लाख लोग रहते हैं। इसलिए इन लोगों को कहीं और दफनाया जाए जहां आबादी कम हो। वहीं जमीयत उलमा ए हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में इस याचिका के खिलाफ अर्जी दाखिल की है, जिसमें कोरोना संक्रमण से मरने वाले लोगों को दफनाए जाने पर आपत्ति जताई गई है। वकील एजाज मकबूल के माध्यम से दाखिल आवेदन में कहा गया है कि इस्लाम धर्म में मरने के बाद दफनाना अनिवार्य है। ऐसा ईसाई सहित कई अन्य धर्मों में भी है। यह संविधान में अनुच्छेद.25 के तहत किसी भी धर्म को अपनाने व उसका अनुसरण करने के अधिकार में सम्मिलित है। जमीयत ने आवेदन में कहा है कि याचिकाकर्ता ने कोरोना वायरस से मरे लोगों को दफनाने पर आसपास के इलाके में संक्रमण का खतरा जताया है, जो आधारहीन है। जमीयत ने अपने आवेदन में कहा है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय, गृह मंत्रालय व डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देशों में साफ तौर पर कहा गया है कि कोरोना संक्रमण से मरने वाले लोगों को दफनाने से कोई अतिरिक्त खतरा नहीं है। हालांकि उन्होंने दफनाने वाले लोगों को मृतक शरीर से निकलने वाले तरल पदार्थ से बचने की सलाह दी है। अमेरिका, ब्रिटेन, इटली, कनाडा व मध्य पूर्व देशों में भी कोरोना से मरने वाले लोगों को दफनाया जा रहा है और वहां भी ऐसा करने से वायरस का प्रसार होने की बात नहीं कही गई है।