गुवाहाटी हाईकोर्ट ने नागालैंड सरकार को दिया निर्देश
कुसुम राणा/गुवाहाटी
गुवाहाटी हाईकोर्ट ने नागालैंड सरकार को निर्देश दिया है कि वह एक गर्भवती महिला के परिवार को 25 लाख रुपये का मुआवजा दे। महिला की जिला अस्पताल जाते हुए रास्ते में ही मौत हो गई थी। अस्पताल उसके गांव से 130 किलोमीटर दूर था। जीवन के अधिकार में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल का अधिकार भी शामिल है। इसी के साथ न्यायमूर्ति सोंगखुपचुंग सेर्टो ने कहा कि प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करना राज्य का कर्तव्य है। मृत महिला के बेटे ने हाईकोर्ट की कोहिमा पीठ का दरवाजा खटखटाया था और कहा था कि उप.केंद्रों के लिए भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानकों के दिशानिर्देशों के अनुसार उनके गांव में उन सबके लिए ऐसा टाइप.बी उप.केंद्र होना चाहिए था जिसमें प्रसव कराने के लिए बुनियादी सुविधाएं हो। चूंकि उस दिन उप.केंद्र बंद था और उसमें प्रसव के लिए कोई उचित सुविधा उपलब्ध भी नहीं थी इसलिए उसके परिवार के पास उसकी मां को जिला अस्पताल ले जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि यदि वे सजग होते और अपने कर्तव्यों का पालन कर रहे होते तो गांव का उप.केंद्र चालू हालत में होता और इस तरह की दुर्भाग्यपूर्ण घटना को रोका जा सकता था। वास्तव में इस तरह की घटना हर स्तर पर जिम्मेदार लोगों की अंतरात्मा को झकोरती हैं। यदि ऐसा न होता तो किसी को कुछ कार्रवाई करनी चाहिए थी और कुछ लोगों को इसके लिए जवाबदेह बनाया जाता ताकि भविष्य में कम से कम ऐसी घटना दोबारा न हो पाए। सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों का हवाला देते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि स्वस्थ जीवन का अधिकार अनुच्छेद 21 में निहित है इसलिए स्वास्थ्य और चिकित्सा देखभाल अनुच्छेद 21 के दायरे में आती हैं। पीठ ने कहा कि स्वस्थ जीवन का अधिकार स्वास्थ्य को संदर्भित करता है और इसका मतलब है कि स्वास्थ्य का सबसे प्राप्य स्तर जो हर इंसान का अधिकार है। अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के तहत अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा स्वास्थ्य को बुनियादी और मौलिक मानव अधिकार माना गया है। अन्य सभी मानवाधिकारों के विपरीत स्वास्थ्य का अधिकार राज्य पर एक दायित्व बनाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि स्वास्थ्य के अधिकार को सम्मानित, संरक्षित और पूरा या संतुष्ट किया जा सके और सभी नागरिकों को विधिवत तरीके से मिल सकें।