पारिवारिक न्यायालय द्वारा पत्नी नहीं होने या उसके विवाह को अवैधानिक करार नहीं दिया जाता है तब तक वह उस घर की बहू है
ससुर घर मे बहू को रहने का पूरा हक है और इससे बहू को वंचित नही किया जा सकता है- बंबई हाई कोर्ट
- कानून रिव्यू/मुंबई
………………………………..ससुर घर मे बहू को रहने का पूरा हक है और इससे बहू को वंचित नही किया जा सकता है। बंबई हाई कोर्ट ने कहा है कि यदि कोई घर उसके पति का न होकर उसके ससुर का है तो उस घर की बहू को उस घर में रहने का पूरा अधिकार है और उसे उस घर से बाहर नहीं किया जा सकता है। अदालत ने कहा कि यह फैसला महिलाओं को घरेलू हिंसा से संरक्षण कानून पर आधारित है। इस कानून में यह कहा गया है कि जब तक महिला को पारिवारिक न्यायालय द्वारा पत्नी नहीं होने या उसके विवाह को अवैधानिक करार नहीं दिया जाता है तब तक वह उस घर की बहू है। महिला के पति का आरोप है कि वह उसके पिता के मुलुंड स्थित घर में आ धमकी या जबरदस्ती घुस गई है।
गौरतलब है कि मई 2017 में पारिवारिक न्यायालय ने कहा था कि यह फ्लैट पूरी तरह से ससुर का है और उनका बेटा अलग से नवी मुंबई में रहता है। इसलिए बहू को उस फ्लैट में जगह नहीं दी जा सकती है। पारिवारिक न्यायालय का यह भी कहना था कि इस फ्लैट में बेटे का अपने पिता के साथ कोई हित या अधिकार नहीं था इसलिए पत्नी को इस सम्पत्ति में कोई अधिकार नहीं है और वह कोई राहत नहीं मांग सकती है। पत्नी ने हाईकोर्ट में अपील करते हुए कहा कि उसे उसके वैवाहिक घर से निकाल दिया गया है। उसके वकील राजेश धरप ने कहा कि वह फ्लैट उसके ससुर के नाम से हो सकता है लेकिन वह उसका वैवाहिक घर है और उसे इस घर से कोई बाहर नहीं निकाल सकता और उसमें रहने से कोई रोक नहीं सकता है। पति के वकील ने कहा कि यह भी कानून है कि पत्नी तभी किसी सम्पत्ति पर अपना अधिकार जता सकती है जब वह उसके पति की हो न कि उसके रिश्तेदारों की। न्यायाधीश शालिणी फणसलकर जोशी ने अपने फैसले में घरेलू हिंसा कानून को आधार बताते हुए कहा कि इस कानून में महिला के अधिकारों को विस्तृत रूप से परिभाषित किया गया है और उसके अनुसार महिला को अपने वैवाहिक घर में रहने का अधिकार है चाहे उस घर पर उसका कोई अधिकार हो या नहीं या उस पर मालिकाना हक हो या नहीं। न्यायाधीश ने कहा कि पति.पत्नी में विवाद शुरू होने से पहले दोनों मुलुंड वाले घर में ही रहते थे। वे वहां पति.पत्नी के रूप में रहते थे और उनका घरेलू रिश्ता था। इसलिए कानून के तहत यह सम्पत्ति पत्नी की भी है और उसे उस फ्लैट में रहने का अधिकार है। न्यायाधीश ने कहा कि इस स्थिति में यह बेकार आधार है कि वह फ्लैट उसका है या नहीं या उसके पति का है या नहीं। न्यायाधीश ने कहा कि कागजों में ऐसा कहीं उल्लेख नहीं है कि उसके पति ने अपना निवास नवी मुंबई में कर लिया है क्योंकि अग्रिम जमानत की उसकी अर्जी में उसने अपना पता मुलुंड का ही दिया है। कोर्ट को पति द्वारा दी गई दलीलों में नहीं फंसाया जा सकता है। न्यायाधीश ने यह भी कहा कि पारिवारिक न्यायालय ने इस मामले में सभी तथ्यों पर गौर नहीं किया है और वह उसके आदेश को खारिज करती है।