सरकार के सिर्फ विश्वास के आधार किसी व्यक्ति को आतंकी घोषित करने की कार्रवाई मनमानी और ज्यादती वाली है क्योंकि संबंधित व्यक्ति को कभी यह नहीं बताया जाता कि उसे किन आधारों पर इस तरह अधिसूचित किया गया है। इस तरह, आतंकी घोषित करने संबंधी अधिसूचना को धारा 36 के तहत चुनौती देने का प्रावधान निरर्थक हो जाता है। याचिका में संशोधित कानून की धारा 35 और 36 को असंवैधानिक और शून्य घोषित करने का अनुरोध किया गया है क्योंकि इससे नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन होता है।
कानून रिव्यू/नई दिल्ली
उच्चतम न्यायालय ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून में संशोधनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्र को नोटिस जारी किया। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने संजय अवस्थी और गैर सरकारी संगठन ’एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स’ की याचिका पर संक्षिप्त सुनवाई के बाद केंद्र को नोटिस जारी किया। इन याचिकाओं में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून में किए गए संशोधनों को कई आधारों पर चुनौती दी गई है। इनमें कहा गया है कि इन संशोधनों से नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन होता है और यह जांच एजेन्सियों को किसी भी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करने का अधिकार देते हैं। गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून में संशोधनों को संसद ने 2 अगस्त को मंजूरी दी थी और राष्ट्रपति ने 9 अगस्त को इसे अपनी संस्तुति प्रदान की थी। संशोधित कानून केंद्र को किसी भी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करने और उसकी संपत्ति जब्त करने का अधिकार देता है। इसी तरह, ये संशोधन एक बार आतंकवादी घोषित किए गए व्यक्ति के यात्रा करने पर पाबंदी लगाते हैं। याचिका के अनुसार, इन संशोधनों से निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बगैर ही संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त प्रतिष्ठा और गरिमा के मौलिक अधिकारों का हनन होता है। याचिका में कहा गया है कि सिर्फ सरकार के मान लेने मात्र के आधार पर किसी व्यक्ति को बदनाम करना अनुचित, अन्याय पूर्ण है और निर्धारित प्रक्रिया का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि कानून की संशोधित धारा 35 में इस बात का कोई जिक्र नहीं है कि किस समय एक व्यक्ति को आतंकवादी घोषित किया जा सकता है। याचिका में कहा गया है कि सरकार के सिर्फ विश्वास के आधार किसी व्यक्ति को आतंकी घोषित करने की कार्रवाई मनमानी और ज्यादती वाली है क्योंकि संबंधित व्यक्ति को कभी यह नहीं बताया जाता कि उसे किन आधारों पर इस तरह अधिसूचित किया गया है। इस तरह, आतंकी घोषित करने संबंधी अधिसूचना को धारा 36 के तहत चुनौती देने का प्रावधान निरर्थक हो जाता है। याचिका में संशोधित कानून की धारा 35 और 36 को असंवैधानिक और शून्य घोषित करने का अनुरोध किया गया है क्योंकि इससे नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन होता है।
जानेः– अवैध गतिविधियां (रोकथाम) संशोधन अधिनियम
अवैध गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम को साल 1967 में ’भारत की अखंडता तथा संप्रभुता की रक्षा’ के उद्देश्य से पेश किया गया था और इसके तहत किसी शख्स पर ’आतंकवादी अथवा गैरकानूनी गतिविधियों’ में लिप्तता का संदेह होने पर किसी वारंट के बिना भी तलाशी या गिरफ्तारी की जा सकती है। इन छापों के दौरान अधिकारी किसी भी सामग्री को ज़ब्त कर सकते हैं। आरोपी को ज़मानत की अर्ज़ी देने का अधिकार नहीं होता, और पुलिस को चार्जशीट दायर करने के लिए 90 के स्थान पर 180 दिन का समय दिया जाता है।