सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिला पुरुष बराबर हैं तो आपराधिक कानून भी बराबर होना चाहिए। हर बार महिलाएं पीड़ित नहीं हो सकतीं। बात सही भी है। सालों से भारत में महिलाओं के हक को दबाया गया है जिसे बचाने के लिए कानून बनाए गए। लेकिन पुरुषों का आरोप है कि महिलाओं के हक में बनाए गए इन कानूनों से उनका शोषण हो रहा है। दहेज कानून का दुरुपयोग पुरुषों के खिलाफ जिस कानून का सबसे ज्यादा दुरुपयोग किया जाता है वो है दहेज उत्पीड़न। पति और परिवार पर दहेज का आरोप लगते ही सबसे पहले गिरफ्तारी की जाती है। कई बार आरोप झूठे निकलते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब तक आरोप तय न हो जाएं तब तक गिरफ्तारी न की जाए। रेप कानून पुरुषों को नहीं देता संरक्षण देश में रेप को लेकर कड़ा कानून है लेकिन ये कानून पीड़ित पुरुष को संरक्षण नहीं देता है। कानून में पुरुष से रेप की कोई परिभाषा नहीं बताई गई है। पुरुषों के हक में काम कर रहे कई संगठनों का कहना है कि इसे भी अपराध की श्रेणी में डाला जाना चाहिए। समाज में प्रचलित सोच यही है कि पुरुषों का रेप नहीं हो सकता। इसलिए कानून भी इनके खिलाफ है। घरेलू हिंसा का कानून केवल महिलाओं को देता है
अगर एक पति शादी के बाद संबंध बनाता है तो उसे पांच साल तक की सजा का प्रावधान है। वहीं अगर एक पत्नी शादी के बाद किसी दूसरे मर्द से संबंध बनाती है तो उसे कोई सजा नहीं मिलती। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि समाज के साथ.साथ सोच भी विकसित होती है। अगर महिला.पुरुष बराबर हैं तो उन्हें सजा भी बराबर मिलनी चाहिए।
- कानून रिव्यू/ नई दिल्ली
—————————-गैर मर्द से शारीरिक संबंध बनाने पर बीबी पर कानून की तलवार लटकनी तय हो गई है। पति यदि किसी दूसरी महिला से संबंध बनाता था तो उसे व्याभाचिर का दोषी मानते हुए दंडित किया जाता है किंतु यदि पत्नी किसी दूसरे पुरूष से संबंध बनाने की दोषी पाई जाती थी तो कोई खास दंड का प्रावधान नही किया गया था। अब इस तरह की बीबी जो गैर मर्द से जिना यानी शारीरिक संबंध बनाने की दोषी पाई जाएगी तो उसे भी व्याभाचिर का दोषी मना जाएगा। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने समीक्षा किए जाने पर जोर दिया है।
व्यभिचार या एडल्ट्री के केस में अब तक केवल पुरुषों पर मुकदमा चलता थाए लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट इसकी समीक्षा करने जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई के दौरान पूछा कि व्यभिचार का दोषी सिर्फ एक पुरुष क्यों हैं? कोर्ट का कहना है कि जब महिला शादी के बाद संबंध बनाती है तो सजा सिर्फ पुरुष को क्यों दी जाए? कोर्ट के इस बयान के बाद एक बार फिर ये चर्चा शुरू हो गई है कि भारतीय कानून महिलाओं के पक्ष में ज्यादा है। भारतीय कानूनों पर महिलाओं की तरफ झुके होने के आरोप लग रहे हैं। जहां अब तक केवल महिलाओं के हक में लड़ने वाली एनजीओ होते थे। वहीं पिछले कुछ सालों में पुरुषों के हक के लिए काम करने वाली भी कई एनजीओ बन रहे हैं। महिला.पुरुष बराबर तो कानून अलग क्यों? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिला पुरुष बराबर हैं तो आपराधिक कानून भी बराबर होना चाहिए। हर बार महिलाएं पीड़ित नहीं हो सकतीं। बात सही भी है। सालों से भारत में महिलाओं के हक को दबाया गया है जिसे बचाने के लिए कानून बनाए गए। लेकिन पुरुषों का आरोप है कि महिलाओं के हक में बनाए गए इन कानूनों से उनका शोषण हो रहा है। दहेज कानून का दुरुपयोग पुरुषों के खिलाफ जिस कानून का सबसे ज्यादा दुरुपयोग किया जाता है वो है दहेज उत्पीड़न। पति और परिवार पर दहेज का आरोप लगते ही सबसे पहले गिरफ्तारी की जाती है। कई बार आरोप झूठे निकलते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब तक आरोप तय न हो जाएं तब तक गिरफ्तारी न की जाए। रेप कानून पुरुषों को नहीं देता संरक्षण देश में रेप को लेकर कड़ा कानून है लेकिन ये कानून पीड़ित पुरुष को संरक्षण नहीं देता है। कानून में पुरुष से रेप की कोई परिभाषा नहीं बताई गई है। पुरुषों के हक में काम कर रहे कई संगठनों का कहना है कि इसे भी अपराध की श्रेणी में डाला जाना चाहिए। समाज में प्रचलित सोच यही है कि पुरुषों का रेप नहीं हो सकता। इसलिए कानून भी इनके खिलाफ है। घरेलू हिंसा का कानून केवल महिलाओं को देता है संरक्षण हिंदू अडॉप्शन एंड मेनटेनेंस एक्ट के अनुसार माता.पिता बेटों की देखभाल केवल 18 साल तक की उम्र तक करेंगे। वहीं बेटियों की जब तक शादी नहीं हो जाती तब तक उनकी देखभाल की जिम्मेदारी माता.पिता की है। घरेलू हिंसा का कानून भी केवल महिलाओं को संरक्षण देता है। तलाक के बाद एलमनी भी केवल महिलाओं को दी जाती है। व्यभिचार में भी सजा केवल पुरुष को ही मिलती है। अगर एक पति शादी के बाद संबंध बनाता है तो उसे पांच साल तक की सजा का प्रावधान है। वहीं अगर एक पत्नी शादी के बाद किसी दूसरे मर्द से संबंध बनाती है तो उसे कोई सजा नहीं मिलती। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि समाज के साथ.साथ सोच भी विकसित होती है। अगर महिला.पुरुष बराबर हैं तो उन्हें सजा भी बराबर मिलनी चाहिए।