मौहम्मद इल्यास-’दनकौरी’/ग्रेटर नोएडा
गौतमबद्धनगर उत्तर प्रदेश का एक हाईटेक जिला है। यहां जिस प्रकार क्राइम सिर चढकर बोलता है मुकदमों की भी भरमार बनी रहती है। अदालतों में मुकदमों की लगातार पैरवी से ही न्याय के लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है। अदालतों में अभियोजन पक्ष यानी सरकार की पैरवी प्रोस्क्यूटिंग ऑफिसर (अभियोजन अधिकारी) करते हैं जिससे दोषी को दंड और पीडित को न्याय मिलता है। गौतमबुद्धनगर में सीनियर प्रोस्क्यूटिंग ऑफिसर “ललित मुद्दगल” हैं जो मुकदमों की स्थिति और प्रगति और सजा के बारे में ’कानून रिव्यू’ को बता रहे हैं आइए जानते हैं। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंशः-
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जीवन परिचयः- इलाहाबाद विश्वविद्यालय से विधि स्नातक 1990 में किया और फिर राज्य अभियोजन सेवा में सहायक अभियोजन अधिकारी के रूप में सन 1997 में मथुरा से सेवा प्रांरभ की। सीबीआई नई दिल्ली में पूरे 6 वर्ष तक लोक अभियोजक के रूप में कार्य करते हुए कई महत्वपूर्ण मामलों का अभियोजन किया। दिनांक 01-04-2014 से जनपद के ज्येष्ठ अभियोजन अधिकारी के रूप में तैनात हैं ।
नामः- ललित मुद्दगल
पदः- ज्येष्ठ अभियोजन अधिकारी ( सीनियर प्रोस्क्यूटिंग ऑफिसर)
मूल निवासः- गनियावली (अलीगढ)
शिक्षाः- बी0एस0सी0, एल0एल0बी0
रैंक/कैडरः- राज्य अभियोजन सेवा
पूर्व तैनातीः- जनपद- आगरा
वर्तमान तैनातीः- 01-04-2015 से गौतमबुद्धनगर
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…….गौतमबुद्धनगर में फिलहाल कितने पीओ और एपीओ कार्यरत हैं ?
— जनपद गौतमबुद्धनगर में 3 पीओ और 2 एपीओ कार्यरत हैं।
…..कोर्ट मोहर्रिर कितने हैं ?
—यहां पर कोर्ट मोहर्रिरों की संख्या 32 के करीब है।
…..जिले में अदालतों की कुल संख्या क्या है और इनमें सेशन कोर्ट तथा लोअर कोर्ट कितनी हैं ?
–जनपद में अधीनस्थ न्यायालय अपराधिक मामलों की संख्या- 5 हैं और अपर सत्र न्यायालय- 6 हैं, जब कि सत्र न्यायालय की संख्या- 1 है।
….सेशन कोर्ट और लोअर कोर्ट में कितने-कितने मुकदमें विचाराधीन हैं ?
— वर्ष 2016 के अंत में लंबित मामलों की संख्या भारतीय दंड संहिता के करीब 32 हजार है तथा अन्य अधिनियम सत्र और अधीनस्थ में 10 हजार के करीब मामले विचाराधीन हैं।
……..कोर्ट में गवाही के लिए रोजाना कितने लोगों को सम्मन जारी किए जाते हैं और प्रतिदिन कितने लोग आते हैं ?
—कोर्ट मे गवाही के लिए लगभग 90 प्रतिदिन सम्मन जारी होते है और जिनमें 35 से 40 प्रतिशत गवाही के लिए गवाह उपस्थित होते हैं तथा 98 प्रतिशत परीक्षित होते हैं।
……गवाही के लिए जो भी लोग आते हैं क्या सब की गवाही करा दी जाती है ?
—- लगभग सभी की गवाही होती है किसी विशेष कारण से ही गवाह बिना गवाही के वापस होता है। यह स्थिति अपवादिक होती है।
………कोर्ट में गवाही के लिए आने वाले लोगों को खर्चा दिलवाते हैं यदि हां तो कितना ?
— अभी गवाहों को कोई खर्चा नही दिया जा रहा है क्योंकि इसके लिए बजट उपलब्ध नही है।
……विवेचक, विवेचना के दौरान अभियुक्तों के विरूद्ध वारंट जारी कराने के लिए अदालतों में बार बार आते हैं और जब अदालतें आदेश नही देती तो आप क्या मद्द करते हैं ?
–यथासंभव प्रयास होता है कि अभियुक्तों के विरूद्ध वांरट और अन्य प्रक्रियाएं समय से जारी हो जाएं। अनावश्यक रूप से अदालतें विवेचकों को वापस नही करती, औपचारिकता पूरी न होने पर अथवा कार्य की अधिकता के कारण ही अग्रिम तिथि नियत करती हैं।
…….उद्घोषणा धारा-82 की कार्यवाही के आदेश के लिए विवेचक बार बार आते हैं ऐसी स्थिति में आप विवेचक की किस प्रकार मद्द कर पाते हैं ?
— देखिए पहले भी बताया गया है कि अनावश्यक रूप से अदालतें विवेचकों को वापस नही करती, औपचारिकता पूरी न होने पर अथवा कार्य की अधिकता के कारण ही अग्रिम तिथि नियत करती हैं। नियत तिथि पर पूरा प्रयास होता है कि अभियुक्तों के खिलाफ वांरट और अन्य प्रक्रियाएं समय से जारी हो जाएं।
……..धारा-83 यानी कुर्की की कार्यवाही के लिए भी अदालतें सहज की आदेश नही दे पाती हैं तब आप क्या करते हैं ?
–इसमें भी ऐसा ही होता है अग्रिम नियत तिथि पर सभी अन्य प्रक्रिया जारी कराने के लिए अदालत से दरख्वास्त की जाती है जिसमें 83 की कुर्की की कार्यवाही भी एक प्रक्रिया का हिस्सा है।
………धारा 82 सीआरपीसी की तामील अभियुक्त अथवा मुलजिम पर विवेचक द्वारा की जाती है और नियत तिथि तक अदालत या पुलिस के समक्ष मुलजिम हाजिर नही होता है ऐसे मामलों में विवेचक द्वारा रिपोर्ट प्रस्तुत करने पर अदालतों द्वारा कितने मामलों में संज्ञान लिया गया है अर्थात धारा 174 ए आईपीसी के कितने मुकदमें वर्ष 2016-17 के दौरान दर्ज कराए गए हैं?
— चूंकि 82,83 की कार्यवाही विवेचना के दौरान ही की जाती है। धारा 83 की कार्यवाही से पूर्व 174 ए आईपीसी अभियोग पंजीकृत कराया जाता है। वर्ष 2016-17 ं अभियोगों की कुल संख्या की जानकारी पुलिस ऑफिस से ली जा सकती है।
……जिन अपराधों में एचसीपी के द्वारा विवेचना न करने का प्रावधान है उनकी भी विवेचना एचसीपी द्वारा की जाती है क्या यह विवेचना कानून के अनुसार सही की जाती है, यदि नही की जाती है तो क्या आप कार्यवाही के लिए लिखते हैं और क्या अदालतें ऐसे मामलों में सजा कर सकती हैं ? उदाहरण के तौर पर धारा 307,363,366,,379 तथा 20 हजार से अधिक की चोरी के अपराध शामिल हैं।
—ऐसे अधिनियिम जिनमें विशेष रूप से किसी अधिकारी विशेष द्वारा विवेचना का प्रावधान है, उसमें विवेचना उसी स्तर के अधिकारी द्वारा की जाती है। आईपीसी के मामलों में छोटे स्तर की विवेचना एचसीपी द्वारा किए जाने का शासनादेश है। विवेचना की प्रस्थिति के आधार पर सजा या रिहा का कोई मामला अभी तक संज्ञान में नही आया है।
……अदालतों में मकदमों की संख्या बढती ही जा रही है उसे कम करने के लिए क्या कार्यवाही करवाते हैं ?
.–यथा संभव कोशिश रहती है कि आवश्यक गवाहों को ही पेश करके मामले को साबित किया जाए। अनावश्यक गवाहों को परीक्षित नही कराया जाता है। इसके अतिरिक्त सामान्य मामलों को लोक अदालत में नियत कराया जाता है और वहां मामलें निस्तरित हो जाते हैं जिससे मुकदमों की संख्या कुछ हद तक कम हो जाती है।
……विवेचक सुबह आता है और शाम तक बैठा रहता है जिससे उसका समय यों ही बर्बाद होता है उनके लिए कोई समय निर्धारित करवाएंगे जैसे लंच के बाद आदि में विवेचक की बात सुन ली जाए ?
—ऐसी स्थिति सामान्यतया नही आती है कभी कभी न्यायालयों की व्यस्तता के कारण ऐसी स्थिति आती है तो न्यायालय के पीठासीन अधिकारियों से वार्ता करके समस्या सुलझा ली जाती है।
………..कितने मामलों में सजा हुई हैं और कितने मामलों में मुलजिम बारी हो गए हैं यह आंकडा वर्ष 2016-17 का लोअर और सेशन कोर्ट वार बताएं ?
लोअर कोर्ट में 98 प्रतिशत और सेशन कोर्ट में 28 प्रतिशत सजाएं हुई हैं।
……..सजा का प्रतिशत क्या है ? मुकदमों में अक्सर बदमाश छूट जाते हैं ऐसा क्या कारण है विवेचना अथवा गवाही में पैरवी ठीक से नही होती मुख्य कारण क्या होता है?
— इस जनपद में अभियुक्तों के बारी होने का सबसे महत्वपूर्ण कारण विचारण के दौरान गवाहों का किसी न किसी कारण से पक्षद्रोही होना है। न्यायालय से बाहर पक्षकारों का समझौता भी एक महत्वपूर्ण कारण है।
……सरकार की ओर से अभी तक कितने मामलों में अपील की गई हैं विगत पांच वर्ष के आंकडों पर प्रकाश डाल दीजिए ?
–— अधीनस्थ न्यायालयों से ऐसा कोई मामला निर्णित नही हुआ है जिसके विरूद्ध अपील की आवश्यकता हुई हो। सत्र न्यायालय द्वारा निर्णित मामलों में से 08 मामलों में विगत वर्ष माननीय उच्च न्यायालय में अपील की गई है।
……..कोई सनसनीखेज मामला है क्या जिसमें सजा हुई हो जैसे जिले में हुई 1 करोड की लूट अथवा कोई वीभत्स कांड पर प्रकाश डालेंगे क्या ?
—– ऐसा कोई सनसनीखेज मामला अभी तक प्रकाश में नही आया है जिसमें सजा हुई हो, किंतु कुछ मामले विचारण की अंतिम अवस्था में हैं। जनपद के एक प्रमुख अपराधी को धारा 174ए आईपीसी में 4 वर्ष की सजा विगत वर्ष सुनाई गई है। यह उत्तर प्रदेश में अपने प्रकार का पहला मामला है।
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