कानून व्यवस्था की मजबूती के लिए जनता से बेहतर तालमेल जरूरी
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मौहम्मद इल्यास-’दनकौरी’/कानून रिव्यू
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सार संक्षेपः-
—————–गौतमबुद्धनगर की कानून व्यवस्था को चाक चौबंद और बेहतर बनाने की कडी में ’कानून रिव्यू’ ने -’कानून व्यवस्था पर एक नजर’- विशेष कॉलम शुरू किया है। प्रत्येक व्यक्ति चाहे, जिस क्षेत्र से भी जुडा हो कानून व्यवस्था से उसका जरूर सरोकार होता है, इसलिए हर व्यक्ति से एक नया विचार निकल कर आ सकता है। इस हाईटेक शहर की कानून व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए समाज,कला संगीत, विज्ञान, शिक्षा,खेल और राजनीति आदि क्षेत्रों से जुडे लोगों से विचार जानेंगे। इस कडी में जिला कांग्रेस कमेटी महासचिव व प्रवक्ता मनोज चौधरी से खास बातचीत की हैं आइए जानते हैं बातचीत के प्रमुख अंशः-
जीवन परिचयः-
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नामः-मनोज चौधरी
पिता का नामः- चौधरी महेंद्र प्रधान
जन्म तिथिः- 15-07-1978
मूल स्थानः-तुगलपुर-ग्रेटर नोएडा
शिक्षाः-बी0एस0सी0, एम0बी0ए0
पदः-महासचिव व प्रवक्ता कांग्रेस कमेटी गौतमबुद्धनगर
पूर्व तैनातीः- जिलाध्यक्ष किसान मोर्चा कांग्रेस गौतमबुद्धनगर
– उत्तर प्रदेश सचिव यूथ कांग्रेस, उत्तर प्रदेश
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……… जिले की कानून व्यवस्था को चाक चौबंद और बेहतर बनाने के लिए क्या किया जाना चाहिए?
———अच्छी कानून व्यवस्था के लिए पुलिस का संभ्रात लोगों से बेहतर तालमेल जरूरी है अर्थात ऐसे लोग जिनकी समाज में साफ और अच्छी छवि है बेहतर तालमेल होना चाहिए तभी एक बेहतर पुलिसिंग की कल्पना की जा सकती है। कई बार देखा जाता है अक्सर थानों के इर्द गिर्द दलाल किस्म और खराब छवि के लोगों का जमघट लगा रहता है। इससे पुलिस का समाज के प्रति बेहतर तालमेल और रवैया ठीक नही रह पाता है तथा पुलिस गलत लोगों को संरक्षण देना शुरू कर देती है।
…..…….गौतमबुद्धनगर उत्तर प्रदेश का एक हाईटेक शहर है क्या यहां की पुलिस हाईटेक बन चुकी है?
——— इसमें कोई शक नही है गौतमबुद्धनगर एक हाईटेक शहर है किंतु यहां की पुलिस अभी हाईटेक नही हुई है। कहने को 100 डायल करने पर पुलिस को फौरन मौके पर पहुंच जाना चाहिए किंतु सुनने में आता है कि पुलिस मौके पर, उस समय पहुंचती जब घटना घटित हो जाती है और बदमाश दूर निकल चुके होते हैं या तडप रहा घायल व्यक्ति सडक पर दम तोड चुका होता है। शहर के सभी चौराहों को सीसीटीवी से लैस नही किया गया है, ज्यादातर सिपाही और दरोगा न तो अंग्रेजी बोल पाते हैं और न ही समझ पाते हैं फिर पुलिस कहां हो गई हाईटेक?
……….कानून व्यवस्था को हाईटेक बनाने के लिए कोई आइडिया है?
———– हाईटेक शहर है कानून व्यवस्था पर काम करने के लिए बहुत कुछ है। जिले मे नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना नए शहर बस रहे हैं। किराएदारों की एक बडी समस्या है बात यदि हाईटेक सिटी की जा रही है तो सभी किराएदारों का ऑनलाईन रजिस्ट्रेशन किया जाना चाहिए इससे कई तरह की दिक्कतें पैदा होने से पहले ही दूर हो जाएंगी।
……..ऑन लाइन एफआईआर की सुविधा लोगों को मिल पा रही है।
———— उत्तर प्रदेश पुलिस ने राज्य में ऑन लाइन एफआईआर की सुविधा शुरू की है बात यदि गौतमबुद्धनगर की करें तो यहां ऑन लाइन एफआईआर का क्रेज सबसे ज्यादा होना चाहिए। किंतु यहां जिस तरह थानों के चक्कर काटते हुए लोगों को एफआईआर के लिए देखा जा सकता है एक बडी बात है। एफआईआर दर्ज न होने पर लोग कोर्ट की ओर रूख करते हैं। पुलिस आम आदमी को तो थाने से धमका कर भगा देती है एफआईआर लिखना तो दूर रहा। पुलिस महकमा लोगों को ऑनलाइन एफआईआर के लिए अवेयर नही करता, जब कि समय समय पर सेमिनार आदि कार्यक्रमों के माध्यमों से लोगों को जागरूक किया जाना चाहिए। कई बार पुलिस साफ कह देती है कि तहरीर अंग्रेजी अथवा किसी दूसरी भाषा की बजाय हिंदी में लिख कर लाइए तो एपआईआर होगी वरना नही तो यह कहां की हाईटेक पुलिसिंग हुई।
………पुलिस सरकारी संसाधनों का रोना रोकर पल्ला झाड देती है?
———- देखिए एक अच्छी और मजबूत कानून व्यवस्था के लिए सभी जरूरी संसाधन दिए जाने चाहिए। गौतमबुद्धनगर में थाने और चौकियों की संख्या वैसे ही कम है लोग यहां की तुलना राजधानी दिल्ली से करते हैं। थानों में भी पुलिस फोर्स की कमी है। सरकारी संसाधनों में थाने की एक जीप को जितना ईधन मिलता है उससे कई गुना सडक पर दौड जाती है। एक लावारिस डेड बॉडी के अंतिम संस्कार के लिए बाद में और वह भी बिल भेजने के बाद पैसा आता है ऐसी स्थिति में पुलिस को करो या मरो का सामना करना पडता है। इसलिए पुलिस को सभी जरूरी संसाधन और वह भी पर्याप्त मात्रा में दिए जाने चाहिए।
………ट्रेफिक सिस्टम से कहां तक संतुष्ट हैं?
———– इस हाईटेक शहर में ट्रेफिक सिस्टम है ही, कहां? दिल्ली में एंट्री की तो सीट बैल्ट और हैलीमेट की याद आ जाती है जब वापस नोएडा की सीमा में आए तो सब कुछ पुराने ढर्रे पर लौट आता है। यही कारण है कि ओवर स्पीड, शराब के नशे में अथवा नींद के कारण ही ज्यादा सडक हादसे होते हैं। न तो लोग ही ट्रेफिक नियमों का पालन करते हैं और न ही ट्रेफिक पुलिस ही अपनी जिम्मेदारी को पूरा कर पाती है और जिसका परिणाम यह होता है लोग सडक हादसों में काल के गाल में समा जाते हैं। होंडा सिएल चौक की लाल बत्ती पर कोई ट्रेफिक पुलिस का सिपाही नही होता है कारण यह होता है वाहन आपस में टकराते रहते हैं। यही हाल सूरजपुर में घंटा चौक पर होता है वहां पर ट्रेफिक पुलिस की पिकेट बनी हुई मगर रेड लाइट पर कोई सिपाही नही होता है और ट्रेफिक पुलिस वाहनों की वसूली में लगी रहती है।
.………पुलिस भ्रष्ट्राचार से कानून व्यवस्था की मजबूती पर विपरीत प्रभाव पडता है?
——— बिल्कुल, भ्रष्ट्राचार हमेशा बडे स्तर से शुरू होता है। थाने और चौकी और यहां तक जिले तक, पूर्व की सरकारों के समय ठेके पर दिए जाते रहे हैं। सिफारिशी और जुगाडबाज दरोगाओं और इंस्पेक्टरों को थानेदारी दी जाती है। ऐसे भ्रष्ट्र लोग जब थाने और चौकी तथा जिले में तैनात होंगे तो वह दलाल और माफिया लोगों को खुला संरक्षण देंगे जिससे एक बेहतर कानून व्यवस्था की उम्मीद करना बेकार साबित होता है। राज्य सरकार यदि भ्रष्ट्राचार को प्राथमिकता पर ले लें तो सब कुछ ठीक हो सकता है।
.………पुलिसकर्मियों का तनाव में रहना भी कानून व्यवस्था के लिए दुखदायी कारण है?
———– पुलिस का जवान जिस तरह से दिन रात ड्यूटी करता है और फिर बॉस की डांट सुननी पडती है वो अलग, ये सब तनाव का कारण बन जाते हैं। पुलिस के सिपाही को 24 घंटे में से सिर्फ 8 घंटे ड्यटी का नियम होना चाहिए और साथ में वीकली ऑफ भी होना चाहिए कुछ दिन पूर्व वीकली ऑफ शुरू हुआ था अब शायद नही है। साथ में अच्छा काम करने वाले पुलिसकर्मियों को इनसेंटिव भी मिलना चाहिए तभी एक पुलिस का सिपाही बगैर चिडचिडाहट और तनाव के अपना काम कर सकता है।
…….. गौतमबुद्धनगर में दिल्ली की तर्ज पर कमिश्नरी प्रणाली लागू किए जाने की बात कई बार चली थी यहां पुलिस कमिश्नरी प्रणाली लागू की जाना चाहिए?
———- पुलिस कमिश्नरी प्रणाली लागू की जाए अथवा नही यह राज्य सरकार के विवेक का मामला है। मगर इतना जरूर है कि गौतमबुद्धनगर में किसानों की समस्याएं ज्यादा है जिन्हें सरकार अथवा शासन प्रशासन द्वारा हल करने के बजाय उलझाया ज्यादा जाता है। इसलिए आंदोलनों के इस शहर में कमिश्नरी प्रणाली यदि लागू होती है तो पुलिस की तानाशाही और मनमानी शुरू हो सकती है, इस मुद्दे पर विचार किए जाने की जरूरत है।