भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम व आईपीसी की धारा 120 बी के तहत एफआईआर दर्ज कराई गई थी। इस मामले में सीबीआई ने यादव सिंह को 10 फरवरी 2020 को गिरफ्तार किया था।
मौहम्मद इल्यास-’’दनकौरी’’/उत्तर प्रदेश
यूपी के गौतमबुद्धनगर में बहुचर्चित घोटाले में फंसे चीफ इंजिनियर यादव को आखिकार जमानत मिल ही गई। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नोएडा के चीफ इंजीनियर रहे यादव सिंह की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका मंजूर कर ली है। हाईकोर्ट ने नई दिल्ली के एसटीएफ थाने में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और आईपीसी की धारा 120 बी के तहत दर्ज मामले में निरुद्धि को अवैध मानते हुए उन्हें इस मुकदमे में जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि स्पेशल जज सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को समझने में गलती की है। लॉकडाउन के दौरान ऐसी परिस्थितियां नहीं थीं कि चार्जशीट दाखिल नहीं की जा सकती थी। यह आदेश न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर एवं न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव की खंडपीठ के समक्ष बुधवार को यादव सिंह के अधिवक्ता और सीबीआई की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ज्ञान प्रकाश व एडवोकेट संजय यादव को सुनकर दिया। यादव सिंह के खिलाफ नई दिल्ली के एसटीएफ थाने में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम व आईपीसी की धारा 120 बी के तहत एफआईआर दर्ज कराई गई थी। इस मामले में सीबीआई ने यादव सिंह को 10 फरवरी 2020 को गिरफ्तार किया था। उसके बाद उसे 11 फरवरी को स्पेशल कोर्ट सीबीआई में पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया। यादव सिंह की ओर से कहा गया कि सीबीआई ने निर्धारित अवधि के भीतर चार्जशीट दाखिल नहीं की। इस पर उसने 12 अप्रैल को ग़ाज़ियाबाद के जिला जज को ई.मेल से प्रार्थना पत्र भेजकर जमानत पर रिहा करने की मांग की। जिला जज ने वह अर्जी 16 अप्रैल को स्पेशल जज सीबीआई को फॉरवर्ड कर दी। स्पेशल जज ने 17 अप्रैल को उसकी अर्जी खारिज कर दी। विशेष न्यायाधीश सीबीआई ने यादव सिंह की जमानत नामंजूर करते हुए कहा था कि कोविड-.19 संक्रमण से हुए लॉकडाउन के कारण सीबीआई 60 दिन के भीतर चार्जशीट दाखिल नहीं कर सकी। सुप्रीम कोर्ट ने भी 23 मार्च के आदेश में सभी प्रकार के मामलों में मियाद बढ़ा दी है इसलिए सीबीआई को चार्जशीट दाखिल करने में जो विलंब हुआ उस अवधि की गणना नहीं की जाएगी। इसके बाद हाईकोर्ट में यह याचिका दाखिल कर सीबीआई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई। यादव सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दाखिल कर मामले में जल्द सुनवाई की मांग की। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को यादव सिंह की याचिका पर 8 जून को सुनवाई कर उस पर निर्णय लेने का निर्देश दिया था। सुप्रीम कोर्ट के इसी आदेश के क्रम में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिका पर सुनवाई की। हाईकोर्ट में यादव सिंह की ओर से कहा गया कि सीबीआई ने 60 दिन की निर्धारित अवधि में चार्जशीट नहीं दाखिल की है। सीबीआई ने 119 दिन के बाद चार्जशीट दाखिल की है इसलिए उसे अवैध निरुद्धि से मुक्त किया जाए या जमानत पर रिहा किया जाए। यह भी कहा गया कि विशेष न्यायाधीश सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को समझने में गलती की है, कोई भी ऐसा कारण नहीं है, जिससे सीबीआई को चार्जशीट दाखिल करने से करने में बाधा थी। चार्जशीट अनावश्यक विलंब से दाखिल की गई। सीबीआई के वरिष्ठ अधिवक्ता ज्ञान प्रकाश व एडवोकेट संजय यादव का कहना था कि कोविड-.19 संक्रमण से देशव्यापी लॉक डाउन के कारण अदालतें बंद थीं। गत 8 जून को जिला न्यायालय खुले तो गाजियाबाद स्थित सीबीआई अदालत भी बैठी और उसी दिन इस मामले में चार्जशीट दाखिल कर दी गई। इसमें अनावश्यक देरी नहीं की गई है। परिस्थितियों को देखते हुए इसे समय से दाखिल माना जाए।
29 निजी फर्म को लाभ पहुंचाने के लिए करोड़ों रुपये के टेंडर पास किए
यादव सिंह साल 2007 से 2012 तक नोएडा प्राधिकरण में चीफ इंजीनियर रहे। आरोप है कि यादव के कार्यकाल में निजी कंपनियों को गलत तरीके से यह टेंडर दिया गया था। दो साल पहले इस मामले में मुकदमा दर्ज किया गया था। यादव सिंह के खिलाफ आपराधिक साजिश और सरकारी पद के दुरुपयोग के साथ ठेकेदारों और फर्मों से नियमित रूप से रिश्वत लेने का मुकदमा दर्ज किया गया। साथ ही इन फर्म में से कई उनके परिवार के सदस्यों और करीबी दोस्तों के नाम पर रजिस्टर्ड थे। इस मामले में यादव सिंह समेत 11 लोगों और 3 कंपिनयों को आरोपी बनाया गया। इसके बाद ईडी ने यादव सिंह के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था। यादव सिंह को 2016 में गिरफ्तार करके जेल भेज दिया था, जिसके बाद उन्हें पिछले साल-2019 दिसंबर में जमानत मिली थी। सीबीआई कोर्ट ने 5-5 लाख रुपये के बॉन्ड भरने और 2-2 जमानती पेश करने पर यादव सिंह को रिहा किया था।