देश के तमाम इलाकों में इन जनजातियों को आदतन अपराधी की नजर से देखा जाता है इसलिए पुराने समय से चले आ रहे इस कानून की वजह से इन समुदायों को समाज की मुख्य धारा में शामिल करना मुश्किल हो रहा है।
आदतन अपराधी कानून निरस्त करने पर सरकार का विचार शुरू
- कानून रिव्यू/नई दिल्ली
—————————आदतन अपराधी या यों कहें कि घुमंतू जाति और जनजातियां समाज के लिए खतरा होती रही हैं। इस तरह की जातियां अपराध को एक तरह से पेशा मानती रही हैं और उनकी जीविका भी इसी से चलती थी। किंतु आधुनिक युग जैसे से समाज का विकास हुआ और रोजगार के क्षेत्र में नए आयाम विकसित हुए प्रायः यह सभी जातियां समाज की मुख्य धारा मेंं शामिल होने के लिए उत्सुक हैं और कई दूसरे रोजगारोन्मुखी क्षेत्रों की ओर अग्रसर हो चुकी हैं। किंतु इन जातियों के माथे पर पेशेवर अपराधी अर्थात आदतन होने का कलंक आज भी लगा हुआ हैं। अब सरकार इस अपराधी होने के कलंक को हटाने की तैयारी में हैं और आदतन अपराधी कानून को निरस्त किए जाने के मुद्दे पर विचार शुरू कर दिया गया है।
घुमंतू जनजातियों के बारे में आदतन अपराधी होने की सामान्य धारणा को देखते हुये इन लोगों को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने की राह में आदतन अपराधी कानून के बाधक बनने के कारण केंद्र सरकार इसे निरस्त करने के पक्ष में है। सरकार को इस विषय पर गठित आयोग की 8 जनवरी को पेश होने वाली अंतिम रिपोर्ट का इंतजार है।
सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री कृष्णपाल सिंह गुर्जर ने राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान बताया कि राष्ट्रीय विमुक्ति घुमंतु तथा अर्धघुमंतु जनजाति आयोग की अंतरिम रिपोर्ट में आदतन अपराधी अधिनियम को निरस्त करने का सुझाव दिया गया है। द्रमुक सदस्य तिरुची शिवा के सवाल पर गुर्जर ने बताया कि देश के तमाम इलाकों में इन जनजातियों को आदतन अपराधी की नजर से देखा जाता है इसलिए पुराने समय से चले आ रहे इस कानून की वजह से इन समुदायों को समाज की मुख्य धारा में शामिल करना मुश्किल हो रहा है।
गुर्जर ने बताया कि साल 2005 में गठित आयोग की 2008 में पेश रिपोर्ट में इस बारे में कोई संस्तुति नहीं की गई थी। इस समस्या को देखते हुए 2015 में फिर से इस आयोग का गठन किया गया, जो 8 जनवरी 2018 को अपनी अंतिम रिपोर्ट देगा। मनोनीत सदस्य के टी एस तुलसी द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के हवाले से आदतन अपराधी कानून निरस्त करने की सिफारिश के पूरक प्रश्न के जवाब में गुर्जर ने कहा नवगठित आयोग की जुलाई 2017 में पेश अंतरिम रिपोर्ट में भी इसे निरस्त करने की संस्तुति की गई थी। सरकार को विश्वास है कि 8 जनवरी को आयोग की अंतिम रिपोर्ट में भी यह सिफारिश की जाएगी। सरकार भी इस कानून को निरस्त करने के पक्ष में है।