एलीफैन्ट माइग्रेशन कॉरिडोर पर 2.2 किलोमीटर लंबी दीवार गिराने का आदेश
कानून रिव्यू/नई दिल्ली
जंगल पर हाथियों का पहला अधिकार है, अदालत ने यह आदेश दिया है कि 2.2 किलोमीटर लंबी बनाई गई दीवार को गिराया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने असम के गोलाघाट जिले में नुमालीगढ़ रिफायनरी लिमिटेड की याचिका रद्द करते हुए यह आदेश दिया है। असम के पूर्वी हिस्से में स्थित गोलाघाट जिले में इलाके में एलीफैन्ट माइग्रेशन कॉरिडोर पर 2.2 किलोमीटर लंबी दीवार बनाई गई है। पर्यावरणविदों ने साल 2011 में बनाई गई इस दीवार पर आपत्ति दर्ज कराई थी। यह दीवार प्रस्तावित टाउनशिप के लिए बनायी गई थी,बाद में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने इस पर ध्यान दिया। यह इलाका दियोपहार रिजर्व फॉरेस्ट का हिस्सा है। यह मामला उस समय प्रकाश में आया जब मई 2015 में दीवार के रास्ते अपना रास्ता बनाने की कोशिश के बाद एक सात वर्षीय नर हाथी की मौत हो गई। इससे जुड़ा एक वीडियो भी वायरल हुआ था जिसमें हाथियों का एक झुंड कटीले तार को पार करने की कोशिश कर रहा था। अगस्त 2016 में, एनजीटी ने एनआरएल को एक महीने के भीतर दीवार को ध्वस्त करने का आदेश दिया, लेकिन केवल 289.मीटर का खंडन ध्वस्त किया गया था। सुप्रीम कोर्ट जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने याचिका निरस्त करते हुए कहा कि हथियों का जंगल पर पहला अधिकार है, ऐसे में वहां कोई टाऊन शिप नहीं हो सकती है। उन्होंने कहा. हाथी एक तय रास्ते से दफ्तर नहीं जाते, हम हाथियों के इलाके में कोई अतिक्रमण नहीं कर सकते। एक अंग्रेजी अखबार के अनुसार पर्यावरण एक्टिविस्ट रोहित चौधरी ने कहा कि मुझे उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को गंभीरता से लेगा और पूरी दीवार गिराएगा। इसके साथ ही रिफायनरी टाउनशिप काजीरंगा नेशनल पार्क के आसपास कोई निर्माण नो.डेवलपमेंट जोन का भी उल्लंघन करता है,जो पर्यावरण मंत्रालय द्वारा साल 1996 में घोषित किया गया था।