जम्मू जम्मू । लगभग 20 साल के अंतराल के बाद नादीमर्ग के पीड़ितों को न्याय की उम्मीद एक बार फिर से जगी है । जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय ने 29 अक्टूबर को 2022 को अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में वर्ष 2003 में हुए नादीमर्ग नरसंहार के मामले को फिर से खोलने की अनुमति दे दी है। वर्ष 2011 में निचली अदालत ने इस मामले को बंद करने का आदेश दे दिया था।
जस्टिस विनोद चटर्जी कौल ने निचली अदालत को आदेश दिया कि वह कमीशन गठित करके या फिर वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से गवाहों के बयान दर्ज कराने के लिए आवश्यक कदम उठाए। जस्टिस कौल ने ये भी कहा कि निचली अदालत त्वरित कार्यवाही सुनिश्चित करें, ताकि मामले को जल्द से जल्द निपटाया जा सके। शोपियाँ के नादीमर्ग गांव में हुए इस नरसंहार में ड्यूटी में लापरवाही बरतने के आरोप में आरोपी पुलिसकर्मियों सहित सात लोग आरोपित हैं। इस नरसंहार के बाद गांव के अधिकांश निवासी कश्मीर घाटी छोड़कर पलायन कर गए थे, और ट्रायल कोर्ट में गवाही देने के लिए शोपियां आने को तैयार नहीं थे।
जस्टिस कौल ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने इस मामले में प्रासंगिक पहलुओं की अनदेखी करते हुए गवाहों की जांच करने की याचिका को रद्द कर दिया था ।
हाई कोर्ट ने निचली अदालत के 9 फरवरी 2011 के निचली अदालत के आदेश को रद्द करते हुए कहा कि गवाहों के बयान दर्ज करने के लिए अभियोजन पक्ष के आवेदन की अनुमति दी जानी चाहिए। कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर पुलिस के इस तर्क को सही ठहराया कि ट्रायल कोर्ट गवाहों की उपस्थित हासिल करने मैं अभियोजन की कठिनाइयों की सराहना करने में विफल रहा है। निचली अदालत को इस प्रकार के जघन्य मामले की सच्चाई लोगों तक लाने के लिए सभी गवाहों से पूछताछ के सभी संभव उपायों की इजाजत देनी चाहिए।
उल्लेखनीय है कि सोपियां जिले के दूरदराज के गांव नादीमर्ग में 23 मार्च 2003 को लश्कर के आतंकवादी सेना की वर्दी में नकाब पहनकर रात में गांव में दाखिल और गांव के 24 कश्मीरी हिंदुओं को एक लाइन में खड़ा करके उनको स्वचालित हथियारों से गोलियों से भून दिया था। इसमें सभी 24 कश्मीरी हिंदुओं की मौत हो गई थी। मरने वालों में 11 पुरुष, 11 महिलाएं और 2 बच्चे शामिल थे।
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