इन मामलों से संबंधित अंतिम रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बेदी ने फरवरी 2018 में दाखिल की थी। यह वही सप्ताह है जब जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने आदेश दिया था कि इस मामले की अंतिम रिपोर्ट याचिकाकर्ताओं को भी सौंपी जाए। इन मामलों में याचिकाकर्ता पत्रकार बीजी वर्गीस और गीतकार जावेद अख्तर का नाम भी शामिल है। वर्गीस और जावेद अख्तर दोनों ने अलग.अलग याचिकाएं दायर की थीं। उन्होंने 2007 में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था और अपील की थी कि 2002 से 20006 के बीच हुए सभी एनकाउंटरों की जांच की जाए।
कानून रिव्यू/नई दिल्ली
जस्टिस बेदी कमेटी ने गुजरात के 17 में से 3 एनकाउंटर को फर्जी पाया है। सुप्रीम कोर्ट की तरफ से गठित की गई जस्टिस एचएस बेदी कमेटी ने अपनी फाइनल रिपोर्ट में कहा है कि
गुजरात में हुए 17 एनकाउंटर्स में से तीन फर्जी थे। कमेटी ने उन आरोपों को भी खारिज किया है, जिनमें कहा गया था कि गुजरात में 2002 से 2006 के बीच मुस्लिम अतिवादियों को चुन.चुन कर बाहर निकाला गया था। इस दौरान नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस ने अपनी रिपोर्ट मॉनिटरिंग कमेटी के अध्यक्ष को सौपी है। इस मॉनिटरिंग कमेटी का गठन 2002.2006 के बीच गुजरात में हुए एनकाउंटर्स की जांच के लिए किया गया था। गुजरात के पूर्व डीजीपी आरबी श्रीकुमार के उस दावे को भी खारिज किया है जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि मुस्लिमों की हत्या में राज्य की मशीनरी भी शामिल थी। उन्होंने आरोप लगाए थे बड़े पदों पर बैठे अधिकारी और नेता फेक एनकाउंटर कर मुस्लिमों को मारने के लिए मौखिक आदेश देते थे। उस वक्त श्रीकुमार गोधरा कांड के दौरान गुजरात में सशस्त्र इकाइयों के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक थे और 2002 में हुए दंगों के दौरान इंटेलिजेंस डीजीपी भी थे। उन्होंने समिति के सामने अपना बयान दर्ज किया और 2 अन्य आवेदन भी दायर किए। समिति के सामने श्रीकुमार ने दावे के साथ कहा कि उन्होंने उन आदेशों को मानने से इनकार कर दिया था जिसमें मुसलमानों के मारने की बात कही गई थी। जिसके बाद उन्हें राज्य सरकार की ओर से डीजीपी पोस्ट पर प्रमोशन नहीं दिया गया। उन्होंने समिति के समाने गुजरात के पूर्व डीआईजी डीजी वंजारा के त्याग पत्र का भी हवाला दिया। जिसमें राज्य सरकार के आदेशों का पालन करने वाली मुठभेड़
पुलिस के बारे में बात की गई थी। लेकिन जस्टिस बेदी की अध्यक्षता वाली समिति को श्रीकुमार के दावों में कोई विश्वसनीय तथ्य नहीं मिला। श्रीकुमार की ओर से किए गए
रिप्रेजेंटेशन और स्टेटमेंट सामान्य हैं जो प्रशासनिक निर्णय से संबंधित हैं,जिस पर वे सहमत नहीं थे और ये वही कारण थे जिसकी वजह से राज्य सरकार के सामने उन्होंने पीड़ित होने की बात कही। 229 पन्नों की इस रिपोर्ट में कहा गया कि ये सारे मुद्दे मुस्लिम अतिवादियों के चयन से संबंधित थे जिनके बारे में रेकॉर्ड नहीं है। जस्टिस बेदी ने इस बात पर भी बल दिया कि परिस्थितियों की वजह से आरोपों की सत्यता संदेहों के घेरे में हैण् जिसकी वजह से अलग.अलग राज्यों से संबंधित एनकाउंटर के 17 मामलों में सभी समुदाय के पीड़ित पक्ष शामिल हैंण् इन राज्यों में उत्तर प्रदेशए उत्तराखंडए बिहारए केरल और महाराष्ट्र प्रमुख हैं। कमेटी ने कहा कि इन सभी मामलों में एक ही तथ्य समान है कि सभी लोग अपराध से जुड़े हुए थे। सभी तथ्यों को सुनने बाद यह निर्णय किया गया कि श्रीकुमार की ओर से उठाए गए मुद्दे प्रासंगिक नहीं हैं। हालांकि इन एनकाउंटर्स में 18 लोगों की मौत सोचने का विषय है। कमेटी की ओर से जांचे गए 17 मामलों में गुजरात पुलिस को 14 मामलों में सुप्रीम कोर्ट की ओर से क्लीन चिट मिल गई है। कमेटी ने सुनवाई के बाद फैसला किया कि इन मामलों में कोई ऐसा तथ्य नहीं है जिनकी वजह से एनकाउंटर के दौरान मौजूद रहने वाले अधिकारियों के खिलाफ जांच के आदेश दिए जाएं। फर्जी एनकाउंटर के तीन मामलों में कमेटी ने पुलिस अधिकारियों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर मुकदमा चलाने का अनुरोध किया है। इन तीन फर्जी एनकाउंटर के मामलों में पीड़ितों के नाम कासिम जफर समीर खान और हाजी इस्माइल है। जिन अधिकारियों के खिलाफ कमेटी ने कार्रवाई करने के आदेश दिए हैं उनमें सभी इंस्पेक्टर पद से ऊपर के हैं। इन मामलों से संबंधित अंतिम रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बेदी ने फरवरी 2018 में दाखिल की थी। यह वही सप्ताह है जब जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने आदेश दिया था कि इस मामले की अंतिम रिपोर्ट याचिकाकर्ताओं को भी सौंपी जाए। इन मामलों में याचिकाकर्ता पत्रकार बीजी वर्गीस और गीतकार जावेद अख्तर का नाम भी शामिल है। वर्गीस और जावेद अख्तर दोनों ने अलग.अलग याचिकाएं दायर की थीं। उन्होंने 2007 में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था और अपील की थी कि 2002 से 20006 के बीच हुए सभी एनकाउंटरों की जांच की जाए।