-विमल वधावन योगाचार्य, एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट
गम्भीर तकनीकी कमियों से भरे झूठे मुकदमों के कारण एक व्यक्ति का सारा जीवन कलंकित हो जाता है, वह अपनी आजीविका के गौरव से वंचित हो जाता है, उसके परिवार की प्रतिष्ठा मिट्टी में मिल जाती है, परिवार के सदस्यों का भी गर्व के साथ सिर ऊँचा उठाकर जीने का अधिकार बिना किसी अपराध के ही छीन लिया जाता है।
हमारे देश की आपराधिक न्याय व्यवस्था पूरी तरह से भ्रष्टाचार, अज्ञानता और अक्षमता की शिकार है। भारतीय पुलिस मुकदमों की छानबीन से लेकर उन्हें ट्रायल के लिए आपराधिक अदालत में प्रस्तुत करने तथा गवाहों को हर प्रकार की सुरक्षा की गारंटी देते हुए उन्हें अदालत के समक्ष निर्भीक होकर अपना बयान सच्चाई के आधार पर देने की व्यवस्था करने में सक्षम नजर नहीं आती। कुछ विशेष आपराधिक घटनाएँ जो मीडिया में शोर मचने के कारण प्रसिद्ध हो जाती हैं, उनमें पुलिस अवश्य ही मुस्तैदी के साथ कार्य करती हुई दिखाई देती है। इसके अतिरिक्त किसी राजनीतिक दबाव या पीड़ित परिवार के प्रभाव के कारण पुलिस अपने छानबीन कार्यों में विशेषज्ञता का परिचय देती हुई दिखाई देती है। अन्यथा सामान्य मामलों में तो पुलिस का ध्यान केवल इस बात पर एकाग्र रहता है कि किस प्रकार अपराधी व्यक्ति के साथ रिश्वतखोरी का लाभ उठाया जाये और उस रिश्वतखोरी के बदले में अपराधी व्यक्ति को छानबीन से सम्बन्धित तकनीकी कमियों का लाभ दिया जाये। दूसरी तरफ झूठे मुकदमें बनाने में भारतीय पुलिस कई बार आवश्यकता से अधिक सक्षम नजर आती है।
इन्हीं कारणों से भारत की अदालतों में जितने भी अपराधिक मुकदमें चलते हैं उनमें 60 से 80 प्रतिशत मुकदमों के आरोपी अदालतों के द्वारा आरोपमुक्त घोषित कर दिये जाते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि भारत में केवल 20 से 40 प्रतिशत मुकदमों में ही आरोपियों को सज़ा मिल पाती है। भारतीय पुलिस को जापान जैसे देश की प्रेरणा और कार्यशैली के प्रशिक्षण की आवश्यकता है। वैसे भारतीय पुलिस की अक्षमता का एक मुख्य कारण भारत की राजनीति भी है। भारत के राजनीतिज्ञ पुलिस विभाग को अपने इशारों पर नचाने के लिए कभी चूक नहीं करते। इसी का परिणाम है कि पुलिस विभाग को जब राजनीतिज्ञों के लिए अपनी सारी क्षमता दांव पर लगानी पड़ती है तो स्वाभाविक रूप से पुलिस अन्य कार्यों में भी उसी अक्षम कार्यशैली का प्रयोग अपने भ्रष्टाचारी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए करने लगती है। यह भ्रष्टाचारी उद्देश्य पुलिस में कांस्टेबल पद से लेकर गृहमंत्री पद तक भ्रष्टाचारी धन की आपूर्ति के लिए एक अपवित्र पथ का निर्माण कर देते हैं। जिस पर स्वाभाविक रूप से कांस्टेबल और सब-इंस्पेक्टर स्तर से एकत्र की गई सारी रिश्वत राशियाँ एक निश्चित अनुपात में ऊपर के स्तरों की तरफ अग्रसर होने लगती हैं। इस प्रकार जब पुलिस का भ्रष्टाचार राजनीति को धन की आपूर्ति करने लगता है तो उस मार्ग में बाधा उत्पन्न करने वाले किसी इक्के-दुक्के ईमानदार पुलिस अधिकारी को ऐसे भ्रष्टाचारी पथ पर टिकने ही नहीं दिया जाता। पुलिस का यह भ्रष्टाचारी रूप तभी काबू किया जा सकता है जब पुलिस को राजनीतिक प्रभाव से पूरी तरह मुक्त करके जापानी स्टाइल की देशभक्ति और कार्यशैली में लम्बे प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से पारंगत किया जाये।
पुलिस की भ्रष्टाचारी और अक्षम कार्यशैली के चलते एक तरफ अनेकों दुर्दान्त अपराधी मौज-मस्ती के साथ अपराध व्यापार को निरन्तर बढ़ाते चले जा रहे हैं तो दूसरी तरफ अनेकों निर्दोष लोग गलत मुकदमों के कारण अपनी सारी जिन्दगी एक आरोपी होने की मुहर लगवाकर न्याय प्रक्रिया तथा जेलों की दलदल में फंसने के लिए मजबूर कर दिये जाते हैं।
कुछ वर्ष पूर्व पंजाब के अजनाला पुलिस स्टेशन के एस.एच.ओ. के रूप में कार्य करने वाले एक ईमानदार अधिकारी मुख्तियार सिंह को भी इसी पुलिस भ्रष्टाचार का शिकार बना दिया गया। मुख्तियार सिंह के समक्ष सरबजीत सिंह नामक व्यक्ति के विरुद्ध उसी की पत्नी के द्वारा की गई शिकायत प्रस्तुत हुई जिसमें सरबजीत सिंह पर कार्यवाही करना अत्यन्त आवश्यक हो गया था। सरबजीत स्वयं भी पंजाब पुलिस के ट्रैफिक विभाग में अधिकारी था। उसने पुलिस विभाग के एस.पी. मुखविन्दर सिंह चीना की सिफारिश से मुख्तियार सिंह पर यह दबाव बनाने का प्रयास किया कि सरबजीत के विरुद्ध कोई मुकदमा न बनाया जाये। जब मुख्तियार सिंह ने इस दबाव के सामने झुकने से इन्कार कर दिया तो उसे गिरफ्तार करके उस पर उल्टा भ्रष्टाचार निवारण कानून की धारा-7 और 13 के अन्तर्गत मुकदमा बनाकर उसे जेल भेज दिया गया। इस मुकदमें की कहानी यह बनाई गई कि मुख्तियार सिंह ने सरबजीत सिंह के विरुद्ध उसकी पत्नी की शिकायत पर चलने वाले मुकदमें में कुछ तकनीकी कमियाँ छोड़ने का वायदा किया और इसके बदले में उससे 3000 रुपये रिश्वत की माँग की। सरबजीत सिंह के अनुसार उसने यह राशि मुख्तियार सिंह को दे दी। परन्तु कुछ दिन बाद मुख्तियार सिंह ने पुनः 2000 रुपये की माँग की। सरबजीत सिंह ने इस दो हजार रुपये की राशि को देने से पूर्व एस.पी. मुखविन्दर सिंह चीना की देखरेख में एक ट्रैप पार्टी को साथ लेकर मुख्तियार सिंह से सम्पर्क किया। ट्रैप पार्टी ने मुख्तियार सिंह को दो हजार रुपये की रिश्वत के साथ गिरफ्तार कर लिया। इस प्रकार मुख्तियार सिंह पर सत्र न्यायालय के समक्ष चले मुकदमें में दो वर्ष के कारावास तथा जुर्माने की सज़ा भी सुनाई गई। मुख्तियार सिंह ने इस सत्र न्यायालय आदेश के विरुद्ध पंजाब हरियाणा उच्च न्यायालय के समक्ष अपील प्रस्तुत की। इस अपील पर निर्णय से पूर्व ही मुख्तियार सिंह का देहान्त हो गया। परन्तु उसके परिवार की एक महिला ने मुख्तियार सिंह को आरोपमुक्त सिद्ध करवाने के लिए तथा उसके माथे पर लगे झूठे कलंक के टीके को मिटाने के लिए उच्च न्यायालय में अपील को जारी रखने के लिए प्रार्थना की। उच्च न्यायालय ने अपील को निरस्त कर दिया। परन्तु परिवार की महिला ने सत्य का ध्वज बुलन्द रखने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में मुख्तियार सिंह की मृत्यु के बाद भी अपील करने का साहस कर दिखाया।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति श्री अरूण मिश्रा तथा अमितवा राय की पीठ ने कई तकनीकी कमियों के चलते मुख्तियार सिंह पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप को तो मिटा दिया परन्तु इस गम्भीर प्रश्न को न किसी ने अदालत में उठाया और अदालत ने स्वतः संज्ञान लेते हुए भी इन प्रश्नों पर कोई टिप्पणी करने का प्रयास नहीं किया कि गम्भीर तकनीकी कमियों से भरे झूठे मुकदमों के कारण एक व्यक्ति का सारा जीवन कलंकित हो जाता है, वह अपनी आजीविका के गौरव से वंचित हो जाता है, उसके परिवार की प्रतिष्ठा मिट्टी में मिल जाती है, परिवार के सदस्यों का भी गर्व के साथ सिर ऊँचा उठाकर जीने का अधिकार बिना किसी अपराध के ही छीन लिया जाता है, ऐसी परिस्थितियों के शिकार व्यक्तियों और परिवारों की क्षतिपूर्ति किस प्रकार हो सकती है? वैसे तो झूठे मुकदमों के बाद आरोपमुक्त होने वाला व्यक्ति अपने पक्ष में आने वाले निर्णय को ही अपनी सबसे बड़ी विजय मान लेता है। हमारे देश में ऐसे व्यक्तियों को पुलिस के भ्रष्टाचार और अक्षमता का शिकार मानते हुए किसी प्रकार की क्षतिपूर्ति की कोई व्यवस्था नहीं है। यदि ऐसी कोई व्यवस्था होती तो पुलिस स्वाभाविक रूप से झूठे मुकदमें बनाने से दूर ही रहती। (क्रिमिनल अपील नम्बर-1163/2017)