ट्रम्प की विजय का कुल मिलाकर एक ही संकेत नजर आ रहा है कि पिछले 17 वर्षों से आतंकवाद का डटकर मुकाबला करने वाला अमेरिका अब तीव्र गति से आतंकवाद का सफाया प्रारम्भ करेगा। बेशक इस आतंकवाद में उसे इस्लाम के कट्टरपंथ को भी कुचलना ही क्यों न पड़े।
ट्रम्प और हिलेरी क्लिंटन के बीच अमेरिका के राष्ट्रपति पद की दौड़ ट्रम्प के पक्ष में ही गई और अन्ततः 20 जनवरी, 2017 को डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिका के राष्ट्रपति पद का कार्यभार संभाल लिया। क्या ट्रम्प की विजय का भारत के लिए कोई विशेष अर्थ होगा? दूसरी तरफ यह खबरें भी सुनने को मिल रही थी कि अमेरिका में रहने वाले हिन्दू अक्सर वहाँ की डेमोक्रेटिक पार्टी को समर्थन देते हैं। जबकि ट्रम्प रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार थे।
जैसे-जैसे अमेरिकी राष्ट्रपति का प्रचार अभियान गति पकड़ता गया, वैसे-वैसे ट्रम्प और भारत के सम्बन्धों को लेकर जिज्ञासा गहरी होती गई। इसका मुख्य कारण था ट्रम्प द्वारा समय≤ पर दिये गये सार्वजनिक वक्तव्य।
अमेरिका में हिन्दुओं की आबादी बहुत अधिक नहीं है। यह मात्र 0.8 प्रतिशत के लगभग है। भारत की तरह वहाँ भी सभी हिन्दू एकमत नहीं हैं। सनातनधर्मी हिन्दू, शैव, वैष्णव, आर्य समाज, ब्रह्म समाज, हरेकृष्णा मंदिरों से जुड़े हिन्दू, स्वामी नारायण सम्प्रदाय तथा सिख आदि अमेरिका में भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं। वैसे अमेरिका में भारत और पाकिस्तान के मुसलमान भी अच्छी संख्या में हैं।
1965 में अमेरिका द्वारा पारित अप्रवासी और राष्ट्रीयता सेवा कानून के बाद अमेरिका में भारतीयों का बसना सरल हो पाया था। हिन्दू समुदाय के अतिरिक्त अमेरिका के मूल निवासी भी बहुत बड़ी संख्या में अब कर्मफल, पुनर्जन्म तथा योग आदि में विश्वास करने लगे हैं। अमेरिका के लोग भारतीय हिन्दुओं को उच्च शिक्षा के अतिरिक्त पारिवारिक सुख और शांति का प्रतीक भी मानते हैं। हिन्दुओं में तलाक की दर भी अत्यन्त न्यून है। आय की दृष्टि से भी हिन्दुओं को संभ्रान्त समझा जाता है। स्वामी विवेकानन्द से लेकर नरेन्द्र मोदी तक भारत से अनेकों संतों, महात्माओं ने अमेरिकावासियों के बीच आध्यात्मिक, सामाजिक और राजनीतिक दर्शन का भारतीय रूप प्रस्तुत किया है। इनमें स्वामी रामतीर्थ, परमहंस योगानन्द, स्वामी प्रभुपाद, महर्षि महेश योगी, पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। श्री नरेन्द्र मोदी जी की तरह श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने भी अमेरिका यात्रा की एक विशिष्ट छाप छोड़ी थी। अमेरिकी संसद में संस्कृति के मंत्रों और श्लोकों के बीच उनका सम्मान और सम्बोधन प्रारम्भ हुआ था।
हालांकि ट्रम्प के द्वारा राष्ट्रपति पद का भार संभालने के तुरन्त बाद उनका यह वक्तव्य अमेरिका में रहने वाले भारतीयों के लिए एक भावी समस्या का संकेत दे रहा है। ट्रम्प ने ‘मेरा रास्ता’ नामक अपनी नई नीति निर्धारित करने का संकेत दिया है जिसमें उन्होंने अमेरिका की वस्तुएँ खरीदने और अमेरिका के ही योग्य व्यक्तियों को नौकरी देने के अभियान का संकेत दिया है। आज भारत का निर्यात उद्योग भी बहुत बड़े पैमाने पर अमेरिका के साथ जुड़ा है।
वैसे किसी एक व्यक्तव्य को बहुत बड़ी समस्या का कारण नहीं समझा जा सकता। भारत के साथ सहयोग ट्रम्प की ही नहीं अपितु एक राष्ट्र के तौर पर अमेरिका की भी महत्त्वपूर्ण विदेश नीति है। अमेरिका एक तरफ चीन से भी निपटना चाहता है और दूसरी तरफ आतंकवाद के समर्थक पाकिस्तान को भी पूरी तरह नियंत्रित करना चाहता है। यह दोनों देश कहने को भारत के पड़ोसी देश हैं परन्तु वास्तविकता यह है कि ये दोनों ही देश भारत के शत्रु देशों की तरह व्यवहार करते हैं। पाकिस्तान को हथियार उपलब्ध कराने का मुख्य स्रोत चीन है। अतः अमेरिका के लिए भारत का सहयोग अपने आपमें एक ट्रम्प कार्ड है। डोनाल्ड ट्रम्प की भारत के लिए व्यक्तिगत पसन्द बेशक जग जाहिर हो चुकी है परन्तु अमेरिका की विदेश नीति भी किसी कीमत पर भारत को अब कमजोर नहीं देखना चाहती। एक तरफ ट्रम्प जैसा दबंग नेता तो दूसरी तरफ उसका सहयोग देने के लिए नरेन्द्र मोदी जैसा व्यक्तित्व आज का एक महत्त्वपूर्ण वातावरण है। इसका लाभ उठाकर अमेरिका और भारत दोनों ही एक दूसरे का परस्पर सहयोग कर सकते हैं। इसलिए अमेरिका में रहने वाले भारतीय हिन्दुओं को किसी प्रकार से भी चिन्तित होने का कोई औचित्य नजर नहीं आता। बल्कि ऐसा स्पष्ट प्रतीत हो रहा है कि आने वाला समय अमेरिका भारत सहयोग के बल पर आतंकवाद के लिए एक वास्तविक समस्या पैदा कर देगा।
ट्रम्प ने राष्ट्रपति पद संभालने के बाद 24 घण्टे के भीतर ही इस्लामिक आतंकवाद को खुली चुनौती देते हुए यहाँ तक कह दिया है कि वे विश्व की धरती से इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी गुटों का नामोनिशान तक नहीं रहने देंगे। ट्रम्प के हृदय में जलती हुई आतंकवाद विरोधी अग्नि अब कहीं छिपी नहीं है। भारत के राजनेता अपनी नीच तुष्टिकरण राजनीति के चलते बेशक आतंकवाद के कारण उत्पन्न भारतवासियों की पीड़ा को न समझ सकें और आतंकवाद को अधिकांश भारतीय मुसलमानों के समर्थन को भी बेशक नजरअंदाज करते रहें परन्तु अमेरिका के दूरदर्शी राजनीति के रूप में ट्रम्प का उदय यह स्पष्ट संकेत दे रहा है कि अमेरिका की नजरों में भारत एक हिन्दू देश है और पाकिस्तान एक मुस्लिम देश है।
वर्ष 2001 की 11 सितम्बर को अमेरिका पर हुए आतंकी हमले के बाद जार्ज बुश से लेकर अब तक अमेरिकी प्रशासन ने इस्लाम और आतंकवाद को पर्यायवाची ही समझा है। ट्रम्प की राष्ट्रभक्ति और भ्रष्टाचार समाप्त करने की संकल्पशक्ति भी अमेरिका में उनका आधार मजबूत करेगी। भारत में बेशक राजनेता इस्लामिक तुष्टिकरण की नीति को अपनाये रखें, परन्तु अमेरिकी प्रशासन ने पिछले 17 वर्ष में यह सिद्ध कर दिया है कि आतंकवाद को समाप्त करने के लिए इस्लामिक ताकतों पर ही प्रहार करना पड़ेगा। ट्रम्प ने सी.आई.ए. नामक अमेरिकी गुप्तचर संस्था के उच्चाधिकारियों के साथ अपनी पहली बैठक में यह खुला संकेत दे दिया है कि कट्टरवादी इस्लामिक आतंकवाद को जड़ से उखाड़ दो, अब यह धरती के चेहरे पर दिखाई नहीं देना चाहिए। इससे एक तरफ जहाँ उनकी आतंकवाद के विरुद्ध एक लक्ष्यबद्ध नीति का संकेत मिलता है वहीं ढुलमुल राजनीति के विरुद्ध वे यह स्पष्ट मानते हैं कि आतंकवाद केवल कट्टरवादी इस्लाम का ही दूसरा नाम है।
ट्रम्प की विजय का कुल मिलाकर एक ही संकेत नजर आ रहा है कि पिछले 17 वर्षों से आतंकवाद का डटकर मुकाबला करने वाला अमेरिका अब तीव्र गति से आतंकवाद का सफाया प्रारम्भ करेगा। बेशक इस आतंकवाद में उसे इस्लाम के कट्टरपंथ को भी कुचलना ही क्यों न पड़े। भारत के राजनेताओं से इतनी महान आशाएँ करना व्यर्थ है। परन्तु यह निश्चित है कि अमेरिका यदि आतंकवाद के विरुद्ध सारे विश्व में कोई महाअभियान छेड़ता है तो भारत को भी मजबूरी में इस महाअभियान का हिस्सा बनना ही होगा। हमारी दृष्टि में यही ट्रम्प की सार्थकता होगी भारत के लिए।
विमल वधावन योगाचार्य, एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट