कानून रिव्यू/चंडीगढ
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 53 ए के तहत किसी आरोपी का डीएनए परीक्षण निष्पक्ष जांच का हिस्सा है। अदालत ने यह बात एक आरोपी की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए कही। इस याचिका में निचली अदालत के आदेश को चुनौती दी गई थी जिसने आरोपी के डीएनए परीक्षण के अनुरोध संबंधी आवेदन को ठुकरा दिया था। निचली अदालत ने इस आदेश के ख़लिफ़ अपील को ठुकराते हुए कहा था कि किसी व्यक्ति को सुनवाई के किसी चरण में इस तरह का आवेदन दायर करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। अदालत ने आगे कहा इस तरह के आवेदन का उद्देश्य सिर्फ़ सुनवाई की प्रक्रिया को लंबा करना है क्योंकि आवेदन अभियोक्त्री और सभी गवाहों से पूछताछ पूरी की जा चुकी है। याचिकाकर्ता के वक़ील ने हाईकोर्ट में कहा कि निचली अदालत द्वारा आवेदन को रद्द करना निष्पक्ष सुनवाई से इंकार करना है। याचिकाकर्ताओं की दलील से सहमति जताते हुए न्यायमूर्ति राज शेखर अत्री ने कहा कि निष्पक्ष सुनवाई का मौक़ा नहीं देने का अर्थ है मानवाधिकार को तिलांजलि देना और यह कोर्ट का दायित्व है कि वह यह देखे कि कुछ प्रावधानों को नहीं माने जाने के कारण फ़ैसले पर पुनर्विचार अवश्यंभावी है या वह बिना संदेह इस निष्कर्ष पर पहुंचने पर निर्भर करता है कि इससे वास्तव में बड़े पैमाने पर अन्याय हुआ है। यह भी कहा गया कि जज को, जब भी ज़रूरी हो, हस्तक्षेप करना चाहिए विशेषकर ग़ैर क़ानूनीए अनियमितता और अस्थिरता की संभावना को ख़त्म करने और ऐसे साक्ष्य को बाहर रखने में जिसे पेश नहीं किया जा सकता है। इसे देखते हुए यह कहा गया कि सीआरपीसी की धारा 53 ए के तहत अभियोजन के लिए यह ज़रूरी है कि वह डीएनए परीक्षण के लिए राज़ी हो जाए क्योंकि निचली अदालत ने इस बारे में अपील को ख़ारिज करने का कोई कारण नहीं बताया है। अदालत ने आगे कहा कि दोनों ही याचिकाकर्ताओं का डीएनए प्रोफ़ायलिंग निष्पक्ष सुनवाई का हिस्सा है और वर्तमान मामले में उचित निर्णय के लिए आवश्यक है। पुनर्विचार याचिका को स्वीकार करते हुए कोर्ट ने निचली अदालत के फ़ैसले को निरस्त कर दिया और दोनों ही याचिकाकर्ताओं के डीएनए प्रोफ़ायलिंग का आदेश दिया।