कानून रिव्यू ने उलेमाओं से लेकर बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों से तीन तलाक के मुद्दे पर उनकी राय जानी
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मौहम्मद इल्यास-’दनकौरी’/कानून रिव्यू
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सार संक्षेपः-
— तीन तलाक को सर्वोच्च न्यायालय ने असंवैधानिक करार दिया है और साथ ही सरकार से कहा है कि 6 महीने के अंदर तीन तलाक पर कानून बनाया जाए। मुस्लिम समुदाय ने कोर्ट के इस फैसले का सम्मान किया है और साथ हीं सरकार से अपेक्षा की है कि कानून तो बनाया मगर पर्सनल लॉ यानि शरीयत के कानून से किसी भी तरह की छेडछाड नही की जानी चाहिए ऐसा हुआ तो बर्दाश्त नही किया जाएगा। कानून रिव्यू ने इस ’तीन तलाक’ के मुद्दे पर उलेमाओं से लेकर बु़द्धजीवी वर्ग के लोगों से उनकी राय जानी, आइए जानते हैं बातचीत के प्रमुख अंशः-
मौलाना कारी मुस्तफाः-
…………………..ऑल इंडिया मिल्ली तंजीम अल फैज के नेशनल प्रेसीडेंट मौलाना कारी मुस्तफा ने कहा है कि हर मुसलमान के लिए कुरान का कानून मानना जरूरी है। कुरान अल्लाह का पैगाम है जो पैंगबर मुहम्मद रसूल्लाह आलेहि वसल्लम पर नाजिल हुआ था। यह मुल्क जम्हूरियत का है यहां सभी को आजादी से रहने का हक है तभी तो अल्लामा इकबाल ने कहा है कि सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा- हम बुलबुले हैं इसके यह गुलिस्ता हमारा। किंतु अरसे से नापाक ताकतें इस गुलिस्ता- चमन में जहर घोलने में लगी हुई हैं। उन्होंने बताया कि सरकार कानून बनाए या नही शरीयत का कानून अपनी जगह पर कायम रहेगा। शरीयत और कुरान की बात में किसी भी तरह की दखलदांजी बर्दाश्त नही की जाएगी।
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नसीमा खानम एडवोकेट जिला उपाध्यक्ष कांग्रेस कमेटी गौतमबुद्धनगरः-
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……….पेशे से अधिवक्ता व गौतमबुद्धनगर कांग्रेस की जिला उपाध्यक्ष नसीमा खानम ने बताया कि कोर्ट का फैसला सही है जिसमें मुस्लिम पर्सनल लॉ का ख्याल रखा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है कि मुस्लिमों के मामले शरीयत के अनुसार ही तय होने चाहिए। तीन तलाक को सुन्नी हनफी संप्रदाय में ही माना जाता है, जब कि शाफई, मलिकी और हंबली संप्रदाय में तीन तलाक को नही माना जाता। तलाक तीन तरह से होते हैं जिसमें एक ही बार में, तीन बार तलाक बोल देना तलाक-उल बिद्दत माना जाता है जो शरीयत में पहले ही गुनाह माना गया है और कोर्ट ने भी अपने फैसले में इसे असंवैधानिक यानी गैर कानूनी माना है। उन्होंने कहा कि सरकार को कानून बनाते वक्त कुरान और हदीस का पूरा ध्यान रखना चाहिए। यदि ऐसा न हुआ तो यह मौलिक अधिकारों का हनन होगा जिसे कतई बर्दाश्त नही किया जाएगा।
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सरफराज अली प्रदेश उपाध्यक्ष भाजपा अल्पंसख्यक मोर्चा उत्तर प्रदेशः-
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………………भाजपा अल्पंसख्यक मोर्चा के उत्तर प्रदेश उपाध्यक्ष सरफराज अली ने कहा कि नासमझी और बगैर इल्म के लोग गुस्से या फिर जल्दबाजी में तलाक दे देते हैं। ऐसे में शरीयत के अनुसार तलाक मान लिया जाता है मगर औरत इंसाफ के लिए चक्कर काटती रहती हैं। ऐसा ही शायरा बानो के मामले में भी हुआ, तलाक मान लिया गया, मगर दुखी और बेसहारा इन औरतों को इंसाफ नही दिया। आखिर सायरो बानो समेत इन सभी औरतों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को अवैध माना है और कोर्ट का यह फैसला सम्मानजनक है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार को अब इस मामले में कडे से कडा कानून बनाना चाहिए ताकि लोग शरीयत की प्रक्रिया को पूरा किए बगैर तीन तलाक से बचे। यदि कानून कडा होगा तो लोग गलत कदम उठाने से जरूर हिचकेंगे, जब कि शरीयत और कुरान अपनी जगह है जिसे हर मुसलमान को मानना जरूरी है। मर्द हो या फिर औरत शरीयत में किसी के भी साथ ज्यादती के लिए कोई जगह नही है।
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चौधरी यूनुष अली भाटी जिला सचिव समाजवादी पार्टी गौतमबुद्धनगरः-
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………………गौतमबुद्धनगर सपा जिला सचिव चौधरी यूनुष अली भाटी ने बताया कि शरीयत में तलाक तीन तरह से बताया गया है। इनमें पहला तलाक एक बार दिया जाता है और इद्दत के वक्त का इंतजार किया जाता है अगर इस बीच मिया बीबी के बीच सुलह हो जाती है तो निकाह बना रहता है। जब कि दूसरे तलाक में, पहली बार एक तलाक कहा और एक महीने का इंतजार किया तथा फिर दूसरे महीने में तलाक कहा फिर एक महीने का इंतजार किया इस तरह तीन बार तलाक कहे जाने पर तीन महीने 13 दिन का वक्त दिया जाता है यदि इस पीरियड में मनमुटाव दूर हो जाता है तो ठीक है वरना तलाक हो जाता है। जब कि तीसरे तलाक में एक बार में ही तीन बार तलाक-तलाक तलाक बोल दिया जाता है जिसे शरीयत में ही गुनाह करार दिया गया है और यही बात कोर्ट ने अपने फैसले में कही है।
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हाजी रईस अहमद नियाजी अध्यक्ष चिश्तिया लुत्फिया दरगाह कमेटी दनकौरः-
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……………चिश्तिया लुत्फिया दरगाह कमेटी दनकौर के अध्यक्ष हाजी रईस अहमद नियाजी ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला बिल्कुल सही है इंसाफ पाने का सभी को हक है चाहे वह मर्द हो या औरत। एक बार में ही, तीन बार तलाक बोल देना शरीयत में गुनाह है और कोर्ट ने भी वही बात कही है। कुरान में तलाक देने को जो तरीका बताया गया है उसे पूरा किया जाना चाहिए जैसे बगैर वजू के नमाज नही हो सकती है तो फिर बगैर शरीयत के तरीके के इस तरह के तलाक कैसे सही माने जा सकते हैं तभी तो इस तीन तलाक को तलाक-उल- बिद्दत माना गया है। उन्होंने बताया कि सरकार इस तरह के तीन तलाक की प्रवृत्ति रोकने के लिए कानून तो जरूर बनाए, मगर शरीयत की बातों को ध्यान में रखा जाना चाहिए। किसी भी समाज में कोई भी कुप्रथा जन्म ले सकती है और जिससे समाज का अहित हो रहा हो उसे खत्म भी किया जाना चाहिए।
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शौकत अली चेची राष्ट्रीय लोकदल किसान प्रकोष्ठ के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्षः-
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………………..राष्ट्रीय लोकदल किसान प्रकोष्ठ के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष शौकत अली चेची ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने शरीयत के हिसाब से तीन तलाक को असंवैधानिक माना है और केंद्र सरकार को 6 महीने के अंदर कानून बनाने के लिए कहा है। कानून बनाने से पहले केंद्र सरकार को एक समिति का गठन करना चाहिए जिसमें उलेमा और शरीयत को जानने वाले लोग तथा समाज के बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों को शामिल किया जाए। इस समिति की सिफारिशों को कानून बनाते वक्त ध्यान में रखना चाहिए क्योंकि धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है। यदि कुरान और शरीयत के मामले में कोई दखलदांजी की जाएगी तो यह मौलिक अधिकार का भी खुला हनन होगा जो कतई भी बर्दाश्त नही किया जाएगा। उन्होंने कहा कि तलाक की प्रक्रिया में हलाला एक कुप्रथा है जिसका कतई समर्थन नही किया जाना चाहिए और उलेमाओं को इस तरह की गलत चीजों पर तुरंत रोक लगा देनी चाहिए। शौहर ने यदि तलाक-उल बिद्दत की शुरूआत की है तो फिर बेचारी औरतों को क्यों हलाला जैसे कुप्रथा का सामना करना पडें, यह एक विचारणीय तथ्य है।
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आरजू खान एडवोकेटः-
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आरजू खान एडवोकेट ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला स्वागत योग्य है और जिससे उन्हें बेहद खुशी हुई है। तीन तलाक जैसे ही यह कुप्रथा जो वर्षो से चली आ रही थी, अब खात्मा हो गया है। उन्होंने कहा कि इस्लाम एक सच्चा मजहब है किंतु मजहब के कुछ ठेकेदारों ने अपनी संकुचित सोच का परिचय देते हुए इस मजहब की गलत व्याख्या कर कई तरह से बदनाम की करने की कोशिश की है और यह एक साजिश का हिस्सा भी है। जब कि पैगंबर मुहम्मद रसूल्लाह आलैहि वसल्लम ने तो औरतों पर हो रहे जुल्म और ज्यादतियों के खिलाफ एक जबरदस्त जंग लडी थीं। किंतु मजहब के इन ठेकेदारों की संकुचित सोच के चलते हुए हम मुस्लिम औरतों को फिर से इस मोड पर लाकर खडा कर दिया है जिससे हम उनके जुल्मो सितम के साये में जीती रहें। आज के इस दौर में मुस्लिम औरतों को सम्मान न देकर एक खिलौना समझ लिया गया है हलाला जैसी कुप्रथा इन सबका परिणाम है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के माननीय जजों और इस देश की ईमानदार और साहसी मीडिया जिन्होंने हम औरतों को तीन तलाक जैसे दानव से लडने में सर्पोट दिया बार बार नमन करना चाहिए। साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को इस मुद्दे पर कानून बनाने के लिए जल्द से जल्द पहल करनी चाहिए ताकि दंश झेल रही बेसहारा औरतों को इंसाफ मिल सके।
मौहम्मद एहतेशाम एडवोकेटः-
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मौहम्मद एहतेशाम एडवोकेट ने बताया कि कोर्ट का फैसला सही है कोर्ट ने तलाक-उल बिद्दत को अंसवैधानिक करार दिया है। तलाक-उल बिद्दत को पहले ही शरीयत में गुनाह माना गया है। अब बात आती है सरकार द्वारा कानून बनाने की तो इसमें मुस्लिम पर्सनल लॉ का पूरा ध्यान रखना चाहिए। यदि मुस्लिम पर्सनल लॉ का पूरा ध्यान नही रखा गया, तो मूलभूत अधिकार संविधान के अनुच्छेद-13 का हनन होगा और किसी भी मौलिक अधिकार के खिलाफ बनाया गया कानून शून्य साबित हो जाता है।
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सायमा- बी- एडवोकेटः-
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सायमा-बी- एडवोकेट कहती हैं कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला बिल्कुल सही है और इस फैसले से उन्हें खुशी है। सुन्नी हनफी संप्रदाय में तीन तलाक प्रचलित था। इस तीन तलाक यानी तलाक-उल बिद्दत से काफी औरतों की जिंदगी बर्बाद हो रही थी अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले से जिन्हें इंसाफ नही मिल रहा था इंसाफ मिलेगा, इसकी उम्मीद जाग गई है। उन्होंने बताया कि सरकार कुरान यानी शरीयत के अनुसार ऐसा सख्त कानून बनाए जिससे लोग तलाक- उल बिद्दत जैसे गुनाह से बच सकें और औरतों की जिदंगी नर्क होने से बच जाए।
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अब्दुल नासिर एडवोकेटः-
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अब्दुल नासिर एडवोकेट ने बताया कि सरकार की नीयत पर्सनल लॉ में हस्तक्षेप करने की थी किंतु सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह से फैसला सुनाया है वह मंशा पूरी न हो सकी है। सरकार पर्सनल लॉ को ही पूरी तरह से खत्म करना चाहती थी किंतु कोर्ट ने इस फैसले में सरकार को पर्सनल लॉ में हस्तक्षेप करने का अधिकार ही नही दिया। यदि सरकार मनमाने तरीके से कोई भी कानून बनाएगी तो मौलिक अधिकारों का हनन होगा और वो कानून बनने से पहले की खत्म हो जाएगा। संविधान में हर नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है इसलिए सरकार को चाहिए जब भी कोई कानून बनाए कुरान और शरीयत का जरूर ख्याल रखें। कोर्ट ने अपने फैसले में शरीयत की बात कही है शरीयत तीन तलाक को बिद्दत मानती है क्योंकि बिद्दत में कुरान के अनुसार सारी प्रक्रियाओं को पूरा नही किया जाता है। जब कि तलाक-ए अहसन और तलाक-ए हसन में सारी प्रक्रियाओं को पूरा किया जाता है और इनमें बेस्ट तरीका तलाक-ए अहसन को माना जाता है जिसमें तलाक सिर्फ एक बार दिया जाता है और इद्दत की अवधि पूरी होने पर यदि सुलह न हो तो तलाक माना जाता है और यदि बीच में मनमुटाव दूर हो जाता है तो निकाह बना रहता है।
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