सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सरकार का मानना था कि यह परंपरा बंद हो जाएगी। लेकिन यह जारी रही। इस साल फैसले से पहले इस तरह के तलाक के 177 मामले जबकि इस फैसले के बाद 66 मामले दर्ज हुए। उत्तर प्रदेश इस सूची में शीर्ष पर है। इसलिए सरकार ने कानून बनाने की योजना बनाई। तलाक और विवाह का विषय संविधान की समवर्ती सूची में आता है और सरकार आपातकालीन स्थिति में इस पर कानून बनाने में सक्षम है। लेकिन सरकारिया आयोग की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने राज्यों से सलाह करने का फैसला किया है।
तलाक-ए बिद्दत पर कानून लाने की तैयारी
- कानून रिव्यू/नई दिल्ली
—————————-यदि अब तीन तलाक देने की गलती की गई तो कानूनन 3 साल की सजा हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही अपने फैसले में तीन तलाक यानी तलाक-ए बिद्दत को गैर कानूनी करार दिया था और सरकार से इस मामले में कानून बनाने के लिए कहा था। अब इस तलाक-ए बिद्दत पर सरकार कानून बनाने जा रही है। सरकार की ओर से कानून का मसौदा भी तैयार कर लिया गया है। तीन तलाक को गैरकानूनी बताने के बावजूद जारी इस परंपरा पर लगाम कसने के उद्देश्य से प्रस्तावित एक कानून के मसौदे में कहा गया है कि एक बार में तीन तलाक गैरकानूनी और शून्य होगा और ऐसा करने वाले पति को 3 साल के कारावास की सजा हो सकती है। सरकारी सूत्रों ने बताया कि मसौदा मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक आज राज्य सरकारों के पास उनका नजरिया जानने के लिए भेजा गया। उन्होंने कहा कि राज्य सरकारों से मसौदे पर तुरंत प्रतिक्रिया देने को कहा गया है। यह मसौदा गृह मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता वाले एक अंतरमंत्री समूह ने तैयार किया है। इस में अन्य सदस्य विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, वित्त मंत्री अरुण जेटली, विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद और विधि राज्यमंत्री पीपी चौधरी थे। प्रस्तावित कानून केवल एक बार में तीन तलाक यानी तलाक ए बिद्दत पर ही लागू होगा और यह पीड़िता को अपने तथा नाबालिग बच्चों के लिए गुजारा भत्ता मांगने के लिए मजिस्ट्रेट से गुहार लगाने की शक्ति देगा। इसके तहत महिला मजिस्ट्रेट से नाबालिग बच्चों के संरक्षण का भी अनुरोध कर सकती है और मजिस्ट्रेट इस मुद्दे पर अंतिम फैसला करेंगे। मसौदा कानून के तहत किसी भी तरह का तीन तलाक बोलकर लिखकर या ईमेल, एसएमएस और व्हाट्सएप जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से गैरकानूनी और शून्य होगा। मसौदा कानून के अनुसार एक बार में तीन तलाक गैरकानूनी और शून्य होगा और ऐसा करने वाले पति को तीन साल के कारावास की सजा हो सकती है। इस मसौदा कानून का उद्देश्य सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक बार में तीन तलाक को गैरकानूनी बताने के बावजूद जारी इस परंपरा पर लगाम कसने का है। सरकारी सूत्रों ने कहा कि जीवनयापन हेतु गुजाराभत्ता और संरक्षण का प्रावधान यह सुनिश्चित करने के लिए किया गया है कि अगर पति पत्नी से घर छोड़कर जाने को कहता है तो उसके पास कानूनी कवच होना चाहिए। प्रस्तावित कानून जम्मू कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू होना है। इसमें कहा गया है कि एक बार में तीन तलाक देने पर तीन साल के कारावास और जुर्माने की सजा होगी। यह गैरजमानती और संज्ञेय अपराध होगा। सरकारी सूत्रों ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सरकार का मानना था कि यह परंपरा बंद हो जाएगी। लेकिन यह जारी रही। इस साल फैसले से पहले इस तरह के तलाक के 177 मामले जबकि इस फैसले के बाद 66 मामले दर्ज हुए। उत्तर प्रदेश इस सूची में शीर्ष पर है। इसलिए सरकार ने कानून बनाने की योजना बनाई। तलाक और विवाह का विषय संविधान की समवर्ती सूची में आता है और सरकार आपातकालीन स्थिति में इस पर कानून बनाने में सक्षम है। लेकिन सरकारिया आयोग की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने राज्यों से सलाह करने का फैसला किया है। अधिकारी ने कहा कि इसे संसद के शीतकालीन सत्र में लाने की योजना है।