दलितां के खिलाफ अपराध के मामले में भी नहीं होगी नियमित गिरफ्तारी
कानून रिव्यू/इलाहाबाद
दलितों को एक बार फिर कोर्ट ने झटका दे दिया है। इस बार इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पुलिस से साफ कह दिया है कि वह उच्चतम न्यायालय के 2014 के एक आदेश द्वारा समर्थित सीआरपीसी के प्रावधानों का पालन किए बिना एक दलित महिला और उसकी बेटी पर हमले के आरोपियों को गिरफ्तार नहीं कर सकती है। यह मामला आईपीसी के साथ.साथ अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति उत्पीड़न निरोधक कानून के तहत दर्ज हुआ था। लेकिन न्यायालय ने पुलिस को तत्काल नियमित यानी रूटीन गिरफ्तारी करने से रोक दिया है। हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ में न्यायमूर्ति अजय लांबा और न्यायमूर्ति संजय हरकौली की खंडपीठ ने यह आदेश पारित किया है। वर्ष 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने अर्णेश कुमार के मामले में आरोपी की गिरफ्तारी पर दिशानिर्देशों का समर्थन किया था। सीआरपीसी की धारा 41 और 41.ए कहती है कि सात साल तक की जेल की सजा का सामना कर रहे किसी आरोपी को तब तक गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, जब तक पुलिस रिकॉर्ड में उसकी गिरफ्तारी के पर्याप्त कारणों को स्पष्ट नहीं किया जाता है। हाई कोर्ट का आदेश ऐसे समय पर आया है जब अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति उत्पीड़न निरोधक कानून का दुरूपयोग रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट की ओर से पारित आदेश को पलटने की मंशा से हाल में संसद ने इस कानून में संशोधन के लिए एक विधेयक पारित किया है।