दिल्ली दिलवालों की है, तो उस दिल को ताज़ी हवा दिलवाने का कर्तव्य प्रत्येक नागरिक का भी है
वायु प्रदूषण पर एक समीक्षा’
2018 पर्यावरण संरक्षण की चिंता के मद्देनजर विश्व के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण दिवस होना चाहिए जब विश्व के समस्त देश पर्यावरण संरक्षण के प्रति स्वयं को कर्त्तव्यबद्ध मान जगह. जगह पर विविध समारोह आयोजित कर रहे हैं। वहीं भारत जैसे विकासशील देश का दिल, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली वायु प्रदुषण से आघात खाए बुरी तरह से कराह रहा है। बेतहाशा बढ़ती जनसंख्या, आधारभूत सरंचना का पतन, अप्रत्याशित ट्रेफिक, पॉलीथिन का अंधाधुंध प्रयोग, औद्योगिक कचरा कुछ ऐसे तत्व हैं जिसने विगत वर्षों से दिल्ली के प्राकृतिक सौंदर्य के अस्तित्व का गला घोंटने की पृष्ठभूमि तैयार की है। जिसमें राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश, हरियाणा एवं पंजाब के पारम्परिक कृषि के तरीके ने आग में घी डालने का काम किया, जिसके परिणामस्वरूप दिल्ली की स्थिति एक धूम्र बम की जैसी हो चली है। प्रतिदिन हो रहे पर्यावरण.क्षरण के ऊपर समीक्षा करने से पूर्व दिल्ली जैसे महान ऐतिहासिक स्थान के विषय पर प्रकाश डाला जाना उचित प्रतीत होता है। वर्ष 1911 से देश की राजधानी के रूप में प्रतिष्ठापित दिल्ली मात्र 1,484 वर्ग किलोमीटर में फैली हुई है जिसमे वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार कुल 16.7 मिलियन लोग निवास कर रहे हैं। ताज़े आंकड़ों के अनुसार दिल्ली की जनसंख्या कुल 26 मिलियन हो चुकी है। जिसके अनुसार प्रतिकिलोमीटर औसतन 29,298 के अनुपात में लोग निवास कर रहे हैं। नगरीकरण की दौड़ में दिल्ली में रोजगार की संभावनाओं ने इस खूबसूरत स्थान को देश के अन्य राज्यों से लोगों को ;प्रवास माइग्रेट करने के लिए अत्यंत आकर्षित किया है जिसके कारण जनसंख्या कई गुना बढ़ती चली जा रही है। निसंदेह जनसंख्या के अनुपात में दिल्ली में स्थापित आधारभूत सुविधाएं पतनोन्मुख स्थिति में हैं। छोटे क्षेत्र में अधिक लोगों के वास करने के कारण नागरिक सुविधाओं का अभाव स्पष्ट है। अव्यवस्थित आबादी क्षेत्र, बढ़ते वाहनों की संख्या के सापेक्ष संकरी सड़के, बाधित यातायात,औद्योगिक अवशिष्ट प्रवाह हेतु समुचित प्रबंध का अभाव, नागरिकों के द्वारा नियमों की अनदेखी किया जाना कुछ ऐसे तत्व हैं जिसने स्थिति को कष्टप्रद कर बना दिया है। दिल्ली में अन्य प्रदूषण घटकों के साथ वायु प्रदुषण की स्थिति सर्वाधिक असहनीय होती जा रही है। दिल्ली की वायु में घुलते मुख्य रासायनिक ज़हर उत्सर्जन को निम्नलिखित रूप में श्रेणीबद्ध किया जाना अत्यंत जरूरी है।
क्रम संख्या प्रदूषक का प्रकार
1ः- वाहनों का धुआं
2ः-. नाइट्रोजन ऑक्साइड
3ः- . कार्बनमोनोऑक्साइड
4ः- . सल्फरडाईऑक्साइड
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औद्योगिक अवशिष्ट
- अमोनिया
- कार्बनडाईऑक्साइड
- कार्बनमोनोऑक्साइड
- हाइड्रोक्लोराइड
- नाइट्रसऑक्साइड
- सल्फरऑक्साइड
- सल्फरहेक्साफ्लोराइड
- सीसा
———————————————————————————————————————– फसलों को जलाए जाने से होने वाला धुआं
- हरितगृहगैस
- वायु प्रदूषक गैसें
- कणिकातत्व
- धूम्र
घरेलू उपकरणों जैसे एयरकंडीशनर, रेफ्रिजरेटर, जनरेटर आदि आतिशबाज़ी से होने वाला प्रदूषण
- कार्बनडाईऑक्साइड
- कार्बनमोनोऑक्साइड
- सल्फरऑक्साइड
- क्लोरोफ्लोरोकार्बन
- हाइड्रो क्लोरोफ्लोरोकार्बन
धूम्रपान
- कार्बनमोनोऑक्साइड
- हाइड्रोजनसाईनाइड
उपरोक्त तालिका के अध्ययन से स्पष्ट है कि ये समस्त घटक दिल्ली में प्रचुर मात्रा में विषैली गैसों का निरंतर उत्सर्जन कर रहे हैं जिस कारण राष्ट्रीय राजधानी की वायु गुणवत्ता मानक के कठोर स्तर पर पहुंच गई है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तथा नेशनल एनवायरमेंट इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टिट्यूट ने वाहनों से निकलने वाले धुएं को दिल्ली के बढ़ते प्रदूषण का परम कारक माना है। एन्वायरमेंटल पोलुशन प्रवेन्शन एंड कंट्रोल ऑथोरिटी ने बदरपुर पवार प्लांट की उपादेयता कम हो जाने के कारण जुलाई-2018 तक बंद करने का प्रस्ताव किया है। ज्ञातव्य है की बदरपुर पवार प्लांट के द्वारा वर्ष 1974 से शहर की आवश्यकतों की पूर्ति हेतु की ऊर्जा का उत्पादन किया जा रहा है। किन्तु बढ़ती जनसंख्या से बढ़े हुए उपभोग के सापेक्ष इस प्लांट के द्वारा शहर की मात्र 8 : आवश्यकता की ही पूर्ति की जा रही है। जब कि कोयले से ऊर्जा उत्पादन के तरीके के कारण इससे उत्सर्जित विषैले रासायनिक गैस की मात्रा 80 से 90ः है जो कि काफी गंभीर मानी जा सकती है। इसके अतिरिक्त शरद ऋतु में दिल्ली से सटे राज्यों में बेतहाशा फसलों के जलाए जाने के कारण हवा में कणिका तत्व कई गुना बढ़ गए हैं जो की तेज़ हवा के अभाव में वायुमंडल में ही संकेंद्रित होने के कारण स्थिति को भयावह बना रहे हैं जिसकी परिणति विगत दो वर्षों यथा 2016 एवं 2017 में नवम्बर के माह में देखी जा चुकी है। जब वायु प्रदुषण के आधिक्य को दृष्टिगत कर समस्त नागरिकों को काफी समस्या का सामना करना पड़ा और दिल्ली सरकार ने उक्त को पर्यावरणीय संकट माना। यह कहना गलत नहीं होगा कि यही कारण है कि वर्ष 2018 में ग्लोबल एन्वायरमेंटल पर फॉर्मन्सइंडेक्स में कुल 180 देशों में से भारत का स्तर निराशाजनक रूप से गिरकर 177 हो गया। इसके साथ ही साथ नागरिकों के द्वारा उपभोक्ता वस्तुओं जैसे एयरकंडीशनर, रेफ्रीजेरटर,जनरेटर आदि के अंधाधुंध उपयोग और धूम्रपान की आदतों तथा पर्यावरण संरक्षण के लिए बनाये गए कानूनों की अनदेखी कुछ ऐसे अन्यतत्व हैं जिन्होंने दिल्ली की वायु को वास्तव में विषैली बनाने में अपना पूर्ण सहयोग दिया है। ताज़े अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि वर्तमान में दिल्ली के वायुमंडल में कार्बनमोनोऑक्साइड का संकेन्द्रण 6000 माइक्रो ग्राम प्रतिक्यू बिक मीटर है जो कि सामान्य स्तर अर्थात 2000 माइक्रो ग्राम प्रतिक्यू बिक मीटर से कहीं अधिक है। इसके अतिरिक्त नाइट्रोजनडाईऑक्साइड का स्तर भी सामान्य से कहीं अधिक है। मिनिस्ट्री ऑफ़ अर्थ साइंस द्वारा किये आकलन के अनुसार निर्धारित इंडेक्स में दिल्ली का एयरक्वांटिटीइंडेक्स 121 है। वर्ष 2014 के अवलोकन में दिल्ली के पर्यावरण में कनिका तत्वों का स्तर 2.5 तक पहुंच गया है। उक्तपरिणाम कुल 91 देशों के 1600 शहरों के तुलनात्मक अध्ययन के बाद सामने आया जो कि निसंदेह चिंता का विषय है। वायु प्रदूषण हमारे वातावरण तथा हमारे ऊपर अनेक प्रभाव डालता है।उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं।
- हवा में अवांछित गैसों की उपस्थिति से मनुष्य, पशुओं तथा पक्षियों को गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इससे दमा, सर्दी,खाँसी, अँधापन, श्रवका कमजोर होना, त्वचा रोग जैसी बीमारियां पैदा होती हैं। लंबे समय के बाद इससे जननिक विकृतियां उत्पन्न हो जाती हैं और अपनी चरम सीमा पर यह घातक भी हो सकती है।
- वायु प्रदूषण से सर्दियों में कोहरा छाया रहता है, जिसका कारण धूएं तथा मिट्टी के कणों का कोहरे में मिला होना है। इससे प्राकृतिक दृश्यता में कमी आती है तथा आंखों में जलन होती है और सांस लेने में कठिनाई होती है।
- ओजोन परत हमारी पृथ्वी के चारों ओर एक सुरक्षात्मक गैस की परत है। जो हमें सूर्य से आने वाली हानिकारक अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाती है। वायुप्रदूषण के कारण अपरिवर्तन अनुवाशंकीय तथा त्वचा कैंसर के खतरे बढ़ जाते हैं।
- वायु प्रदूषण के कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ता है, क्योंकि सूर्य से आने वाली गर्मी के कारण पर्यावरण में कार्बनडाइआक्साइड, मीथेन तथा नाइट्रसआक्साइड का प्रभाव कम नहीं होता है, जो कि हानिकारक हैं।
- वायु प्रदूषण से अम्लीय वर्षा के खतरे बढ़े हैं, क्योंकि बारिश के पानी में सल्फरडाईआक्साइड,नाइट्रोजनआक्साइड आदि जैसी जहरीली गैसों के घुलने की संभावना बढ़ी है।इससे फसलों, पेड़ों, भवनों तथा ऐतिहासिक इमारतों को नुकसान पहुंच सकता है।ऐसी विकट स्थिति के समाधान के लिए शहर के प्राकृतिक स्वरुप के संरक्षण के लिए सरकार के साथ साथ नागरिकों के द्वारा भी वायुमंडल को साफ़ करने के प्रयास किए जाने अपेक्षित हैं। सम्प्रति, वायुप्रदुषण को कई गुना बढ़ाने में सर्वाधिक सहयोग दिल्ली से सटे राज्यों में किसानों के द्वारा धान फसल की खूंटी, क्रॉपस्टबलिंग अर्थात फसल काटे जाने के पश्चात अधिशेष को जलाए जाने का रहा है। इस संबंध में पुरातन प्रणाली के अनुसरण से पर्यावरण को अत्यंत क्षति पहुंची है। इस संबंध में राज्य सरकारों के द्वारा इस समस्या के समाधान हेतु कोई ठोस दिशा निर्देश जारी नहीं किए गए। वास्तव में फसल अधिशेष कृषकों के लिए एक ऐसा कचरा मात्र है जिसे खेत से साफ़ किए बिना दूसरी फसल का आरोपण नहीं किया जा सकता। किन्तु वैज्ञानिक दृष्टि से उक्त कचरे का प्रयोग विविध कार्यों में किया जा सकता है जैसे
- अ. फसल अधिशेष गत्ता एवं कागज़ कारखानों के लिए एक अच्छा कच्चा माल साबित हो सकता है जिसके लिए अधिक पूंजी की भी आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
- ब. फसल अधिशेष को बायोमास पावर प्लांट्स में प्रयुक्त किया जा सकता है जैसा कि तमिलनाडु एवं महाराष्ट्र में किया जा रहा है।
- स. फसल अधिशेष का प्रयोग एक खास प्रकार के लकड़ी जैसे बोर्ड को बनाने के लिए भी किया जा सकता है जो कि स्ट्रॉपैनल बोर्ड की भांति निर्माण कार्यों एवं फर्नीचर उद्योग में काफी कारगर सिद्ध हो सकता है।
इस प्रकार फसल के कचरे से भी कई लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं। इस कार्य को व्यावहारिक रूप देने के लिए सरकार सहकारी समितियों को फसल अधिशेष को कृषक के खेत से उठाकर गंतव्य तक पहुंचाने के लिए अधिकृत कर सकती है और साथ ही सहकारिता की भावना को बढ़ाने के लिए उक्त उत्पादन इकाईयों को सहकारी समितियों के अंतर्गत खुलवाकर रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि कर सकती है। यही नहीं उत्तर प्रदेश सहकारी समिति अधिनियम 1965 के अंतर्गत उक्त इकाईयों पर पूर्ण लगाम लगाकर उन्हें नियमानुसार कार्य करने के लिए बाध्य करने के साथ फसल अधिशेष से पनपे घातक वायु प्रदुषण की समस्या से दिल्ली को निजात दिलवा सकती है।
इसके अतिरिक्त शहर के प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं।
- दिल्ली की सडकों का ग्रीन कॉरिडोर में परिवर्तित करके अनावश्यक लाल बत्तियां समाप्त कर अबाधित यातायात आवागमन की व्यवस्था के द्वारा।
- किसानों के द्वारा धान फसल की खूंटी क्रॉपस्टबलिंग अर्थात फसल काटे जाने के पश्चात बचे अधिशेष को जलाए जाने पर कठोर प्रतिबंध, दोषी पाए जाने पर आर्थिक दंड।
- प्रभावशाली पब्लिक ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था करके जैसा कि ब्राज़ील आदि देशों में अपनाया गया है।
- कृत्रिम वर्षा हेतु बादलों का बीजा रोपण की विधिक द्वारा भी वायु प्रदूषण को काम किया जा सकता है। इस तरह का प्रयोग नासिक में किया जा चुका है एवं चीन में ये पुरानी बात हो चुकी है। बादलों के बीजा रोपण की विधिका शुभारम्भ वर्ष 1947 में जनरल इलेक्ट्रिक लैब के द्वारा ऑस्ट्रेलिया में किया गया, जिसके पश्चात कई अन्य देशों ने भी इसको अपनाया।
- मेट्रो के खम्भों, बहुमंज़िला इमारतों, आवासीय सोसाइटियों, दफ्तरों शैक्षिक संस्थानों तथा फ्लाईओवर्स की रेलिंग्स पर खड़े उद्यान लगा कर प्रदूषण को काफी कम किया जा सकता है।
- पौधे जैसे स्नेक प्लांट के करण किया जा सकता है।
- अक्षय ऊर्जा के दोहन के द्वारा जैसा कि आइस लैंड द्वारा किया जा रहा है।
- ऑड. ईवन फार्मूला, कार रजिस्ट्रेशन संख्या के आधार पर एक दिन छोड़ कर कार का प्रयोग किया जाना। अथवा जैसा कि कोस्टारिका में अपनाया जा रहा है जिसके अंतर्गत वाहन के अंतिम कुछ डिजिट होने पर सप्ताह के खास दिनों में चलाए जाने की अनुमति दी जाती है। अथवा कार. पुलिंग पर विशेष ज़ोर देकर, तीन से कम यात्री होने पर कर दंड आरोपित कर, कम से कम संख्या में कार रजिस्ट्रेशन करके, कार के स्थान पर साइकिल या बिजली से चलित वाहनों के प्रयोग को प्रोत्साहन देकर प्रदूषण स्तर को नियंत्रित किया जा सकता है।
- धार्मिक समारोहों, विवाह समारोह तथा अन्य समारोह में प्रयुक्त डी०जी०सेट के प्रयोग पर पाबन्दी लगाया जाना।
- स्कूल, कॉलेज तथा कार्यालयों के समय में थोड़ा अंतर स्थापित कर के ताकि आवागमन से अवरुद्ध यातायात को नियंत्रित किया जा सके।
- कार्यालयों में सम्पूर्ण डिजिटलाइज़ेशन अपना कर ताकि सूचना के आदान प्रदान के लिए ऑफिसों के चक्कर लगाने से होने वाले आवागमन से अवरुद्ध यातायात को नियंत्रित किया जा सके।
- अवैध पार्किंग पर रोकथाम के लिए आर्थिक दंड के साथ बार बार अपराध किए जाने पर वाहन सीज़ किए जाने से भी यातायात को अबाधित किया जा सकता है। क्योंकि देखा गया है कि कानून की अनदेखी किए जाने के कारण लोग अवैध पार्किंग के लिए अभ्यस्त है,ं जिस कारण सडकों पर खड़े वाहन दुर्घटनाओं को आमंत्रित करते करते हैं और यातायात को बुरी तरह प्रभावित करते हैं।
- शहर में स्थापित सब्ज़ी, फल तथा मीट मंडी का कचरा जैविक होता है जिसका प्रयोग रीसायकल कर के मुर्गापालन, मत्स्यपालन, पशुपालन तथा खाद हेतु किया जा सकता है। अतरू उक्त अधिशेष को गाज़ीपुर जैसे डम्पिंग ग्राउंड में फेंकने के बजाय पुनः उपयोग किया जा सकता है, क्योंकि डम्पिंग ग्राउंड भी विषैली गैसों का एक महत्वपूर्ण घटक है।
- वर्क फ्रॉम होम कल्चर को अपना कर जिसमे कुछ विशेष अवसरों पर कार्यालय जाने की आवश्यकता होती है, इससे अवांछित ट्रेफिक को काफी कम किया जा सकता है।
- बाहरी राज्यों से आ रहे ट्रक व बसों के आवागमन पर कठोर नियम बनाकरण् ट्रकों का आवागमन प्रात 6 बजे से मध्य रात्रि तक पूर्णतया वर्जित करके।
- दिल्ली में स्थित बहुमंज़िला इमारतों को स्मोग मुक्त बनाकर, इस प्रकार का प्रयोग सफल रूप से चीन के द्वारा किया जा चुका है।
- स्वचालित छिड़काव यंत्रों को जगह.जगह पर लगाकर, प्रातः बेला में वेक्यूमक्लीनर सोप्पर से सड़कों की सफाई करके।
- ईंट के भट्टों को दिल्ली की भौगोलिक सीमा से बाहर स्थानांतरित करके।
- पंद्रह वर्ष से पुराने वाहनों को बंद करके।
- निर्माण कार्यों को पूर्णतया ढंक के किया जाना।
- आतिशबाजी पर पूर्ण बैन लगाकर।
- मेट्रो ट्रेंक के फेरों की संख्या में अभिवृद्धि करके।
क्योटोप्रोटोकॉल, मोंट्रियलप्रोटोकॉल, विएनाकन्वेंशन, स्टॉक होम कन्वेंशन इत्यादि अंतर्राष्ट्रीय संधियों एवं समझौतों से कटिबद्ध होने के कारण संविधान के अनुच्छेद 48 के अंतर्गत पर्यावरण संरक्षण को नागरिकों का मूल कर्तव्य बताया गया है ताकि नागरिक देश के संसाधनों का समुचित प्रयोग करें व पर्यावरण संरक्षण में सहयोग करें। वैधानिक दृष्टि से पर्यावरण संरक्षण के लिए कटिबद्ध भारत में अनेक अधिनियमों का प्रावधान है, जैसे
- एनवायरमेंट प्रोटेक्शन एक्ट- 1986
- नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल एक्ट- 2010
- एयर प्रिवेंशन एंड कंट्रोल ऑफ़ पोलुशन एक्ट-1983आदि
निष्कर्षः–
——— वैधानिक अधिनियमो, नियमों तथा प्राकृतिक संसाधनों के समुचित प्रयोग द्वारा और दिल्ली में फल फूल रही आबादी के लिए समुचित आधारभूत सुविधाओं का प्रबंध करके शहर में व्याप्त पर्यावरणीय संकट की स्थिति को न्यून करने के लिए ठोस कदम उठाए जाने चाहिए। प्रत्येक नागरिक के ह््रदय में यह अहसास जगाना चाहिए कि ये शहर उनका है, जिसका सौंदर्य बरक़रार रखना उनका परम कर्तव्य है। आधुनिकता की दौड़, ऐशोआराम की ज़िंदगी जीने की तमन्ना, आपसी प्रतियोगी वातावरण ने निसंदेह प्राकृतिक सौंदर्य को तार. तार कर दिया है। जिस अनुपात में जनसंख्या बढ़ रही है उस अनुपात में वाहनों की संख्या बढ़ी है जब कि अपेक्षित होना चाहिए कि उस अनुपात में पेड़, पौधे एवं हरियाली बढ़े, दिल्ली का दिल बहुत बड़ा है, दिल्ली दिलवालों की है, तो उस दिल को ताज़ी हवा दिलवाने का कर्तव्य प्रत्येक नागरिक का भी है।
लेखिकाः करिश्मापाल
पूर्व अध्यक्ष– उत्तर प्रदेश सहकारी लेखा परीक्षक संघ