94 वर्षीय वयोवृद्ध महिला की याचिका पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सहमति जताई
कानून रिव्यू/नई दिल्ली
1975 में देश में लागू किए गए आपातकाल को पूरी तरह असंवैधानिक घोषित करने के लिए दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने 94 वर्षीय वयोवृद्ध महिला की याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि वह इस पहलू पर भी विचार करेगी कि क्या 45 साल बाद आपातकाल लागू करने की वैधानिकता पर विचार करना व्यावहारिक या आवश्यक है। देश में 25 जून, 1975 की आधी रात को तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी थी। यह आपातकाल 1977 में खत्म हुआ था। वीरा सरीन ने याचिका में इस असंवैधानिक कृत्य में सक्रिय भूमिका निभाने वालों से 25 करोड़ रुपए का मुआवजा दिलाने की भी मांग की है। याचिकाकर्ता वीरा सरीन ने अपनी याचिका में दावा किया है कि वह और उनके पति आपातकाल के दौरान तत्कालीन सरकार के प्राधिकारियों और अन्य की ज्यादतियों के शिकार हैं, जो 25 जून, 1975 को आधी रात से चंद मिनट पहले लागू की गई थी। सरीन ने याचिका में कहा है कि उनके पति का उस समय दिल्ली में स्वर्ण कलाकृतियों का कारोबार था, लेकिन उन्हें तत्कालीन सरकारी प्राधिकारियों की मनमर्जी से अकारण ही जेल में डाले जाने के भय के कारण देश छोड़ना पड़ा था। याचिका के अनुसार, याचिकाकर्ता के पति की बाद में मृत्यु हो गयी और उनके खिलाफ आपातकाल के दौरान शुरू की गई कानूनी कार्यवाही का उन्हें सामना करना पड़ा था। याचिका के अनुसार, आपातकाल की वेदना और उस दौरान हुयी बर्बादी का दंश उन्हें आज तक भुगतना पड़ रहा है। याचिकाकर्ता के अनुसार उनके परिवार को अपने अधिकारों और संपत्ति पर अधिकार के लिये 35 साल दर-दर भटकना पड़ा। यही नहीं उस दौर में याचिकाकर्ता से उनके रिश्तेदारों और मित्रों ने भी मुंह मोड़ लिया क्योंकि उनके पति के खिलाफ गैरकानूनी कार्यवाही शुरू की गयी थी और अब वह अपने जीवनकाल में इस मानसिक अवसाद पर विराम लगाना चाहती हैं, जो अभी तक उनके दिमाग को झकझोर रहा है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि अभी तक उनके आभूषण, कलाकृतियां, पेंटिंग, मूर्तियां और दूसरी कीमती चल सम्पत्तियां उनके परिवार को नहीं सौंपी गयी हैं और इसके लिए वह संबंधित प्राधिकारियों से मुआवजे की हकदार हैं। याचिका में दिसंबर 2014 के दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश का भी जिक्र किया गया है जिसमें कहा गया था कि याचिकाकर्ता के पति के खिलाफ शुरू की गई कार्रवाई किसी भी अधिकार क्षेत्र से परे थी। याचिका में कहा गया है कि इस साल जुलाई में उच्च न्यायालय ने एक आदेश पारित करके सरकार द्वारा गैरकानूनी तरीके से उनकी अचल संपत्तियों को अपने कब्जे में लेने के लिये आंशिक मुआवजा दिलाया था।