ब्रिटेन की निर्वाचन प्रक्रिया में धन शक्ति का अधिक प्रभाव नहीं है। भारत को भी नगदी रहित अर्थव्यवस्था बनाने का प्रयास किया जा रहा है। यह एक सराहनीय कदम है। इसके बल पर निकट भविष्य में निर्वाचन व्यवस्था को भी नगदी रहित अर्थात् धन के प्रभाव से मुक्त बनाने में सफलता मिल सकती है।
पंजाब की धरती से 1937-38 में एक सामान्य कार्यकर्ता के रूप में एक सिक्ख परिवार इंग्लैण्ड गया। इस परिवार ने 7 बच्चों को जन्म दिया। सबसे बड़े पुत्र श्री कर्मजीत सिंह ब्रिटेन सरकार के अनेकों महत्त्वपूर्ण पदों पर अपनी सेवाएँ देने के उपरान्त वर्ष 2001 से 2011 तक लगभग 10 वर्ष के लिए ब्रिटेन के निर्वाचन आयुक्त रहे।
लगभग ढाई सौ वर्षों तक भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान अंग्रेजी शासक यह निर्धारित करते थे कि भारत के किस राजा का उत्तराधिकारी कौन होगा। जबकि श्री कर्मजीत सिंह जी ने 10 वर्षों तक ब्रिटेन के निर्वाचन आयुक्त के रूप में इंग्लैण्ड के निर्वाचित नेताओं की घोषणाएँ की। हाल ही में श्री कर्मजीत सिंह संयुक्त राष्ट्र संघ तथा भारतीय निर्वाचन आयोग के एक संयुक्त सम्मेलन में दिल्ली पधारे। इस अवसर पर भारतीय मतदाता संगठन की ओर से हमने श्री कर्मजीत सिंह जी के सम्मान में एक समारोह का आयोजन किया जिसमें उन्होंने ब्रिटिश निर्वाचन पद्धति और भारतीय निर्वाचन पद्धति का गहन तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया।
भारतीय निर्वाचन आयोग अनेकों विभिन्नताओं वाले बहुत बड़े देश का निर्वाचन प्रबन्ध अत्यन्त सुगमता और सक्षमता के साथ कर रहा है। इसके लिए अनेकों निर्वाचन विशेषज्ञ साधुवाद के पात्र हैं। उन्होंने कहा कि भारत की राजनीति और निर्वाचन पद्धति के सामने धन के दुरुपयोग का सबसे बड़ा कठिन प्रश्न खड़ा है। अब इस बात की प्रबल सम्भावना है कि बड़े नोटों के बन्द होने से और जमा काले धन की समाप्ति से निर्वाचन प्रक्रिया में धन के दुरुपयोग की घटनाएँ कम होगी।
ब्रिटेन के पूर्व निर्वाचन आयुक्त ने ब्रिटेन के राजनीतिक दलों को भिन्न-भिन्न लोगों और व्यापारिक, औद्योगिक संस्थाओं के द्वारा प्राप्त होने वाले दान सहयोग के बारे में बताया कि राजनीतिक दलों को पाई-पाई का हिसाब प्रत्येक तीन माह के बाद निर्वाचन आयोग को अवश्य ही देना पड़ता है। ब्रिटेन में अधिकतर लेन-देन बैंकों आदि के द्वारा होते हैं। इसलिए धन के आदान-प्रदान में गड़बड़ियों की सम्भावना नहीं होती। इसलिए ब्रिटेन की राजनीति और निर्वाचन प्रक्रिया में धन का दुरुपयोग नहीं हो पाता।
इण्टरनेट द्वारा वोटिंग की प्रक्रिया प्रारम्भ करने के बारे में श्री कर्मजीत सिंह ने कहा कि यह एक प्रभावशाली कदम होगा जिससे अधिक से अधिक संख्या में मतदान सुनिश्चित हो सकता है। परन्तु इस प्रक्रिया में इण्टरनेट हैकिंग अर्थात् कुछ अपराधी तत्त्वों द्वारा पासवर्ड चोरी करके प्रयोग करने के प्रति सचेत रहना होगा।
श्री कर्मजीत ने कहा कि लोकतंत्र को सफल बनाने के लिए सबसे बड़ा दायित्व बेशक राजनीतिक दलों का है परन्तु प्रत्येक नागरिक, मीडिया तथा गैर-सरकारी संगठनों को अधिक से अधिक प्रयास करने चाहिए जिससे लोगों में जागरूकता बढ़ सके और वोटिंग प्रतिशत अधिक से अधिक हो। उन्होंने कहा कि ब्रिटेन में स्थानीय निर्वाचनों में अधिक लोग भाग नहीं लेते अपितु राष्ट्रीय स्तर के निर्वाचनों में अधिक भाग लेते हैं। इसके विपरीत भारत की जनता स्थानीय विषयों पर अधिक रुचि लेती है और राष्ट्रीय स्तर के निर्वाचनों और विषयों कम महत्त्व दिया जाता है। उन्होंने कहा कि नागरिकों में ऐसी भावनाओं का विकास किया जाना चाहिए जिससे वे समझ सकें कि वोट देना उनका एक लोकतांत्रिक दायित्व है। गैर-सरकारी संगठन विशेष रूप से स्कूल और काॅलेजों के बच्चों के माध्यम से इस जागरूकता अभियान को सफल कर सकते हैं।
ब्रिटेन और भारत में निर्वाचन प्रबन्धों के तुलनात्मक विकास का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि 20वीं शताब्दी के प्रारम्भिक दौर तक ब्रिटेन में वोट देने का अधिकार केवल सम्पत्तिधारक नागरिकों तक सीमित था। सन् 1918 में पहली बार वोट का अधिकार महिलाओं को दिया गया और सन् 1928 में वोट का अधिकार सामान्य नागरिकों के लिए खोला गया। जबकि भारत ने स्वतंत्रता के बाद अपने देश की शुरुआत ही खुले अधिकारों के साथ की जो आज भारत में एक सफल लोकतंत्र का आधार बन सका। उसी का परिणाम है कि भारत में आज 18 वर्ष से अधिक आयु के सभी नागरिकों को वोट का अधिकार प्राप्त है और इतने बड़े लोकतंत्र में अधिकांश लोगों की भागीदारी भी देखने को मिलती है। विगत 10-15 वर्षों में भारतीय लोकतंत्र में अनेकों सुधार और विकास की तीव्र गति देखी गई है।
ब्रिटेन जैसे देश का निर्वाचन आयुक्त होने के बावजूद लोकतंत्र की मूल कार्यप्रणाली को देखने के लिए श्री कर्मजीत सिंह जी ने 4 बार भारतीय निर्वाचनों का निरीक्षण स्वयं यहाँ आकर किया। उन्होंने बताया कि सम्भवतः भारत विश्व का एक मात्र ऐसा देश है जहाँ निर्वाचन कार्यों में ड्यूटी भी कम्प्यूटर द्वारा स्वतः लगाई जाती है जिससे अन्तिम क्षणों तक यह योजना गुप्त रखी जाए कि किस निर्वाचन क्षेत्र में कौन से अधिकारी नियुक्त होंगे। भारत में निर्वाचनों की निष्पक्षता का यह एक मुख्य कारण है। जिसके कारण आज भारत का लोकतंत्र एक मजबूत लोकतंत्र बन चुका है। सारे विश्व की निर्वाचन प्रबन्धन संस्थाओं को भारत से मार्गदर्शन मिलता है।
भारत के राजनीतिक दलों के साथ-साथ भारतीय नागरिकों को भी सदैव यह प्रयास करते रहना चाहिए कि भारतीय लोकतन्त्र पर धन का अनैतिक प्रभाव जल्द से जल्द समाप्त किया जाये। धन का दुष्प्रभाव केवल स्वार्थवाद को ही बढ़ाता है और स्वार्थवाद के चलते कोई समाज किसी भी दिशा में उन्नति नहीं कर सकता। स्वार्थवाद पर आधारित समाजवाद की स्थापना प्रत्येक हिन्दुस्तानी का लक्ष्य होना चाहिए। श्री कर्मजीत सिंह जी ने कहा कि मैं बेशक ब्रिटेन का स्थाई नागरिक हूँ परन्तु – ‘‘फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी…………..’’ ब्रिटेन की निर्वाचन प्रक्रिया में धन शक्ति का अधिक प्रभाव नहीं है। भारत को भी नगदी रहित अर्थव्यवस्था बनाने का प्रयास किया जा रहा है। यह एक सराहनीय कदम है। इसके बल पर निकट भविष्य में निर्वाचन व्यवस्था को भी नगदी रहित अर्थात् धन के प्रभाव से मुक्त बनाने में सफलता मिल सकती है।
ब्रिटेन के पूर्व निर्वाचन आयुक्त ने लोकसभा और विधानसभाओं के निर्वाचन एक साथ कराने के विषय पर कहा कि इस प्रयास में यह सुनिश्चित होना चाहिए कि मतदाता स्थानीय और राष्ट्रीय विषयों को लेकर भ्रमित न हों।
अविनाश राय खन्ना, उपसभापति, भारतीय रेड क्रास सोसाईटी