दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय में महिलाओं के खतना करने की प्रथा पर सुप्रीम कोर्ट सख्त
मौहम्मद इल्यास-’दनकौरी’/कानून रिव्यू
नई दिल्ली
——————————————–दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय में महिलाओं के खतना करने की प्रथा पर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि महिलाओं की खतना सिर्फ इसलिए नहीं की जा सकती है क्योंकि उन्हें शादी करनी है। इस मसले पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि महिलाओं का जीवन केवल शादी और पति के लिए नहीं होता है शादी के अलावा भी महिलाओं के दायित्व होते हैं। कोर्ट ने साफ कहा कि किसी महिला पर ही ये दायित्व क्यों हो कि वह अपने पति को खुश करे। कोर्ट ने महिलाओं के खतने वाली प्रथा को निजता के अधिकार का उल्लंघन माना है। साथ ही ये भी कहा है कि यह लैंगिक संवेदनशीलता का मामला है और ऐसा किया जाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि महिला की जिंदगी सिर्फ पति और बच्चों के लिए नहीं हैए उसकी अपनी इच्छाएं भी हो सकती हैं। केवल खुद को पति को समर्पित कर देना ही कर्तव्य नहीं है। कोर्ट ने माना कि पहली नज़र में ये प्रथा महिला की गरिमा को चोट पहुंचाने वाली लगती है। कोर्ट में धार्मिक संगठनों के द्वारा खतना पर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई थी जिस पर कोर्ट में सुनवाई की गई। इस याचिका में खतना को गंभीर अपराधों की श्रेणी में रखने की अपील की गई है। इतना ही नहीं इसको गैरजमानती अपराधों में रखने की बात भी कही गई है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका की सुनवाई के दौरान बोहरा मुस्लिम समुदाय में नाबालिग बच्चियों का खतना किए जाने पर सवाल उठाए हैं। इस सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा है कि एक महिला सिर्फ अपने पति की पसंदीदा बनने के लिए ऐसा क्यों करे, क्या वो पालतू मवेशी है, उसकी भी अपनी पहचान है। ये व्यवस्था भले ही धार्मिक हो, लेकिन पहली नज़र में महिलाओं की गरिमा के खिलाफ नजर आती है। कोर्ट में ये भी कहा गया है कि दुनियाभर में इस तरह की सभी प्रथाएं बंद हो चुकी हैं। इतना ही नहीं खुद इस्लाम भी मानता है, जहां रहो, वहां के कानून का सम्मान करो। यहां तक की किसी को भी बच्ची के जननांग छूने की इजाज़त नहीं होनी चाहिए। आईपीसी की धारा 375 की बदली हुई परिभाषा में ये बलात्कार के दायरे में आता है। बच्ची के साथ ऐसा करना पॉक्सो एक्ट के तहत भी अपराध है।
———————————-प्राइवेट पार्ट को छूना पॉस्को एक्ट के तहत अपराध————————————दरअसल दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय में नाबालिग लड़कियों की खतना प्रथा के खिलाफ कोर्ट में याचिकाएं दायर की गई हैं। केंद्र सरकार ने भी इन याचिकाओं का समर्थन किया है। याचिकाकर्ता की वकील इंदिरा जयसिंह ने अपनी दलील में कहा कि किसी भी आपराधिक कृत्य को इस आधार पर इजाजत नहीं दी सकती कि वह प्रैक्टिस का हिस्सा है। उन्होंने अपनी दलील में साफ कहा कि प्राइवेट पार्ट को छूना पॉस्को एक्ट के तहत अपराध है। जिरह के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने भी प्रथा के खिलाफ सख्त टिप्पणियां कीं, कोर्ट ने कहा कि ये किसी भी व्यक्ति के पहचान का केंद्र बिंदु होता है और ये एक्ट खतना किसी की पहचान के खिलाफ है। कोर्ट ने माना कि इस तरह का एक्ट एक औरत को आदमी के लिए तैयार करने के मकसद से किया जाता है जैसे वो जानवर हों। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने दाऊदी बोहरा मुस्लिम समाज में आम रिवाज के रूप में प्रचलित इस प्रक्रिया पर रोक लगाने वाली याचिका पर केरल और तेलंगाना सरकारों को भी नोटिस जारी किया था। याचिकाकर्ता और सुप्रीम कोर्ट में वकील सुनीता तिहाड़ की याचिका पर कोर्ट में सुनवाई चल रही है। तिहाड़ ने कहा कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं।
—————————— ——खतना जैसी क्रूर प्रथा से बिलख उठती हैं महिलाएं———————————-मुस्लिम महिलाओं के बारे में अक्सर अनेकों प्रचलित प्रथाओं आदि के बारे में बातें सामने आती रहती हैं, हाल ही जारी एक स्टडी की रिपोर्ट के अनुसार दाऊदी बोहरा समुदाय की लगभग तीन चौथाई महिलाओं को खतने जैसी क्रूर और वीभत्स धार्मिक परंपरा से गुजरना पड़ता है। मुस्लिम महिलाओं में प्रताड़ना की निर्मम और भयावह सच्चाई बयां करती खतना प्रथा से जुड़ी कुछ भयावह बातों पर गौर करने से पता चलता है कि मुस्लिम समुदाय में पुरुषों के खतना प्रथा के बारे में तो सभी को पता ही होगा। दुनिया के कई देशों में पुरुषों के साथ महिलाओं के भी खतना की इस भयावह प्रक्रिया से होकर गुजरना होता है। इनमें से एक है दाऊदी बोहरा समुदाय। इस मुस्लिम समुदाय में महिलाओं में खतना प्रथा का प्रचलन है। दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय महिलाओं के खतना को एक धार्मिक परंपरा माना जाता है। दुनिया में इस समुदाय के लोगों की संख्या लगभग 25 लाख से कुछ अधिक है। भारत में दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय के लोग गुदरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में आदि क्षेत्रों में मिलते हैं। आश्चर्य तो यह भी है कि दाऊदी बोहरा समुदाय के लोग भारत में सबसे अधिक शिक्षित समुदायों में से एक माने जाते हैं। महिलाओं के खतना किए जाने की इस प्रक्रिया को खफ्द या फीमेल जेनाइटल म्यूटिलेशन भी कहा जाता है। महिलाएं ही नहीं लड़कियों की बेहद छोटी उम्र जैसे 6 से 8 साल के बीच में ही खतना करा दिया जाता है। इसके अंतर्गत क्लिटरिस के बाहरी हिस्से में कट लगाना या बाहरी हिस्से की त्वचा को निकाल दिया जाना शामिल होता है। खतना के बाद हल्दी, गर्म पानी और छोटे.मोटे मरहम लगाकर दर्द को कम करने का प्रयास किया जाता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक बोहरा मुस्लिम समुदाय की मान्यता के अनुसार क्लिटरिस की मौजूदगी से लड़की की
यौन इच्छा बढ़ती है। ऐसा माना जाता है कि क्लिटरिस हटा देने से लड़की की यौन इच्छा कम हो जाती है और वो शादी से पहले यौन संबंध नहीं बना पाती। दूसरी ओर यह खतना प्रथा मानवाधिकारों को एक तरह से खुला उल्लंघन भी है। संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा के अनुसार एफ़जीएम की प्रक्रिया में लड़की के जननांग के बाहरी हिस्से को काट दिया जाता है या इसकी बाहरी त्वचा निकाल दी जाती है। इस भयावह प्रकिया को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकारों का उल्लंघन मानता है। वर्ष 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा इस प्रथा को दुनिया से खत्म किए जाने के लिए एक संकल्प लिया जा चुका है। इसके अलावा इस निर्मम प्रक्रिया को दुनिया के कई देशों जैसे ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, बेल्जियम, यूके, अमेरिका, स्वीडन,डेनमार्क और स्पेन आदि में बैन कर दिया करके इसे अपराध घोषित किया जा चुका है। भारत में सहियो और जैसी गैर सरकारी संस्थाएं जो महिलाओं के लिए काम करती हैं इस प्रक्रिया को बैन करने की मांग लगातार करती रही हैं।
———————————-भारत में ऐसे हुई इस खतना प्रथा की शुरूआत-——————————————भारत में महिलाओं की खतना प्रथा रोकने के लिए मुस्लिम महिलाएं आंदोलन कर रही हैं। इस आंदोलन की शुरुआत अगस्त 2017 से हुई, जब भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इस फैसले ने इस्लाम में मौजूद 1400 साल पुरानी परंपरा को तोड़ा। मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में फैसला करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने तीन तलाक की जैसी कुप्रथा को गैर.कानूनी करार दे दिया तो खतना प्रथा के खिलाफ आवाज बुलंद कर रही महिलाओं को काफी बल मिला। महिलाओं का खतना या खफ्ज प्रथा इस्लाम में एक पीड़ादायक प्रथा है। यह महिलाओं की खतना प्रथा अफ्रीका के कई हिस्सों और मध्य एशिया में सदियों से जारी है, लेकिन भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका में इसके बारे में ज़्यादा सुनने को नहीं मिलता है। फिलहाल भारत में खतना को लेकर कोई भी कानून नहीं है, लेकिन बोहरा समुदाय अब भी खतना या महिला सुन्नत का पालन करता है। यहां सिर्फ दाऊदी बोहरा समुदाय में ये परंपरा पाई जाती है। यमन के शिया मुसलमानों का एक हिस्सा रहे बोहरा जो कि 16 वीं सदी में भारत आए थे। आज वह मुख्य रूप से गुजरात और महाराष्ट्र में रहते हैं। दाऊदी बोहरा देश में सबसे पढ़े.लिखे समुदायों में से हैं। भारत में इसे मानने वाले दाऊदी बोहरा मजबूत व्यापारी मुस्लिम समुदाय है। करीब 10 लाख लोग मुंबई और आसपास के इलाकों में रहते हैं। यूएन ने साल 2030 तक एफजीएम को खत्म करने का लक्ष्य रखा है। दुनियाभर में हर साल करीब 20 करोड़ बच्चियों या लड़कियों का खतना होता है। इनमें से आधे से ज्यादा सिर्फ तीन देशों में हैं, मिस्र, इथियोपिया और इंडोनेशिया। बहुत से देशों ने इस पर प्रतिबंध भी लगा दिया है। लेकिन भारत में ऐसा कोई क़ानून नहीं है और बोहरा अब भी इस परंपरा का पालन करते हैं. जिसे यहां खतना या महिला सुन्नत कहते हैं। खास बात तो यह भी है कि इस परंपरा की कुरान में इजाज़त नहीं है। अगर होती तो भारत में सभी मुसलमान इसका पालन करते। बोहरा समुदाय में यह इसलिए चल रही है क्योंकि कोई इस पर
सवाल नहीं उठाता। एफजीएम महिलाओं और लड़कियों के मानवाधिकार का हनन है। महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव का ये सबसे बड़ा उदाहरण है। बच्चों के साथ ये अक्सर होता है और ये उनके अधिकारों का भी हनन है। इस प्रथा से व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है। ऐसी मान्यता है कि जिस भी लड़की का खतना हुआ है, वह अपने पति के लिए ज्यादा वफादार साबित होगी। संयुक्त राष्ट्र
की संस्था विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार खतना 4 तरीके का हो सकता है. पूरी क्लिटोरिस को काट देना, योनी की सिलाई, छेदना या बींधना और क्लिटोरिस का कुछ हिस्सा काटना। एक ही ब्लेड से कई महिलाओं का खतना किया जाता है, जिससे उन्हें योनी संक्रमण के अलावा बांझपन जैसी बीमारियां होने का खतरा होता है। खतने के दौरान ज्यादा खून बहने से कई बार लड़की की मौत भी हो जाती है और दर्द सहन न कर पाने पर कई लड़कियां कोमा में भी चली जाती हैं। यूनिसेफ के आंकड़ों के अनुसार दुनियाभर में हर साल बीस करोड़ से ज्यादा महिलाओं का खतना होता है। इनमें से आधी महिलाएं सिर्फ इथियोपिया, मिस्र और इंडोनेशिया की होती हैं। खतना होने वाली इन 20 करोड़ लड़कियों में से करीब 4.5 करोड़ बच्चियां 14 साल से कम उम्र की होती हैं।